सूअर पालन से हर महीने 80,000 रुपये कमाते हैं कर्नाटक के रमेश वैदू, अपनाई ये खास तकनीक

सूअर पालन से हर महीने 80,000 रुपये कमाते हैं कर्नाटक के रमेश वैदू, अपनाई ये खास तकनीक

भारत में सूअर पालन का काम काफी हद तक असंगठित है और कई किसान बेहतर तरीकों का पालन नहीं करते हैं. हालांकि, कई किसान अब मध्यम से बड़े पैमाने पर सूअर पालन को लाभदायक रोजगार के रूप में देख रहे हैं. उन्हीं में से एक हैं कर्नाटक के बेलगावी के रमेश वैदू.

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सूअर पालन से हर महीने 80,000 रुपये कमाते हैं कर्नाटक के रमेश वैदू, अपनाई ये खास तकनीकसूअर पालन कर कमा सकते हैं अच्छा मुनाफा

सूअर पालन एक ऐसा व्यवसाय है जो रोजगार के साथ-साथ अतिरिक्त आर्थिक लाभ भी प्रदान कर सकता है. चीन में एक कहावत है कि ‘जितने अधिक सूअर – उतनी अधिक खाद – उतना अधिक अनाज’, यानी जिसके पास जितने अधिक सूअर होते हैं उसकी खेती उतनी ही अच्छी होती है. भारत में सूअर पालन कई लोगों के लिए आय का एक अच्छा स्रोत रहा है, इसलिए व्यापारिक दृष्टिकोण से भारतीय लोगों के लिए कृषि से जुड़े व्यवसायों में सूअर पालन एक अच्छा और लाभदायक रोजगार हो सकता है. मीट उत्पादन की दृष्टि से विश्व स्तर पर सूअरों की अनेक अच्छी नस्लें पाई जाती हैं. इनमें से कुछ नस्लें भारत की जलवायु के लिए उपयुक्त हैं. वहीं इस बात को सही साबित किया है कर्नाटक के रमेश वैदू ने. आपको बता दें रमेश वैदू हर महीने सूअर पालन की मदद से 80,000 रुपये कमाते है. आइए जानते हैं क्या है इनके सफलता की कहानी.

लाभदायक रोजगार है सूअर पालन

भारत में सूअर पालन का काम काफी हद तक असंगठित है और कई किसान बेहतर तरीकों का पालन नहीं करते हैं. हालांकि, कई किसान अब मध्यम से बड़े पैमाने पर सूअर पालन को लाभदायक रोजगार के रूप में देख रहे हैं. उन्हीं में से एक हैं कर्नाटक के बेलगावी के रमेश वैदू. रमेश वैदू ने सूअर पालन के माध्यम से स्वरोजगार का प्रयास किया है, लेकिन उन्हें कम लाभ, उच्च चारा लागत, प्रजनन नरों की कमी और प्रजनन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

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आईसीएआर की मदद से मिली जानकारी

इस समस्या को खतम करने के लिए रमेश वैदू ने आईसीएआर-केंद्रीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान, गोवा से वैज्ञानिक सुअर पालन पर तकनीकी मार्गदर्शन और प्रशिक्षण प्रदान किया. संस्थान ने आधुनिक सुअर प्रजनन और प्रबंधन हस्तक्षेपों पर टेली-परामर्श और प्रशिक्षण भी दिया. वैदु को तकनीकी परामर्श, मूल्य-वर्धित व्यवसाय सहायता और मार्केटिंग सहायता के लिए संस्थान के कृषि-व्यवसाय इनक्यूबेशन केंद्र में ऑफ-साइट इनक्यूबेटी के रूप में भी नामांकित किया गया था.

खेतों में स्थापित की गईं प्रयोगशालाएं

संस्थान की मदद से सुअर के वीर्य के मूल्यांकन और प्रसंस्करण के लिए खेत पर प्रयोगशाला स्थापित करने में किसानों ने मदद किया. किसान को कृत्रिम गर्भाधान और एस्ट्रस इंडक्शन और सिंक्रोनाइज़ेशन प्रोटोकॉल का उपयोग करके नियंत्रित प्रजनन जैसी टिकाऊ तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया गया. इससे सबमिशन दर में 74% और गर्भधारण दर में 56% की वृद्धि हुई, और प्रजनन झुंड में कुल गर्भधारण दर 40% हो गई. जिससे सूअर पालन कर रहे किसानों को काफी फायदा होने लगा.

हर महीने हो रही कमाई

जिसके बाद वैदू ने अपने छोटे-से खेत को बड़े ब्रीडर-कम-फेटनर फार्म में बदल दिया, जिसके परिणामस्वरूप वार्षिक आय में तीन गुना वृद्धि हुई और मासिक आय 80,000 रुपये हो गई. इसके अतिरिक्त, उन्होंने प्रजनन लागत और प्रजनन सूअरों के रखरखाव पर 9,000 रुपये की बचत की. इन सफल तकनीकी हस्तक्षेपों ने पड़ोसी किसानों को उत्पादकता और आजीविका सुरक्षा बढ़ाने के लिए बेहतर प्रजनन तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया.

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