जैसे ही बात बजट की होती है तो डेयरी सेक्टर का नाम जरूर आता है. पोल्ट्री के साथ ही फूड सिक्योरिटी में डेयरी का भी अहम रोल है. हालांकि केन्द्र सरकार हर साल बजट में डेयरी को कुछ ना कुछ जरूर देती है. बावजूद इसके डेयरी सेक्टर की कुछ डिमांड ऐसी हैं जो लम्बे वक्त से की जा रही हैं. दूध की एमएसपी तय करने की मांग भी अलग-अलग राज्यों से होती रहती है. लेकिन डेयरी एक्सपर्ट का कहना है कि आज डेयरी को एमएसपी से ज्यादा उसे एग्रीकल्चर में शामिल करने की जरूरत है.
ऐसा होने पर नौकरियों के लिए रास्ते भी खुलेंगे. जबकि दूध की एमएसपी तय होना टेड़ी खी है. बजट आने से पहले एक बार फिर डेयरी सेक्टर को एग्रीकल्चर में शामिल करने की मांग हो रही है. एक्सपर्ट का कहना है कि जिस तेजी से डेयरी सेक्टर का विकास हो रहा है उतना फायदा पशुपालकों और छोटे डेयरी फार्मर को नहीं मिल पा रहा है.
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इंडियन डेयरी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट और अमूल के पूर्व एमडी आरएस सोढ़ी ने किसान तक को बताया कि सरकार बजट की तैयारी कर रही है. हमारी मांग बस इतनी है कि डेयरी को एग्रीकल्चर की कैटेगिरी में शामिल किया जाए. ऐसा होने पर दोहरे फायदे होंगे. इससे कम जमीन या फिर भूमिहीन किसानों की इनकम बढ़ जाएगी. अभी डेयरी सेक्टर को इंडस्ट्री में शामिल किया जाता है. इंडस्ट्री के हिसाब से ही बिजली की रेट हैं. उसी मानक पर इनकम टैक्स वसूला जा रहा है. जबकि होना ये चाहिए कि दूध और दूध से बने प्रोडक्ट पर टैक्स कम से कम लगे. इतना ही नहीं अगर केन्द्र सरकार डेयरी को एग्रीकल्चर की कैटेगिरी में शामिल कर इसमे इंवेस्ट बढ़ाती है और डेयरी से जुड़े स्टार्टअप को मदद देती है तो इससे नौकरियों के अवसर भी बढ़ेंगे.
आरएस सोढ़ी का कहना है कि हम दूध उत्पादन में नंबर वन हैं. अगर सरकार डेयरी सेक्टर को मदद करती है तो दूध उत्पादन बढ़ने से वो बेकार नहीं जाएगा. हमारे आसपास के देशों में दूध और उससे बने प्रोडक्ट की बहुत डिमांड है. लेकिन दूध पर एमएसपी तय करने की डिमांड मेरे हिसाब से ठीक नहीं है. क्योंकि एमएसपी तय होने के बाद अगर वक्त से दूध नहीं बिका तो वो बेकार हो जाएगा. किसी भी पशुपालक के पास दूध स्टोर करने के कोई इंतजाम नहीं हैं. सरकार दूध खरीदेगी नहीं. क्योंकि अगर सरकार दूध खरीदेगी तो फिर सरकार को दूध रखने के लिए प्रोसेसिंग प्लांट तैयार कराने होंगे.
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