देश के कई राज्यों में जहां भारी बारिश होने की वजह से बाढ़ जैसे हालात हैं वहीं कई राज्य उम्मीद से काफी कम बारिश से सूखे की स्थिति का सामना कर रहे हैं. आइएमडी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्यों को छोड़कर देश के अधिकांश भागों में बारिश की भारी कमी देखी गई है. मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, जहां देश में जुलाई में सामान्य से अधिक बारिश हुई. वहीं अल नीनो के प्रभाव की वजह से पिछली एक सदी से ज्यादा अवधि में अगस्त का महीना देश में सबसे अधिक सूखा रहा. मालूम हो कि अगस्त के महीने में 1901 के बाद सबसे कम बारिश हुई है. वहीं दो दिनों पहले आईएमडी ने बताया था कि लंबे "ब्रेक" से गुजरने के बाद दक्षिण-पश्चिम मॉनसून एक बार फिर सक्रिय हो गया है. जोकि इस सप्ताह के अंत में कुछ राज्यों को कवर करना शुरू कर देगा.
इसी बीच मॉनसून के मोर्चे पर बुरी खबर आई है. दरअसल, अमेरिकी मौसम एजेंसी क्लाइमेट प्रेडिक्शन सेंटर (सीपीसी) ने अपने हालिया अपडेट में कहा है कि 95 प्रतिशत संभावना है कि अल नीनो फरवरी 2024 तक एक्टिव रहेगा. मालूम हो कि सीपीसी ने अपने पहले पूर्वानुमान में अल नीनो के दिसंबर 2023 तक जारी रहने का अनुमान लगाया था.
अल नीनो मौसम संबंधी एक विशेष घटना स्थिति है, जो मध्य और पूर्वी प्रशांत सागर में समुद्र का तापमान सामान्य से अधिक होने पर बनती है. आसान भाषा में समझें तो इस बदलाव के कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है. ये तापमान सामान्य से 4 से 5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो सकता है. इसकी वजह से पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में रहने वाला गर्म सतह वाला पानी भूमध्य रेखा के साथ पूर्व की ओर बढ़ने लगता है, जिससे भारत के मौसम पर असर पड़ता है. ऐसी स्थिति में भयानक गर्मी का सामना करना पड़ता है. मॉनसून प्रभावित हो जाता है और सूखे के हालात बनने लगते हैं. इस बार अल नीनो के प्रभाव से अगस्त माह में मॉनसून काफी कमजोर हो गया था.
अल नीनो दुनिया भर के मौसम के पैटर्न पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है. यह आमतौर पर ऑस्ट्रेलिया में सूखे, इंडोनेशिया और फिलीपींस में बाढ़ और अटलांटिक महासागर में तूफान की गतिविधि से जुड़ा है. वहीं, भारत में अल नीनो इफेक्ट आमतौर पर दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य से अधिक शुष्क मौसम और पूरे देश में बढ़ी हुई गर्मी और सूखे के लिए जिम्मेदार होता है. मौसम पर इस तरह के प्रभावों से फसलों पर काफी प्रभाव पड़ता है.
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