Poultry Chicken: जानें कितने वजन के बाद बीमार होने लगता है मुर्गा, रेट भी होते हैं प्रभावित

Poultry Chicken: जानें कितने वजन के बाद बीमार होने लगता है मुर्गा, रेट भी होते हैं प्रभावित

बाजार में मुर्गों की डिमांड-सप्लाई बिगड़ती ही सबसे पहले आफत मुर्गों पर टूटती है. पोल्ट्री फार्म में मुर्गों को दिन-रात में तीन से चार बार फीड खाने को दिया जाता है. जिसके चलते उनका वजन बढ़ता है. और अगर तय वजन पर उन्हें बाजार में नहीं बेचा गया तो फिर उन्हें बीमारियां घेरने लगती हैं. यहां तक की चलने-फिरने से भी लाचार हो जाते हैं.

नासि‍र हुसैन
  • NEW DELHI,
  • Aug 04, 2024,
  • Updated Aug 04, 2024, 6:26 PM IST

खुले बाजार में बेशक मुर्गे के दाम वजन के आधार पर तय नहीं होते हों, लेकिन पोल्ट्री फार्म से लेकर होलसेल मार्केट में चिकन के लिए बिकने वाले मुर्गे के दाम उसके वजन के आधार पर ही तय होते हैं. चिकन की डिश‍ के हिसाब से ही अलग-अलग वजन के मुर्गे तैयार किए जाते हैं. जैसे अगर चिकन फ्राई बनना है तो उस मुर्गे का वजन अलग होगा. लेकिन ये भी है कि अगर वजन के हिसाब से तैयार हुए मुर्गे तय वक्त पर बाजार में नहीं बिके तो फिर वो बीमार पड़ना शुरू हो जाएंगे. 

यहां तक की एक खास वजन के बाद मुर्गों को हार्ट अटैक भी आ जाता है. और मुर्गों का यही वजन उनके रेट को भी प्रभावित करता है. पोल्ट्री एक्सपर्ट की मानें तो बाजार में जब डिमांड बिगड़ती है और रेट में उतार-चढ़ाव आता है तो मुर्गों की सप्लाई कम हो जाती है और फार्म में लगातार खाने के चलते मुर्गों का वजन बढ़ने लगता है. कोरोना-लॉकडाउन के चलते भी कुछ ऐसा ही हुआ था.  

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ज्यादा वजन से ऐसे होती है मुर्गों की मौत 

पोल्ट्री एक्सपर्ट मनीष शर्मा ने किसान तक को बताया कि तीन किलो वजन तक के मुर्गे को कोई परेशानी नहीं होती है. लेकिन जैसे ही मुर्गा साढ़े तीन किलो वजन का होता है तो फिर उसे चलने-फिरने में परेशानी होने लगती है. जिसके चलते वो ज्यादातर एक ही जगह बैठा रहता है. अगर उसी जगह पर खाने को मिल गया तो खा लेता है. और थोड़ा बहुत भी चल सकता है तो वॉटर पॉइंट पर जाकर पानी भी पी लेता है. अगर हिम्मत नहीं हुई तो ऐसे ही भूखा पड़ा रहता है. कुछ इसी तरह के हालात में मुर्गों को हॉर्ट अटैक भी आ जाता है. या फिर कुछ मामलों में मुर्गा भूख से भी मर जाता है. 

ब्रॉयलर मुर्गों में इसलिए खास होता है वजन  

मनीष शर्मा का कहना है कि जन्म से 15 दिन का चूजा आराम से फीड खाता है. लेकिन जैसे ही चूजा 15 दिन का होता है तो वो 500 से 600 ग्राम तक का हो जाता है. इतना ही नहीं 15 दिन के बाद मुर्गे की भूख और बढ़ जाती है. इसके बाद उसे दिन के साथ ही रात में भी खाने के लिए कुछ न कुछ चाहिए होता है. यही वजह है कि 30 दिन में ब्रॉयलर मुर्गा 900 से 1200 ग्राम तक का हो जाता है. इस वजन का मुर्गा तंदूरी और फ्राई चिकन के काम आता है. वहीं 35 दिन का ब्रॉयलर मुर्गा दो किलो और 40 दिन का मुर्गा ढाई किलो वजन तक का हो जाता है. ढाई किलो वजन के मुर्गे की बाजार में अच्छी खासी डिमांड रहती है.

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लेकिन ढाई किलो के बाद का मुर्गा मोटा और तीन किलो वजन के बाद सुपर मोटा की कैटेगिरी में आ जाता है. इस वजन का मुर्गा सस्ता हो जाता है, बाजार में इसकी डिमांड भी ज्यादा नहीं रहती है. खास बात ये है कि वजन के चलते मुर्गों में बीमारी और हॉर्ट अटैक की परेशानी सिर्फ ब्रॉयलर नस्ल के मुर्गों में ही आती है. देसी मुर्गों में वजन के चलते इस तरह की परेशानी नहीं आती है. गौरतलब रहे देसी मुर्गे 5.5 और छह किलो वजन तक के होते हैं. 

 

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