आज हम आपको बिहार के एक ऐसे किसान की सक्सेस स्टोरी बताएंगे जो बाढ़ वाले क्षेत्र में सिंघाड़े की खेती करके आसानी से कमा लेते हैं लाखों रुपये का मुनाफा. इनका नाम बिंदेश्वर रावत है और वह एक प्रगतिशील किसान हैं. ये मधुबनी जिले के उस क्षेत्र से आते हैं जहां किसानों की फसलों हर साल बाढ़ में बह जाती. ऐसे में बलियारी गांव के रावत ने इस बाढ़ का फायदा उठाते हुए सिंघाड़े की खेती शुरू की. दरअसल इस इलाके में कम से कम 06 महीने यानी जुलाई से दिसंबर तक जलभराव की समस्या रहती है. इस जलभराव में बिंदेश्वर रावत अलग-अलग तकनीक को अपनाकर खेती करते हैं. इसके लिए वह कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में रहते हैं.
बिंदेश्वर रावत ने अपनी खेती के बारे में ये बताया कि उनकी रुचि खेती की नई-नई तकनीकों को सीखने में बहुत ज्यादा है. उन्होंने कहा कि उनके खेत में जलभराव की समस्या हमेशा रहती थी, जिसमें उन्होंने सिंघाड़े की प्राकृतिक खेती शुरू की. खेत खाली होने पर वो दलहन और तिलहन फसलों की भी खेती करते हैं. इससे वह अधिक मुनाफा कमाते हैं.
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आपको बता दें कि सिंघाड़े की दो प्रकार की प्रजातियां होती हैं. इसमें एक कांटेदार और कुछ बिना कांटेदार, जिसमें किसान ज्यादातर अपने खेतों में बिना कांटे वाली प्रजाति का चयन करते हैं क्योंकि बिना कांटे वाली सिंघाड़े को तोड़ने में किसानों को बहुत आसानी होती है.
बिंदेश्वर रावत ने बताया कि सिंघाड़े की फसल के लिए नर्सरी जनवरी से फरवरी के महीने में तैयार की जाती है. वहीं इसकी एक मीटर लंबी बेल की बुवाई जून-जुलाई के महीने में तालाब या खेतों में भी की जा सकती है. वहीं नर्सरी तैयार करते समय इन बातों का ध्यान दें कि फलों को जनवरी के महीने तक भिगोकर रखें. उसके बाद अंकुरण को फरवरी के महीने में उन्हें खेत या तालाबों में डाल दें. ऐसे आपकी नर्सरी तैयार हो जाएगी. वहीं उन्होंने बताया कि इसकी रोपाई जुलाई में मॉनसून के समय करनी चाहिए. वहीं ध्यान दें कि पौधों से पौधों की दूरी 1 मीटर पर तक हो. वहीं खेत या तालाब में रोपाई करते समय पानी की मात्रा पर्याप्त होनी चाहिए.
बिंदेश्वर रावत के अनुसार सिंघाड़े की फसल से 1 हेक्टेयर तालाब में लगभग 100 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त होता है. वहीं उन्होंने बताया कि छह से सात महीनों में सिंघाड़े की प्राकृतिक खेती से वो मुनाफे के तौर पर लगभग 1.5 लाख रुपये की कमाई करते हैं.
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