यूपी के पूर्वांचल में पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष सामान्य से करीब 29 फ़ीसदी कम बारिश हुई है जिसके चलते धान की फसल पर सबसे ज्यादा असर पड़ने लगा है. पूर्वांचल के कई जिले ऐसे भी है जहां पर बारिश अच्छी है तो वहीं कुछ जिले अब सूखे की चपेट में पहुंच चुके हैं. आजमगढ़ जनपद का हाल कुछ ऐसा ही है. जिले में इस बार सामान्य से काफी कम बारिश हुई है. जिले में कम बारिश का प्रभाव धान की फसल पर पड़ने लगा है. किसानों ने किसी प्रकार से रोपाई तो पूरा कर कर ली अब पानी के बिना धान की फसल पीली पड़ने लगी है. खेतों में दरारें पड़ गई है. बारिश का अगर यही हाल रहा तो आगे चलकर फसल के उत्पादन पर भी असर पड़ेगा.
पूर्वांचल के तराई इलाके में गोरखपुर ,श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर ,बस्ती जैसे जिलों में बारिश की मात्रा पिछले साल के मुकाबले अच्छी है तो वही बनारस और आजमगढ़ मंडल में अब हालात सूखे जैसे होने लगे हैं. मानसूनी बारिश के इंतजार में किसानों की धान की फसल अब पीली पड़ने लगी है. सबसे बुरा हाल आजमगढ़ जनपद का है. जिले में इस बार 216934 लाख पहले हेक्टेयर में धान की रोपाई का लक्ष्य रखा गया था जिससे 592899 एमटी उत्पादन का अनुमान था. जनपद में इस बार जुलाई माह में बारिश कम हुई है जिसके चलते लक्ष्य के मुकाबले 79% भूमि पर धान की रोपाई हो सकी है. जनपद में इस बार 25000 हेक्टेयर में धान की रोपाई नहीं हो सकी है. वही अब बारिश ना होने के चलते धान की फसल को बचाना किसान के लिए मुश्किल हो रहा है. खेत में दरारें पड़ने लगी है. वही धान की फसल भी अब पीली पड़ने लगी है. ऐसे में कृषि वैज्ञानिक आर.के सिंह के मुताबिक धान का उत्पादन भी प्रभावित होने का अनुमान है. उन्होंने बताया कि बारिश कम होने से मिट्टी कड़ी हो गई है. सूखे खेतों में दरारें बढ़ने लगी हैं. धान को बचाने के लिए खेतों में नमी बनाए रखना भी जरूरी है.
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पूर्वांचल में कम बारिश के चलते आजमगढ़ , गाजीपुर जैसे जनपद में सूखे जैसे हालात हैं. आजमगढ़ जनपद के इसहाकपुर के किसान रामदास चौहान ने बताया कि उन्होंने किसी प्रकार से धान की रोपाई किया, लेकिन अब बरसात न होने से धान के खेतों में दरारें पड़ने लगी है. समझ में नहीं आ रहा कि फसल को कैसे बचाया जाय. नमी न होने से यूरिया आदि का भी छिड़काव नहीं हो पा रहा है. पूरब पट्टी के किसान वीरेंद्र मौर्य ने बताया कि इस बार न तो बारिश हो रही और न ही नहरों में पानी ही आ रहा है. निजी नलकूप से सिंचाई काफी महंगी पड़ रही है. पानी के अभाव में धान की फसल भी पीली होती जा रही है. बारिश का यही हाल रहा तो किसान एक छटांग भी धान नहीं पाएंगे.
कृषि वैज्ञानिक आर. के सिंह के मुताबिक धान की फसल के लिए 700 से 750 मिमी बारिश की जरूरत होती है. वहीं धान की कुछ वैरायटी के लिए तो 1100 मिमी वर्षा की भी जरूरत होती है लेकिन इधर जून में 48.2 मिमी और जुलाई में 134.82 मिमी हो बारिश हुई. अगस्त में भी अभी तक छिटपुट बारिश हुई हैं. हालात आगे भी ऐसे रहे तो धान का उत्पादन निश्चित रूप से प्रभावित होगा.
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