मौसम विभाग ने बताया है कि वैसे तो भारत में मॉनसून हर साल जून से सितंबर के बीच केरल से शुरू होता है. इससे पहले प्री-मॉनसून बारिश होती है. देश में इस सीजन में मॉनसून के पहुंचने की तय तारीख 1 जून है, लेकिन मौसम विभाग ने इस बार मॉनसून के केरला में पहुंचने की डेट 4 जून दे दी है. मतलब साफ है मॉनसून 3 दिन आगे और 3 दिन पहले भी हो सकता है. पिछले पांच सालों में, केवल एक बार 1 जून को मॉनसून समय पर पहुंचा. दो मौकों पर, 2018 और 2022 में,कुछ दिन पहले, 29 मई को. जबकि 2019 और 2021 में, कुछ दिनों की देरी से पहुंचा.
हालांकि मौसम विभाग का कहना है कि मॉनसून में देरी एक नॉर्मल डेविएशन के अंदर ही है. एक सीनियर साइंटिस्ट ने बताया कि मॉनसून के समय पर पहुंचने और रेनफॉल का कोई डायरेक्ट रिलेशन नहीं है. यानी मॉनसून में देरी होने से बारिश कम होगी या या पहले आ जाने से मॉनसून अच्छा मानकर बारिश अधिक होगी यह अंदाजा लगाना वैज्ञानिक विधि से ठीक नहीं है. यानी पूरे सीजन के रेनफॉल और मॉनसून के पहुंचने की तारीख (ऑनसेट) के संबंध में कोई रिलेशन नहीं है. मौसम विज्ञानिकों की माने तो करीब 5 या 6 दिन से ज्यादा लेट होने पर ही मॉनसून लेट कहा जाना चाहिए. प्लस माइनस 4 मॉडल के प्रोडक्शन के हिसाब से मॉनसून 4 तारीख को आने की संभावना है तो पहले पहुंचने की स्थिति में 31 मई को आ सकता है.
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वैज्ञानिकों का दावा है कि पूरे मॉनसून सीजन के दौरान होने वाली बारिश को मॉनसून ऑनसेट नहीं प्रभावित कर सकता आपको बता दें कि करीब 122 दिन का मॉनसून सीजन होता है. मौसम विभाग की भविष्यवाणी के मुताबिक 4 प्रतिशत की कमी के साथ 96 फीसदी बारिश होने की संभावना है.
मानसूनी हवाएं बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में पहुंचने के बाद दो भागों में बंट जाती हैं. एक हिस्सा मुंबई, गुजरात राजस्थान में की तरफ चली जाती है. बंगाल, बिहार, पूर्वोंत्तर होते हुए हिमालय से टकराने के बाद गैंगेटिक इलाकों में चली जाती है. यही वजह है कि जुलाई के पहले हफ्ते में झमाझम बारिश होने लगती है. दूसरी हवा बंगाल की खाड़ी में अंडमान निकोबार द्वीप समूहों में जाकर 1जून को केरल में टकराता है. मौसम विज्ञानियों का कहना है कि मानसूनी हवाएं बंगाल की खाड़ी से आगे बढ़ती हैं और हिमालय से टकराकर वापस लौटते हुए उत्तर भारत के मैदानी इलाकों पर बरसती हैं. भारत में मॉनसून राजस्थातन में मामूली बारिश के बाद खत्मट हो जाता है.
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मॉनसून की अच्छी बारिश किसानों के लिए किसी वरदान से कम नही हैं. एक आंकड़े के तहत गर्मियों के फसलों की पानी की करीब 70 प्रतिशत भरपाई मानसूनी बारिश से पूरी होती है. ऐसे में बारिश ना होने की वजह से फसलों का उत्पादन प्रभावित होता है उत्पादन कम होने की दशा में महंगाई भी बढ़ जाती है. कृषि के जानकार और पूर्व वीसी प्रोफसर के.एम. पाठक ने बताया कि मॉनसून की देरी से फसलों बहुत प्रभावित होती हैं. मतलब धान के लिए खेत तैयार करने में देरी होती है. बारिश के दौरान होने वाली सब्जियों का उत्पादन भी प्रभावित होगा. मूंग और उड़द की फसल बारिश की ना होने की वजह से प्रभावित होने में अगली फसल की बुआई पर देर हो जाती है.
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