
तमिलनाडु के त्रिची जिले के एक छोटे से गांव मंगलम के रहने वाले किसान सलाई अरुण ने अपने जीवन की सारी जमा पूंजी लगाकर 300 से अधिक दुर्लभ सब्जियों का बीज बैंक बनाया है. बीजों की दुर्लभ किस्मों को इकट्ठा करने के अपने अनूठे मिशन के लिए वह भारतभर के किसानों से मिल चुके हैं और करीबन 80,000 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की है. इस यात्रा में विभिन्न बीजों को इकट्ठा किया है. उनके दृढ़ संकल्प और मेहनत ने न केवल उन्हें स्वयं के लिए बल्कि अन्य किसानों के लिए भी एक उदाहरण बनाया है. उन्होंने देशी बीजों को संग्रहित और बांटे जा रहे बीजों का "कार्पागथारू" ब्रांड नाम दिया है. इस प्रक्रिया में, वे न केवल दुर्लभ बीजों के संरक्षण को बढ़ावा दे रहे हैं बल्कि जैविक खेती और बीज विविधता के संरक्षण के माध्यम से कृषि संबंधी परिस्थितियों को भी सुधार रहे हैं.
अरुण का खेती से लगाव बचपन से ही था. छोटी उम्र में मां को खो देने के बाद, वह अपने दादा-दादी के साथ पले-बढ़े और अक्सर अपने दादा को खेती में मदद किया करते थे. हालांकि उनके दादाजी उन्हें खेती से दूर ही रखते थे और उन्हें खेतों में आने की इजाज़त भी बड़ी मुश्किल से देते थे. लेकिन खेती से उनका प्यार जुनून में तब बदला जब वह 2011 में मशहूर जैविक कृषि वैज्ञानिक जी नम्मालवर से मिले. अरुण ने उनके जैविक ट्रेनिंग सेशन में भाग लेने का फैसला किया. जिसके बाद वह एक ऑर्गनिक फार्मिंग एक्सपर्ट बन गए और कई दूसरे किसानों को भी जैविक खेती सिखाने में लग गए.
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इस दौरान अरुण ने देखा कि देसी सब्जियों के बीज लुप्त हो रहे हैं और किसानों के पास उगाने के लिए देसी सब्जियों के बीज ही नहीं हैं. इसी चिंता के साथ साल 2021 में उन्होंने देशभर में घूमकर बीज इकट्ठा करने का मन बनाया, लेकिन उस समय उनके पास सेविंग के नाम पर सिर्फ 300 रुपये थे. उन्होंने तमिलनाडु के किसानों और बीज रक्षकों से मिलना शुरू किया और धीरे-धीरे 80,000 किलोमीटर की यात्रा करके, 300 से अधिक दुर्लभ देशी फल-सब्जियों के बीज जमा किए.
इस दौरान वह लोगों को जैविक खेती भी सिखाते और अलग-अलग कृषि केंद्रों और बाजारों से बीज जमा करते. अरुण ने अब तक 500 किसानों को मुफ्त में दुर्लभ बीज भी दिए हैं. आज अरुण अपने गांव के एक छोटे से बगीचे में लुप्त हो चुकी देशी फल-सब्जियां उगा रहे हैं और "कार्पागथारू (Karpagatharu)" नाम के अपने छोटे से बीज बैंक के जरिए लोगों को दुर्लभ बीज बेच भी रहे हैं. उनके बीज बैंक में दुर्लभ लौकी की 15 किस्में, बीन्स की 20 किस्में और टमाटर, मिर्च, तुरई की 10-10 किस्में सहित कई और सब्जियां शामिल हैं.
खेती के प्रति अरुण का आकर्षण बचपन से ही गहरा था. अपने दादा-दादी के घर में पले-बढ़े. वह अपने दादा से बहुत प्रभावित थे, जो सक्रिय रूप से कृषि में लगे हुए थे. वे छोटी उम्र से ही खेती के तरीकों को देखते हुए बड़ा हुए. अरुण कहते हैं, हालांकि मेरे दादाजी ने मुझे खेती की गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं दी थी, लेकिन इस प्रतिबंध ने कृषि के प्रति मेरी जिज्ञासा और जुनून को बढ़ा दिया था.
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अरुण की यात्रा में 2011 में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया जब एक पुस्तक मेले में उनकी मुलाकात नम्मालवर अय्या से हुई. प्रसिद्ध जैविक खेती समर्थक नम्मालवार ने अरुण को वनागम में अपने प्रशिक्षण सत्र में भाग लेने के लिए प्रेरित किया. अरुण ने खुद को इन ट्रेनिग कार्यक्रम में शामिल कर लिया और लगभग तीन वर्षों तक दूसरों के लिए प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए. इस अनुभव ने टिकाऊ खेती और बीज संरक्षण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को मजबूत किया.
विलुप्त हो रहे पूराने और लोकल बीज संरक्षण के लिए अरुण की बीज संग्रह यात्रा तमिलनाडु में शुरू हुई, जहां उन्होंने लगभग 80,000 किलोमीटर की यात्रा की और 300 प्रकार की देशी सब्जियों के बीज एकत्र किए. उदाहरण के लिए, उन्होंने लौकी की 15 किस्में, ब्रॉड बीन्स की 20 किस्में, टमाटर, मिर्च, तुरई की 10-10 किस्में एकत्र कीं. हालांकि, उनकी महत्वाकांक्षा राज्य की सीमाओं से परे तक फैली हुई थी. अरुण पूरे भारत में यात्रा करने की इच्छा रखते थे. स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, उन्होंने 2021 में केवल 300 रुपये और दोस्तों के सहयोग से इस मिशन की शुरुआत की. उन्होंने 15 राज्यों में अपनी छह महीने की यात्रा के दौरान, बीज विक्रेताओं, संग्रहकर्ताओं और उत्साही लोगों से मिले, जो मुफ्त में बीज बांट रहे थे. यह प्रयास केवल संग्रह के बारे में नहीं था बल्कि जैव विविधता के संरक्षण के जागरुकता के बारे में भी था.
आज अरुण का काम बीज और टिकाऊ खेती के प्रति उनके जुनून के इर्द-गिर्द घूमता रहता है. वह 2 बिस्वा भूखंड पर एक बगीचे का प्रबंधन करते हैं, जिसमें सब्जियां, साग, फूल, झाड़ियां, जड़ी-बूटियां और पेड़ सहित लगभग 300-350 किस्मों की खेती होती है. उन्होंने लगभग डेढ़ साल पहले इस बगीचे का प्रबंधन शुरू किया था. अरुण ने अपने एकत्र किए गए बीजों को "करपागथारू" ब्रांड नाम से बेचना भी शुरू कर दिया है. उनके संग्रह में विभिन्न प्रकार के बीज शामिल हैं. जैसे लौकी की 15 किस्में, बीन्स की 20 किस्में और टमाटर, मिर्च और तुरई की 10-10 किस्में. वह बीज की किस्मों को साझा करने और आदान-प्रदान करने के लिए भारत भर में दोस्तों के साथ भी सहयोग करते हैं.
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