हमारे देश में चारागाह लगातार सिमट रहे हैं. अपने ही चारागाहों यानी शामलात भूमि पर उन्हीं गांवों के लोगों ने कब्जा कर लिया है. शामलात भूमि पर दशकों से हो रहे कब्जों के नतीजे अब देखने को मिल रहे हैं. शामलात भूमि कम होने से पशुधन कम हो रहा है. घास और चारे का संकट लगातार बढ़ रहा है. लेकिन चारों तरफ फैले इस संकट में कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं जहां से उम्मीद की रोशनी दिखाई पड़ रही हैं. राजस्थान के कई गांवों में शामलात भूमि को विकसित करने के लिए चारागाह विकास समितियां बन रही हैं. ये समिति अपने गांव के चारागाह के प्रबंधन, सुरक्षा से लेकर उसे विकसित करने में अपनी भूमिका निभा रही हैं.
राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1996 के नियम 170 के अंतर्गत चारागाह भूमि के संचालन और विकास के लिए गांव स्तर पर एक चारागाह विकास समिति बनाने की व्यवस्था की गई है. इसकी कार्यकारिणी में पांच सदस्य होते हैं. समिति का मुखिया वार्ड पंच होता है जबकि अन्य सदस्यों को ग्राम सभा चुनती है.
ग्राम पंचायत को गांव-ढाणी स्तर पर चारागाह भूमि विकास समिति गठन करने का अधिकार होता है. साथ ही इस समिति में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के लिए कम से कम दो महिलाएं होना अनिवार्य हैं.
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चारागाह भूमि विकास समिति मुख्य रूप से गांव में चारागाह के संरक्षण और विकास का काम करती है. यह समिति चारागाह प्रबंधन के संबंध में नियम बनाती है और जरूरी प्रतिबंध भी लगा सकती है. साथ ही यह समिति चारागाह भूमि के विकास और मैनेजमेंट के लिए योजनाएं बनाएगी और इन्हें ग्राम पंचायत की वार्षिक कार्ययोजनाओं में शामिल कराती है.
इसके अलावा समिति चारागाह भूमि के विकास के लिए मनरेगा से जारी पैसे का उपयोग करती है. साथ ही चारागाह की रक्षा और विकास के लिए आसपास के गांवों और ढाणियों में प्रचार भी समिति की जिम्मेदारियों में है.
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पंचायती राज नियम 169 से 172 में चारागाह प्रबंधन, विकास, चराई और जल स्त्रोतों के संरक्षण के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसमें चारागाह के रख-रखाव में पंचायत की भूमिका, इससे होने वाली आय को बढ़ाने के लिए चारागाह में उपयुक्त किस्म के झाड़ियां, घास और पेड़-पौधें लगाने की बात भी नियमों में स्पष्ट की गई है. साथ ही पंचायत को चारागाहों पर हुए अतिक्रमण हटाने, पशुओं की चराई और उस पर शुल्क लगाने के अधिकार भी प्राप्त हैं.