Delhi: कभी ज्‍यादा पराली जलने पर कम पॉल्‍यूशन, कभी कम घटनाओं से भी ज्‍यादा प्रदूषण, जानिए क्‍यों होता है ऐसा

Delhi: कभी ज्‍यादा पराली जलने पर कम पॉल्‍यूशन, कभी कम घटनाओं से भी ज्‍यादा प्रदूषण, जानिए क्‍यों होता है ऐसा

पराली की समस्‍या ज्‍यों की त्‍यों बनी हुई है. इसी के साथ प्रदूषण के स्‍तर में घट-बढ़ भी जारी रहती है. लंबे समय से पराली जलाने की घटनाओं को दिल्‍ली का प्रदूषण बढ़ाने के लिए जिम्‍मेदार बताया जा रहा है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि पराली जलाने की घटनाएं दिल्‍ली की हवा को किस तरह प्रभावित करती है.

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Delhi: कभी ज्‍यादा पराली जलने पर कम पॉल्‍यूशन, कभी कम घटनाओं से भी ज्‍यादा प्रदूषण, जानिए क्‍यों होता है ऐसाऐसे घटता-बढ़ता है पराली की घटनाओं में दिल्ली का PM 2.5 (सांकेतिक तस्‍वीर)

देश में हर साल कई राज्‍याें में पराली जलाने की घटनाएं सामने आती हैं, लेकिन दिल्‍ली में बढ़ने वाले प्रदूषण के पीछे उत्‍तर भारत की पराली जलाने की घटनाओं का अध‍िक योगदान होता है. ऐसे में जानते है कि आखिर क्‍या वजह है कि जब ज्‍यादा पराली जलाने की घटनाओं के बाद भी दिल्‍ली में प्रदूषण उतना नहीं बढ़ता, जबकि‍ कभी मात्र कुछ घटनाओं में ही प्रदूषण चरम स्‍तर पर पहुंच जाता है. भले ही पिछले साल के मुकाबले इस साल उत्‍तर भारत में पराली जलाने की घटनाओं में गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन द‍िल्‍ली की हवा में इसका बुरा असर जारी है.

इस साल 1 नवंबर को पराली ने बढ़ाया प्रदूषण

31 अक्टूबर से रोजाना पराली जलाने की घटनाएं दिल्ली के PM 2.5 में 20 प्रतिशत से ज्‍यादा योगदान दे रही हैं. वहीं, केंद्र सरकार की निर्णय समर्थन प्रणाली DSS के आंकड़ों के मुताबिक, 1 नवंबर को इसका योगदान सीजन का सबसे  ज्‍यादा 35.2 प्रतिशत था. विशेषज्ञों की मानें तो खेत की आग के कुछ फैक्‍टर जैसे- आग की तीव्रता, हवा की दिशा और गति के चलते एक दिन में PM 2.5 40 तक प्रभावि‍त हो सकता है. 

इन आंकड़ों से समझें मामला

‘टाइम्‍स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वर्षों की एयर क्‍व‍ालिटी और वेदर फोरकास्‍टि‍ंग एंड रिसर्च सिस्‍टम (SAFAR) के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि 5 नवंबर, 2019 को उत्तर भारत में एक दिन में पराली जलाने की 5,300 घटनाएं हुईं थीं, लेकिन इसका दिल्‍ली की हवा के PM2.5 में योगदान मात्र 9 प्रतिशत था. यह आंकड़ा कम इसलि‍ए है, क्योंकि हवा के रुख के कारण धुआं यहां नहीं पहुंचा.

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वहीं, इसके उलट 5 नवंबर, 2018 को उत्तर भारत में 2,190 धान की पराली जलाने की घटनाएं सामने आईं थीं, लेकिन PM 2.5 के बढ़ने में इसका योगदान सबसे ज्‍यादा 58 प्रतिशत दर्ज किया गया था. यह वृद्धि हवा की दिशा और गति के चलते हुई, जिसके चलते दिल्‍ली की हवा में प्रदूषकों का ज्‍यादा प्रवेश हुआ. SAFAR के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली के पीएम 2.5 में इन वर्षाें में (1 दिन) में पराली जलाने का सबसे ज्‍यादा योगदान 2022 में 34 प्रतिशत, 2021 में 48 प्रतिशत, 2020 में 42 प्रतिशत, 2019 में 44 प्रतिशत और 2018 में 58 प्रतिशत था. 

दिल्‍ली की स्‍थानीय हवा का भी रोल

SAFAR के संस्थापक और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज (NIAS) के चेयर प्रोफेसर गुफरान बेग कहा, "अगर पराली जलाने की घटनांए 350-400  है और मौसम की स्थिति धुएं को साथ ले जाने के लिए अनुकूल हैं तो इससे दिल्ली की एयर क्‍वालिटी असर पड़ सकता है."

वहीं, अगर हवा की दिशा उत्तर-पश्चिमी नहीं है या हवा की गति कम है तो पराली जलाने वाली जगहों से निकलने वाला धुआं दिल्‍ली की हवा को प्रभावित नहीं करेगा. वहीं, अगर दिल्ली में स्थानीय हवा नहीं चल रही है तो इससे पराली जलाने के दुष्‍प्रभाव का असर बढ़ जाएगा. इसके विपरीत अगर दिल्ली में तेज हवा चलने के दौरान पराली से फैलने वाले प्रदूषकों को फैलाकर प्रदूषण के प्रभाव को कम कर सकता है. 

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