बुंदेलखंड इलाका, यूपी और एमपी का सीमावर्ती क्षेत्र है. ओले से नष्ट हुई फसलों के लिए मुआवजे की बाट जोहते यूपी के किसानों का दर्द तब और ज्यादा बढ़ गया, जब फर्लांग भर की दूरी पर एमपी के गांव में आपदा के तुरंत बाद सरकारी अफसर और विधायक किसानों के द्वार पर पहुंच गए. यूपी के किसानों को इंतजार है कि सरकार या जनता का कोई नुमाइंदा आकर उनकी सुध ले. इस बीच फसल नष्ट होने से झांसी जिले में मऊरानीपुर के एक किसान ने आत्महत्या कर ली. बुंदेलखंड में मौसम की मार से पीड़ित किसान की मौत का यह तीसरा मामला है.
'किसान तक' ने झांसी जिला मुख्यालय से महज 7 किमी दूर कोंड़रा गांव में फसलों की तबाही के मंजर का जायजा लिया. गांव के युवा किसान युवराज ने इस गांव के किसानों का दर्द साझा करते हुए बताया कि 21 मार्च को इस गांव को बर्फ की सफेद चादर ने ढक लिया था. गांव का नजारा बिल्कुल कश्मीर और हिमाचल प्रदेश जैसा था. महज आधा घंटे के भीतर खेतों में खड़ी फसल और काट कर रखी गई फसल पूरी तरह से नष्ट हो गई.
युवराज ने कहा कि ओलावृष्टि की आपदा से घिरे इस गांव के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए. आपदा के तीन दिन बाद अब किसान फसलों में नष्ट हुई फसल के अवशेष सहेजने में जुटे हैं. उन्हें उम्मीद है कि 80 फीसदी तक नष्ट हो चुकी फसल का बचा हिस्सा ही महफूज कर लिया जाए.
गांव के किसान प्रशांत यादव ने 'किसान तक' को बताया कि कुदरत ने जो दर्द दिया है, वह अपनी जगह है, लेकिन पीड़ा तब और बढ़ गई जब मध्य प्रदेश के पड़ोसी गांव में जिलाधिकारी से लेकर पटवारी तक और विधायक से लेकर सरपंच तक, पूरा अमला आपदा के तुरंत बाद किसानों का हाल जानने पहुंच गया. उन्होंने बताया कि आज तीन दिन बीत गए, उनके गांव में अब तक कोई अधिकारी या जनप्रतिनिधि किसानों की सुध लेने नहीं आया है. प्रशांत ने बताया कि उनका गांव अब झांसी नगर निगम का हिस्सा है. इसके बावजूद जिला प्रशासन की ओर से हालात का जायजा लेने की अब तक कोई पहल नहीं हुई है.
गौरतलब है कि यूपी सरकार ने फसल के नुकसान की जानकारी देने के लिए किसानों को दो हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं. इनमें फसल बीमा के दावे के लिए हेल्पलाइन नंबर 1800-889-6868 पर और गैर बीमित किसानों के लिए 1070 नंबर जारी किया गया है. किसान, इन नंबरों पर कॉल करके सरकार से मुआवजे की मांग कर सकते हैं. प्रशांत और युवराज ने बताया कि उन्होंने इन दोनों नंबरों पर कई बार कॉल किया, लेकिन इस पर कोई सुनवाई नहीं हुई.
बुंदेलखंड में नाउम्मीदी का आलम यह है कि मौसम की मार से पीड़ित किसानों ने मौत को गले लगाना शुरू कर दिया है. बीते 4 दिनों में अब तक तीन जिलों में तीन किसान सदमे से या खुदकुशी कर मौत के शिकार हो चुके हैं. गुरुवार को झांसी जिले में मऊरानीपुर के बंका पहाड़ी गांव में फसल खराब होने बाद कर्ज के बोझ से दबे 40 वर्षीय किसान अंबिका पाल पुत्र मंसाराम पाल ने आत्महत्या कर ली.
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गुरसराय थाना क्षेत्र की पुलिस ने बताया कि ग्राम पंचायत बंका पहाड़ी में किसान का शव उसके अपने ही खेत पर लगे पेड़ से लटकता हुआ बरामद किया गया. पुलिस ने अंदेशा जताया है कि किसान ने फांसी लगाकर जान दे दी.
गांव वालों का कहना है कि विगत दिनों हुई बेमौसम तेज बारिश और आंधी के चलते किसान की फसल चौपट होने के कारण अंबिका पाल सदमे में था. उसके ऊपर किसान क्रेडिट कार्ड का 70 हजार रुपये बकाया होने के अलावा वह बैंक और साहूकारों का कर्जदार भी था. उसके पास मात्र तीन बीघा जमीन थी, जिस पर खेती करके वह किसी तरह परिवार का पेट पालता था. इससे पहले बांदा और महोबा जिले में भी एक एक किसान की मौत हो चुकी है.
यूपी में खराब मौसम के कारण किसानों को हुए नुकसान का सर्वे अभी सरकार द्वारा कराया जा रहा है. प्राप्त जानकारी के अनुसार गुरुवार तक आपदा प्रभावित लगभग 7 जिलों के 83 हजार किसान मुआवजे के दायरे में शामिल कर लिए गए थे. इनमें ललितपुर जिले के दो हजार किसान शामिल हैं.
हालांकि झांसी और बुंदेलखंड के अन्य जिलों में सर्वे के दौरान फसल के नुकसान को 20 फीसदी ही बताया गया है. जबकि मानक के मुताबिक मुआवजे के लिए किसी किसान की 33 फीसदी फसल नष्ट होना अनिवार्य है. ऐसे में इन जिलों के किसानों को अब मुआवजा मिलने की उम्मीद दिन ब दिन धूमिल होती जा रही है.
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