Poultry Farming Tips: देश में किसान अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए अब खेती के साथ-साथ मुर्गी पालन भी करने लगे हैं. जिससे कम लागत में मोटी कमाई का जरिया अब किसानों का बनता जा रहा है. आज हम देसी मुर्गियों के दो नस्लों के बारे में बताने जा रहे है, जिसके पालने से किसानों की आमदनी डबल हो जाएगी. इसी कड़ी में केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (इज्जतनगर) बरेली के वैज्ञानिक डॉ जयदीप ने इंडिया टुडे के डिजिटल प्लेटफॉर्म किसान तक से बातचीत में बताया कि देसी नस्ल की दो मुर्गियां कैरी निर्भीक और कैरी श्यामा पोल्ट्री किसानों के लिए फायदेमंद साबित होने लगी है. उन्होंने बताया कि मुर्गियों में दो तरह की नस्ल पाई जाती है. फोर बर्ड जैसे कड़कनाथ और अकील में प्रोडेक्शन कम होता हैं. वहीं 25 हफ्ते में वजन डेढ़ किलो से भी ज्यादा हो जाता है. वहीं उन्नत किस्म की नस्ल हम लोगों के द्वारा तैयार की गई है. वो हैं कैरी निर्भीक और कैरी श्यामा मुर्गियां.
इसकी खासियत है कि यह मुर्गियां साल में 170-200 के करीब अंडे देती है. CARI बरेली के वैज्ञानिक डॉ जयदीप बताते हैं कि कैरी-निर्भीक अंडे और मांस उत्पादन के लिए दोहरी प्रकार की रंगीन देसी मुर्गी है. कैरी-निर्भीक मुर्गी की किस्म अपने कठोर स्वभाव, रंगीन पंख, लंबी टांग, हल्का/दुबला शरीर, उच्च विकास दर और बेहतर अंडा उत्पादन करती है.
उन्होंने बताया कि देसी नस्ल की मुर्गी कैरी निर्भीक और कैरी श्यामा और निर्भीक के मांस में प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है. यह मुर्गी बेहद ही एक्टिव, कद में बड़ी, शक्तिशाली और मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली होती है. इसके चूजों का वजन तेजी के साथ बढ़ता है. यह 1 साल में दोनों नस्ल की मुर्गियां 200 के करीब अंडों का उत्पादन देती है. कैरी निर्भीक मुर्गी को कम खर्चे में पालकर अच्छी आमदनी ली जा सकती है. वहीं मुर्गी कैरी श्याम को कड़कनाथ से क्रास करके तैयार किया गया है. यह 1 साल में 190 से 200 अंडों तक का उत्पादन दे सकती हैं. इसका मांस पौष्टिक और स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है.
CARI बरेली के वैज्ञानिक डॉ जयदीप ने बताया कि देसी नस्ल की मुर्गी कैरी श्याम जिसके मांस में फाइबर और फैट बहुत कम पाया जाता है. जिसकी वजह से इसकी बाजार में काफी डिमांड रहती है. इसमें प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है. उन्होंने बताया कि कैरी-निर्भीक असील पीला की तरह दिखता है. इन पक्षियों के पंख का रंग नर में लगभग सुनहरा-लाल और मादा में सुनहरा-लाल से पीला होता है. इसकी त्वचा और टांग का रंग पीला है, जबकि नर में कान की लोब लाल और मादा में लाल और सफेद होती है.
आंखों का रंग मुख्य रूप से काला है. इन पक्षियों में मध्यम से बड़े आकार की 'मटर की कंघी' होती है, जो नर में गहरे लाल से छोटी और मादा में हल्के लाल रंग की होती है. वहीं बाल केवल नर में पाए जाते हैं. केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ जयदीप ने बताया कि 24 घंटे भरपूर मात्रा में साफ पानी की उपलब्धता आवश्यक है.
परजीवी संक्रमण की जांच के लिए 2-3 महीने के अंतराल पर समय-समय पर कृमिनाशक दवाई देने की आवश्यकता होती है.वहीं केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान में साल भर अलग-अलग तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. जिनमें ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से शामिल हुआ जा सकता है.
डॉ जयदीप ने बताया कि कम जमीन पर पोल्ट्री मुर्गी पालन को शुरू किया जा सकता है. वहीं कम लागत और स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री जैसे बांस, लकड़ी के फट्टे, पॉलिथीन शीट के इस्तेमाल से बाड़ा बनाना चाहिए. नमी से बचने के लिए ज़मीन से कुछ इंच ऊपर एक अच्छी जल निकासी वाले क्षेत्र में बाड़ा बनाएं. इतनी जगह हो कि हर एक पक्षी आराम से रह सके. बल्ब जलाकर उजाले का प्रबंध करें, इससे मुर्गियाँ अधिक अंडे देती हैं. 10 मुर्गियों के बाड़े के लिए आयाम: 4 फीट लंबा x 3 फीट चौड़ा x 3.5 फीट ऊंचा और ज़मीन से 1.5-2 फीट ऊपर, 3.5 फीट से 2.5 फीट की ढलान के साथ होना चाहिए. उन्होंने कहा कि साफ पानी और उनका दाना सामने की तरफ और उनके रहने की व्यवस्था पीछे की तरफ होनी चाहिए. वहीं मुर्गियों की देसी नस्ल के साथ मुर्गी पालन करने के लिए सरकार किसानों को अनुदान भी देती है.