देश में कई राज्यों के किसान अब खेती के साथ-साथ बड़े स्तर पर मछली पालन की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं. इससे किसानों की अच्छी कमाई भी हो रही है. लेकिन कई बार किसानों को मछली पालन की जानकारी नहीं होने से उन्हें इसमें फायदा नहीं होता है. ऐसे में जान लें कि जो किसान मछली पालन में बेहतर कमाई करना चाहते हैं वे रोहू की प्रजाति जयंती और अमूर कार्प का पालन कर सकते हैं. बता दें कि मछलियों के इन किस्मों को हंगरी की नील नदी से भारत लाया गया था. आइए जानते हैं इन किस्मों की खासियत क्या होती है.
मछली पालन करने वाले किसानों के लिए अब जयंती रोहू और अमूर कार्प मुनाफे का जरिया बनेगी. कई राज्यों के मछली पालन केंद्र में अमूर कार्प और जयंती रोहू मछलियों का पालन हो रहा है. इसका पालन करने के लिए किसानों को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है. कई किसान इन दोनों मछलियों का पालन कर अच्छी आमदनी भी कर रहे हैं. ये दोनों मछलियां अन्य प्रजाति की मछलियों की अपेक्षा करीब डेढ़ गुना तेजी से ग्रोथ करती हैं. जो कि कम समय में ही अपना पूर्ण शरीर बना लेती हैं.
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इन दोनों मछलियों के किस्म को पालकर किसान जल्द ही अच्छे रेट पर मार्केट में बेच सकते हैं. जयंती रोहू मछली 8 से 10 महीने में ही तैयार हो जाती है, जबकि अन्य प्रजाति की मछलियां 16 से 18 महीने का समय लेती हैं. जयंती रोहू करीब एक से डेढ़ किलो की होती है. अच्छी प्रजाति की मछली होने के चलते जयंती रोहू को किसान 130 से 140 रुपये किलो तक बाजार में बेच सकते हैं. इस किस्म की मछली को कई राज्यों में पाला जा रहा है. अमूर कार्प और जयंती रोहू को हंगरी की नील नदी से भारत लाया गया था.
रोहू की जयंती किस्म और अमूर कार्प का पालन देश के आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम राज्यों में होता है. वहीं दूसरे राज्यों में भी धीरे-धीरे इसका पालन बढ़ रहा है. इस किस्म का पालन छोटे-बड़े तालाबाों में भी आसानी से किया जा सकता है. देशभर में जयंती रोहू मछली के बीजों की मांग रहती है. यह अन्य मछलियों की तुलना में अधिक पौष्टिक होती है. वहीं मछुआरों को कम समय में अधिक लाभ मिल जाता है.