Goat Farming: चार भागों में बंटा होता है बकरियों का पेट, जानें क्या है सही पोषण आहार

Goat Farming: चार भागों में बंटा होता है बकरियों का पेट, जानें क्या है सही पोषण आहार

बकरियों में पोषक तत्वों की कमी से होने वाले प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में पूरी जानकारी होना आवश्यक है. भोजन की कमी से होने वाले रोग मुख्य रूप से अधिक दूध और मांस देने वाले पशुओं में होते हैं. गर्भावस्था और दूध उत्पादन के दौरान इन घटकों की आवश्यकता अधिक बढ़ जाती है.

बकरियों को खिलाएं ये चाराबकरियों को खिलाएं ये चारा
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Sep 13, 2024,
  • Updated Sep 13, 2024, 1:42 PM IST

बकरियों को बढ़ने के लिए कई घटकों की आवश्यकता होती है, जो भोजन से मिलता है. विकास, दूध और मांस उत्पादन, प्रजनन और अन्य सभी शारीरिक कार्यों के लिए उचित पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. संतुलित आहार में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण और विटामिन जैसे प्रमुख पोषक तत्व जरूर मात्रा में मौजूद होते हैं. यदि आहार में किसी भी पोषक तत्व की कमी होती है, तो इसका असर बकरियों के उत्पादन, प्रजनन क्षमता और रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है.

पोषक तत्वों की कमी से होने वाले रोग

पोषक तत्वों की कमी से होने वाले प्रमुख रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में पूरी जानकारी होना आवश्यक है. भोजन की कमी से होने वाले रोग मुख्य रूप से अधिक दूध और मांस देने वाले पशुओं में होते हैं. गर्भावस्था और दूध उत्पादन के दौरान इन घटकों की आवश्यकता अधिक बढ़ जाती है. अगर ऐसी स्थिति में बकरी पालक आवश्यकतानुसार संतुलित आहार नहीं देते हैं, तो स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव दिखने लगते हैं और कभी-कभी बकरियां मर भी जाती हैं. इन जरूरी पोषक तत्वों को आसानी से पचाने और शारीरिक विकास के लिए बकरियों का पेट चार भागों में बटा हुआ होता है. ऐसा क्यों आइए जानते हैं. 

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चार भाग में बटा होता है पेट

बकरियों के पेट के चार भाग होते है जिनके नाम है रूमेन, रेटीकुलम, ओमेसम एवं एवामेसम. बकरी जुगाली करने वाली पशु है जो घास व कृषि अवशेष जिसे दूध और मांस के रूप में तब्दील करते है. बकरी सामने के पैर को खड़ा कर चारा खाती है, जिसे ब्राउसिंग कहते है. बकरियों को हर समय कुछ न कुछ खाते रहने की आदत होती है. सामान्यतः बकरियां एक दिन में साढ़े तीन से लेकर चार किलो तक हरा चारा खाती है.

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बकरियों के चरने से पौधों की वृद्धि

बकरियों को हरा चारा खिलाकर अनाज को बचाया जा सकता है. आम तौर पर यह माना जाता है कि जब बकरियां पौधों को चरती हैं तो उनकी वृद्धि रुक ​​जाती है. यह धारणा गलत है क्योंकि बकरियां किसी पौधे को पूरा नहीं चरतीं बल्कि कुछ पत्तियों को चुनकर खाती हैं. इससे पौधे की शाखाओं में सामान्य से ज़्यादा वृद्धि होती है. कुछ इलाकों में बकरियों को खास तौर पर चने के खेतों में चरने के लिए बुलाया जाता है ताकि शाखाएं ज़्यादा से ज़्यादा फैल सकें और चने का उत्पादन बढ़ सके.

चारा खिलाने वक़्त रखें ये सावधानियां

  • बकरियों को एक ही चारागाह में अधिक समय तक चरने नहीं देना चाहिए, ऐसा करने से कृमि रोग हो सकता है. 
  • बकरियां ठण्ड व वर्षा सहन नहीं कर सकती, अतः उन्हें अधिक ठण्ड में धूप में चरने के लिए भेजना चाहिए. बरसात में उन्हें गीले स्थान या दलदल में चरने नहीं देना चाहिए. 
  • बीमार बकरियों को चरने के लिए नहीं भेजना चाहिए. 
  • गर्भावस्था के अंतिम दो सप्ताह तथा प्रसव के दो सप्ताह बाद तक उन्हें चरने के लिए नहीं भेजना चाहिए. 
  • नियंत्रित प्रजनन के लिए बकरी व बकरे को एक साथ चरने के लिए नहीं भेजना चाहिए अथवा उन्नत नस्ल की बकरियों को एक साथ भेजना चाहिए. 
  • सामान्यतः एक आदमी 100 बकरियों को चराने के लिए पर्याप्त होता है. 
  • बकरियों को चरने देना बहुत जरूरी है. उन्हें प्रतिदिन 6 से 7 घंटे चरने दें. बकरियों के जाने के बाद प्रतिदिन गौशाला की सफाई करें.
  • जिस स्थान पर बकरियों को चरने के लिए छोड़ा जाना है, उसका पहले से निरीक्षण कर लेना चाहिए 
  • यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि बकरियों के चरने के लिए पर्याप्त चारा उपलब्ध हो. 
  • बकरियों और बड़े पशुओं को एक साथ न चराएं.

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