छत्तीसगढ़ की बस्तर की बेटी उषा की सक्सेस स्टोरी देश की राजधानी दिल्ली से लेकर बस्तर के बीहड़ो तक गूंज रही है. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से PM नरेंद्र मोदी ने उषा का जिक्र कर मेहनत करने वाली बेटियों का मान बढ़ाया है. नक्सल हिंसा से जूझ रहे कोंडागांव जिले की उषा सफल व्यवसायी बनने से पहले गांव में दूसरों के खेतों में दिहाड़ी मजदूरी करने जाती थी. उषा की संघर्ष की कहानी बस्तर के माथे में लगी लाल आतंक की कलंक को मिटाने में बड़ी भूमिका निभा रही है. मजदूर बेटी से लखपति दीदी तक का सफर जानने के लिए ‘आजतक’ जब उषा के गांव पहुंचा तो देखा कि PM मोदी ने जिसकी तारीफ किया वह लकड़ी लाने और मवेशी चराने जंगल गई हुई थीं. जब हमने उनसे मुलाक़ात किया तो लगा नहीं कि इतिहास विषय से ग्रेजुएट हैं.
दिल्ली के लाल किले से देश के प्रधानमंत्री के द्वारा छत्तीसगढ़ की एकमात्र बेटी का जिक्र किए जाने के सवाल में उन्होंने कहा, “मुझे और मेरे परिवार को गर्व हो रहा है कि देश के सर्वोच्च पद में आसीन व्यक्ति के द्वारा स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हमारी हौसला अफजाई कर बेटियों को आगे बढ़ने पर प्रोत्साहित किया गया.”
कोंडागांव जिला मुख्यालय से 32 किमी की दूरी पर बसा ग्राम पंचायत बादालुर की उषा कोर्राम बेहद गरीब परिवार से हैं. इनके परिवार में 9 सदस्य रहते हैं. परिवार में कृषि भूमि कम होने और कोई रोजगार नहीं होने की वजह से पूरा परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था. अपनी मां और अन्य बहनों के साथ कुछ करने की सोचती थी, मगर गरीबी व गाइडेन्स नहीं मिलने की वजह से आगे कुछ नहीं कर पा रही थी.
मगर बिहान योजना के तहत लखपति दीदी योजना के तहत इन्हें जब क़ृषि के क्षेत्र में कलस्टर दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के कृषि क्षेत्र के साथ अन्य क्षेत्रों में शासन से मिलने वाली योजना का पता लगा तो वे आगे आई. वहीं बिहान टीम ने उन्हें खाद, बीज, दवा सभी चीजें मुहैया करवाया. जिससे उषा व उसका पूरा खेती कर आर्थिक रूप से मजबूत होकर लखपति दीदी के रूप में पहचान बनाने में कामयाब हो गई हैं.
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उषा के कंधों पर पूरे घर की जिम्मेदारी थी. वह इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए दूसरों के खेतों में काम करती थी. अब उषा की जिन्दगी में बदलाव आया है और अब खुद सब्जियों का उत्पादन कर रही हैं. उषा अब सब्जी कि खेती से प्रति सप्ताह हजारों रूपये से अधिक की सब्जियां बाजार में बेच रही हैं. उषा सब्जी उत्पादन के साथ-साथ मौसम के दौरान लघु वनोपज, जैसे- महुआ, साल, इमली और टौरा को भी इकट्ठा कर बेचती हैं. जिससे उन्हें अतिरिक्त 10 से 12 हजार रूपये की आमदनी हो जाती है.
उषा कोर्राम आज सब्जी की खेती करके गांव के अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुकी हैं. उन्नत तकनीक से खेती किसानी करने के लिए गांव की 50 युवतियां उषा से खेती-किसानी के गुर सीख रही हैं. प्राकृतिक संसाधनों से जैविक खेती करने के तरीके में माहिर उषा जैविक खेती कर अत्यधिक उत्पादन लेने वाली किसानों में शामिल हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा उषा का नाम लेने से युवतियों में खासा उत्साह दिख रहा है. नक्सल प्रभावित मर्दापाल में स्थित उषा के घर में लोगों की आवाजाही भी बढ़ने लगी है.
लखपति दीदी योजना देश में महिलाओं के लिए चलाई जाने वाली स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी है. इसे शॉर्ट में एसएचजी कहते हैं. इन समूहों में महिलाओं की भागीदारी सबसे अधिक है. अब इस भागीदारी को और भी सशक्त और मजबूत बनाने की तैयारी है. इसके लिए सरकार की ओर से देश के 15,000 महिला सेल्फ हेल्फ ग्रुप को ड्रोन चलाने की ट्रेनिंग दी जाएगी. साथ ही इन महिलाओं को ड्रोन की मरम्मती का काम भी सिखाया जाएगा. इससे सरकार का मकसद है कि महिलाओं को ट्रेनिंग देकर उन्हें रोजगार मुहैया कराया जाए ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें. इसी आधार पर सरकार ने इस नई योजना का नाम लखपति दीदी योजना रखा है. ( बस्तर से इमरान खान की रिपोर्ट)
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