Goat Farming: बकरियों में ये रोग हैं बहुत आम, ऐसे करें देखभाल, देखें Photos

पशुपालन

Goat Farming: बकरियों में ये रोग हैं बहुत आम, ऐसे करें देखभाल, देखें Photos

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भारत में कृषि कार्यों के बाद पशुपालन का काम किसान अपने जीवन को चलाने के लिए लम्बे समय से करते आ रहे हैं. छोटे और सीमांत किसानों के लिए पशुपालन के बेहतर विकल्प है जिसके माध्यम से किसान अपना जीवनयापन करते आ रहे हैं. ऐसे किसान अकसए छोटे पशुओं का पालन करते हैं. जैसे बकरी, भेड़ आदि. सीमांत किसानों के लिए बकरी पालन एक सही रोजगार है जिसके माध्यम से वो आय कमा सकते हैं. बकरी पालन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि बकरियों को अच्छा आहार मिले और उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं न हों. हालांकि बकरियों को कई तरह की बीमारियां होती हैं. इसके लिए बकरी पालकों को इनका विशेष ख्याल रखना चाहिए. आइए जानते हैं बकरियों में होने वाली बीमारियों के बारे में विस्तार से. 

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यह बकरियों की एक प्रमुख बीमारी है जो अधिकतर बरसात के मौसम में फैलती है. झुंड में अधिक बकरियां रखने, आहार में अचानक परिवर्तन करने और अधिक प्रोटीन युक्त हरा चारा देने से यह रोग तेजी से बढ़ता है. यह रोग क्लोस्ट्रीडियम परफिरेंजेंस नामक जीवाणु के जहर के कारण होता है. अधिक ध्यान से देखने पर बकरी के अंगों में कंपकंपी (कंपन) दिखाई देती है, इसीलिए इसे फड़किया रोग के नाम से जाना जाता है. बरसात का मौसम शुरू होने से पहले 3 महीने से अधिक उम्र की सभी बकरियों को इस बीमारी से बचाव का टीका लगवाना चाहिए. पहली बार टीका लगवाने वाले पशुओं को बूस्टर खुराक के लिए 15 दिन के अंतराल पर दोबारा टीका लगाना चाहिए. अच्छे रखरखाव और चारे में अचानक बदलाव न करने से इस बीमारी से बचने में मदद मिलती है.

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यह एक वायरल बीमारी है जो बीमार बकरी के संपर्क में आने से फैलती है. इस रोग में शरीर पर दाने निकल आते हैं. बीमार बकरियों को बुखार हो जाता है और कान, नाक, पीठ और शरीर के अन्य हिस्सों पर गोल लाल धब्बे भी बन जाते हैं, जो फफोले का रूप ले लेते हैं और अंततः फूटकर घाव बन जाते हैं. रोग के प्रकोप से बचने के लिए हर साल बारिश के मौसम से पहले टीकाकरण कराना चाहिए. बीमारी होने पर एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग करना चाहिए. जिससे अन्य प्रकार के कीटाणुओं के प्रकोप को रोका जा सकता है.

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यह बकरियों का एक संक्रामक रोग है. यह रोग बारिश आने के बाद शुरू होता है. इस रोग में बकरियों के खुर और मुंह पर छाले पड़ जाते हैं. और मुंह से लार टपकती रहती है और इस वजह से बकरी चारा नहीं खा पाती है. यह रोग खाने और पानी के माध्यम से दूसरी बकरियों में भी फैलता है. इसलिए बीमार पशुओं को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए. इस रोग से प्रभावित बकरियों के अंगों को फिटकरी या लाल दवा के घोल से धोना चाहिए. छालों पर ग्लिसरीन लगाने से सही लाभ होता है. बकरियों को पॉलीवेलेंट टीका बरसात के मौसम से पहले और वसंत ऋतु की शुरुआत में लगवा देना चाहिए. बीमार बकरियों का इलाज अन्य जानवरों से अलग किया जाना चाहिए और उनके ठीक होने तक समूह से अलग रखा जाना चाहिए.

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इसे फेफड़ों का रोग भी कहा जाता है. श्वसन रोग या निमोनिया बकरियों में होने वाली एक आम बीमारी है. इस रोग में पशु के फेफड़ों और सांस लेने वाली नली में सूजन आ जाती है. जिसके कारण उन्हें सांस लेने में दिक्कत होती है. इस बीमारी के कारण बकरियों और उनके बच्चों में मृत्यु दर अधिक होती है. यदि बकरियों में जीवाणु निमोनिया का शीघ्र पता चल जाए, तो रोग को एंटीबायोटिक उपचार से ठीक किया जा सकता है. वायरल रोगों में एंटीबायोटिक्स देने से अन्य सामान्य जीवाणुओं की वृद्धि को रोका जा सकता है.

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इस बीमारी का मुख्य लक्षण बकरी का दिन-ब-दिन कमजोर होते जाना और उसकी हड्डियां दिखाई देने लगती हैं. यह बीमारी बीमार बकरी के संपर्क में आने से फैलती है. इस बीमारी का भी कोई इलाज उपलब्ध नहीं है जिस वजह से बकरी मर जाती है. यह एक खतरनाक बीमारी है, यह जिस झुंड को संक्रमित करती है, उस झुंड को धीरे-धीरे नष्ट कर देती है. इसलिए जैसे ही इस बीमारी से पीड़ित जानवर दिखें, उन्हें तुरंत हटा देना चाहिए.

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एक बार जब कोई बकरी अपना बच्चा गिरा देती है तो अगले बच्चे के जन्म तक बकरी पालक के लिए यह बोझ बन जाता है, जिससे बकरी पालक को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है. गर्भपात एक संक्रामक रोग है और इस संक्रामक रोग के मुख्य कारण ब्रुसेलोसिस, साल्मोनेलोसिस, विबियोसिस, क्लैमाइडियोसिस आदि हैं. इस बीमारी के इलाज और रोकथाम के लिए बीमार पशु को पूरी तरह से अलग कर देना चाहिए. उनके बाड़ों को साफ-सुथरा रखना चाहिए. बीमार बकरी के पिछले हिस्से को रेड मेडिसिन आदि कीटनाशकों से साफ करना चाहिए और कूड़े के डिब्बे में फ्यूरियाबोलस या हैबिटिन पेसरी आदि दवाएं भी डालनी चाहिए. उचित निदान के बाद रोगग्रस्त नर-मादा को समूह में नहीं रखना चाहिए तथा प्रजनन के लिए भी उनका उपयोग नहीं करना चाहिए.