भारत के किसान अब पारंपरिक फसलों को छोड़कर बागवानी और औषधीय फसलों की खेती की ओर रुख कर रहे है, क्योंकि इनमें मुनाफा अच्छा होता है. साथ ही ज्यादातर फसलों में कम समय में उपज भी हासिल हो जाती है. औषधीय पौधों की खेती कम समय में तैयार होने के साथ ही मोटा मुनाफा देने में सक्षम है और कुछ औषधियां तो ऐसी है, जिनकी खेती में लागत नाम मात्र की होती है. यही वजह है कि किसानों को इस ओर झुकाव बढ़ रहा है. आज हम आपको एक ऐसे ही किसान की कहानी बताने जा रहे है, जिन्होंने बहुत कम लागत में लाख रुपये तक का मुनाफा कमाने का प्लान बनाया है.
यह कहानी है मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के गंजबासौदा में गांव सुनारी के रहने वाले 50 वर्षीय किसान राजेंद्र सिंह रघुवंशी की, जो परंपरागत खेती के साथ औषधीय फसल अश्वगंधा की खेती में भी हाथ आजमा रहे हैं. उन्होंने एक बीघा जमीन में अश्वगंधा की बुवाई की है, जिससे तीन-चार क्विंटल पैदावार मिलने का अनुमान है और करीब एक लाख रुपये से ज्यादा का मुनाफा हासिल होगा. परंपरागत फसल के मुकाबले यह मुनाफा के मामले में दोगुना से ज्यादा है.
दैनिक भास्कर की रिपेार्ट के मुताबिक, राजेंद्र ने बताया कि उनके क्षेत्र में ज्यादातर लोग गेहूं और चने की खेती करते हैं, जिसमें लागत और मेहनत ज्यादा लगती है, लेकिन मुनाफा उतना नहीं होता. इसलिए उन्होंने वैकल्पिक तौर पर अश्वगंधा की खेती में हाथ आजमाया है. राजेंद्र बताते हैं उनके पास 35 बीघा खेत है, जिसमें वह और उनका परिवार गेहूं, चना, मसूर, तेवड़ा और धनिया की खेती कर रहे हैं. सारी लागत और खर्चे निकालने के बाद उन्हें सालाना करीब 8 लाख रुपये का ही मुनाफा होता है.
राजेंद्र ने बताया कि एक साल पहले जन अभियान परिषद के लोग उनके गांव आए थे और अश्वगंधा की खेती को लेकर जानकारी दी तो मेरी इस खेती में रुचि बढ़ी. इसके बाद कृषि विभाग से भी इस औषधि की खेती की जानकारी हासिल की और साथ ही अश्वगंधा की मंडी और इसके भाव को लेकर भी जानकारी जुटाई. ऑनलाइन कई वीडियो भी देखे. करीब छह महीने अच्छे से सब जांच-परखकर नवंबर 2024 में एक बीघा खेत में अश्वगंधा की फसल लगाई.
राजेंद्र ने बताया कि अश्वगंधा की बिक्री के लिए मुख्य मंडिया नीमच-मंदसौर में हैं. अभी इसका भाव 35-40 हजार रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है. एक बीघा में करीब 3-4 क्विंटल उत्पादन होता है, अगर बेचने के समय भी भाव यही चलता है तो 1 लाख रुपये से ज्यादा का मुनाफा होगा. राजेंद्र ने अगले साल 10 बीघा में अश्वगंधा की खेती करने की योजना बनाई है, जिससे उन्हें प्रति बीघा 1 लाख रुपये के हिसाब से 10 लाख रुपये का मुनाफा हो सकता है. यह सीधे तौर पर पारंपरिक खेती के मुनाफे का डबल से ज्यादा होगा.
राजेंद्र ने बताया कि अश्वगंधा की खेती 5 महीने की होती है. नवंबर इसकी बुवाई के लिए बढ़िया रहता है और मार्च से अप्रैल तक फसल पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है. एक बीघा में बुवाई के लिए 2 किलोग्राम बीज बहुत होते हैं. उन्हें इसके बीज एक एक हजार रुपये किलोग्राम के हिसाब से मिले थे और खेत तैयारी करने में एक हजार रुपये और खर्च हुए. उन्होंने अच्छी पैदावार के लिए गोबर खाद का इस्तेमाल किया है, जिससे अतिरिक्त लागत नहीं बढ़ रही है. वह फसल को महीने में दो बार 15 दिन के अंतराल में पानी देते हैं. समय पर पानी नहीं देने से फसल को नुकसान होने की आशंका रहती है.
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