अक्सर सड़क और गली-मोहल्ले में लोग बचा हुआ खाना, फल, सब्जियों के पत्ते और किचेन के बचे हुए सामान को पॉलिथीन में भरकर या उसमे लपेटकर कूड़ेदान फेंक देते हैं. और फिर होता ये है कि भूखी घूम रहीं छुट्टा गाय इस खाने या फल और सब्जिूयों को खाने की कोशिश में पॉलिथीन तक खा जाती हैं. क्योंकि गाय खाने और फल-सब्जी से पॉलिथीन को अलग नहीं कर सकतीं तो न चाहते हुए भी वो पॉलिथीन को खा जाती हैं. पॉलिथीन गाय के पेट और आंत में जगह बनाने लगती है.
और फिर यही पॉलिथीन गाय के पेट में जाकर एक ठोस गोले और रस्सी का रूप ले लेती हैं. और जब यही पॉलिथीन बड़ी मात्रा में जमा हो जाती है तो गाय को पाचन संबंधी, भूख न लगना, दस्त, गैस (अफरा) और पेट दर्द जैसी परेशानियां होने लगती हैं. यही वजह है कि पॉलिथीन को खासतौर पर गायों के लिए साइलेन्ट किलर कहा जाता है.
पशुपालन विभाग का कहना है कि दूसरी बीमारियों की तरह से पॉलिथीन खाने का कोई भी इलाज दवा, इंजेक्शन, गोली और चूरन से नहीं किया जा सकता है. पॉलिथीन और इसके साथ पेट में गई दूसरी चीजों को सिर्फ ऑपरेशन के द्वारा निकालना ही इसका एकमात्र इलाज है.
पशुपालन विभाग ने सुझाव देते हुए आम जनता से अपील की है कि हमें अपने चारों तरफ पॉलिथीन मुक्त समाज बनाने की जरूरत है. खाद्य पदार्थों, हरी सब्जी के छिलके आदि को पॉलिथीन में बंद कर सड़क किनारे, रेल पटरी के किनारे, खेत-खलिहान, नदी-तालाब में या उनके किनारे नहीं फेंकना चाहिए. पॉलिथीन के बैग और लिफाफे पर कानूनी रूप से लगाए गए प्रतिबंध का पालन किया जाना चाहिए.
राजस्थान पशुधन विकास बोर्ड के उप प्रबंधक डॉक्टर कैलाश मोड़े ने बताया कि ये इलाज मैंने खुद ही परखा हुआ है. बहुत सी गायों के पेट से पॉलीथिन के बड़ी-बड़ी गांठ को निकाला है. ये गांठ एक साथ नहीं निकलती है. जब इस घोल को देते हैं तो अंदर पॉलीथिन की गांठ खुलने लगती है और जुगाली के दौरान एक-एक करके बाहर आ जाती है. इस इलाज अपनाने से आपरेशन जैसे बड़े खर्चे से बच जाते हैं.यह उपचार सफल हो रहा है. आज भी हजारों गाय पॉलीथिन खाने से मर जाती हैं. इस गायों को बचाने के लिए बहुत ही सस्ता और सरल इलाज घर पर बैठकर ही कर सकते हैं.
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