अमेरिका में नई सरकार बनने के बाद से टैरिफ को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है. अमेरिका भारत ही नहीं कई और दूसरे देशों को भेजे जाने वाले सामान पर टैरिफ कम करने का दबाव बना रहा है. इसी में से एक आइटम है पोल्ट्री चिकन. भारत अपनी डिमांड के ज्यादातर चिकन का उत्पादन खुद ही करता है. एक आंकड़े के मुताबकि बीते साल 52 लाख टन चिकन का उत्पादन हुआ था. वहीं चिकन आयात पर भारत ने करीब 45 फीसद टैरिफ लगाया हुआ है. अब अमेरिका की नई सरकार चाहती है कि भारत चिकन पर लगे 45 फीसद टैरिफ को कम करे.
अमेरिका ये डिमांड इसलिए कर रहा है जिससे अमेरिकी चिकन लगे पीस को भारत में खपाया जा सके. अमेरिका में न के बराबर चिकन लगे पीस खाए जाते हैं. इस तरह की एक कोशिश भारत में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान भी हो चुकी है. उस वक्त भारत ने टर्की बर्ड से टैरिफ कम किया था. तब से लगातार यह कोशिश हो रही है कि अमेरिका से आने वाले चिकन पर टैरिफ को कम किया जाए.
पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया (पीएफआई) के प्रेसीडेंट रनपाल डंडा का कहना है कि अमेरिका में चिकन लगे पीस की डिमांड कम है. वहां चिकन के दूसरे पार्ट ज्यादा खाए जाते हैं. इसलिए वहां के बाजार में लेग पीस बहुत बचता है. हालांकि अभी इस बात की उम्मीद कम है कि भारत पोल्ट्री प्रोडक्ट पर टैरिफ कम करेगा. क्योंकि सरकार हमेशा से किसानों के हित के बारे में सोचती आई है. अगर फिर भी किसी वजह से टैरिफ कम कर दिया जाता है तो इसे दोनों ही तरीके से देखा जा सकता है.
पोल्ट्री के तहत वहां से आने वाला अंडा तो भारत में आकर काफी महंगा हो जाएगा. जबकि हमारे बाजारों में अंडा छह से सात रुपये तक बिकता है. और दूसरा ये कि वहां के बाजार को देखते हुए मुझे उम्मीद है कि अमेरिका से लेग पीस भारत के बाजारों में भेजा जाएगा. क्योंकि अभी भी अमेरिका के पोल्ट्री कारोबारियों की पहली कोशिश यही होती है कि चिकन के बचे हुए लेग पीस को कैसे बेचा जाए.
पोल्ट्री एक्सपर्ट एसवाई धवन ने बताया कि देश में हर महीने 40 से 45 करोड़ मुर्गे खाए जाते हैं. चूजे (चिक्स) बेचने वाली कंपनियां हर महीने ब्रॉयलर पोल्ट्री फार्मर को 40 से 45 करोड़ चूजे बेचती हैं. 35 से 40 दिन बाद यही चूजे बाजार में बेचने लायक बड़े हो जाते हैं. देश में करीब पांच लाख पोल्ट्री फार्मर ऐसे हैं जो चिकन के लिए चूजे पालते हैं. एक फार्म पर एवरेज पांच कर्मचारी काम करते हैं. इसके लिए फार्म में फीड सप्लाई करने वाली कंपनियां, दवाई और फार्म में इस्तेमाल होने वाले उपकरण बनाने वाली कंपनियां, फीड के लिए मक्का, बाजरा और दूसरे आइटम बेचने वाले. चिकन की ट्रेडिंग और बिक्री करने वालों को मिला लें तो करीब दो से ढाई करोड़ लोग सीधे तौर पर ब्रॉयलर पोल्ट्री फार्म से जुड़े होते हैं.
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