आज हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं कश्मीर के फारूक अहमद शेख से, जिन्हें फारूक चमनी के नाम से भी जाना जाता है. एक जमाना था जब फारूक एक फेमस विकेटकीपर हुआ करते थे, लेकिन कहते हैं न कि जो होता है भले के लिए होता है, और आज फारुक एक सफल बी कीपर है. तो चलिए आज हम आपको बताते हैं फारुक के विकेटकीपर से बी कीपर तक के सफर के बारे में.
कौन हैं फारुक?
फारूक चमनी 1990 के बारामुल्ला में एक जाने-माने नाम थे. विकेटकीपर के तौर पर वे अपनी तेज रिफ्लेक्स के लिए फेमस थे. अपने टैलेंट के चलते वे अपने शहर में काफी फेमस हुआ करते थे. स्टंप के पीछे उनके बेहतरीन स्किल के चलते उन्हें क्रिकेट क्लबों में खास जगह दी गई. हालांकि, कुछ समय के बाद फारूक ने पनीर उत्पादन में कदम रखा, लेकिन वहां उनकी दाल नहीं गली. जिसके बाद वे कुछ ऐसे काम के तलाश में थे, जिसमें उन्हें कम इन्वेस्टमेंट में ज्यादा फायदा हो.
यही वो समय था जब फारूक की जिंदगी ने मोड़ लिया. फारूक ने 2014 में बारामुल्ला का एपीकल्चर डिपार्टमेंट विजिट किया. जहां डिपार्टमेंट वालो ने फारूक को मधुमक्खी पालन के बारे में जानकारी दी. फारूक को ये आइडिया काफी पसंद आया और बस फिर वो लग गए काम पर.
दो बी कॉलोनी से 250 बी कॉलोनी का सफर
मधुमक्खी पालन का आईडिया पसंद आने पर फारुक ने केवल दो बी कॉलोनी से मधुमक्खी पालन का काम शुरू किया. बी कीपर बनने में नूरखाह, उरी के एक एपीकल्चर एक्सपर्ट के साथ फारुक ने बी कीपिंग की दुनिया में अपना पहला कदम रखा. फारुक की कड़ी मेहनत और लगन रंग लाई और इनका काम तेजी से बढ़ा. जहां उन्होंने दो मधुमक्खी कालोनियों से शुरूआत की थी. आज वे 250 से ज्यादा बी कॉलोनी में मधुमक्खी पालन करते हैं, जिनमें से सात जंगली बी कॉलोनियां भी शामिल हैं. जिससे आज वो अच्छी खासी कमाई कर लेते हैं.
एक सीजन में करते हैं लाखों की कमाई
फारूक की एक सीजन की कमाई 8 लाख से भी ज्यादा है. जो कि उनके कड़ी मेहनत का फल है. फारूक का मानना है कि मधुमक्खी पालन में काफी तरक्की है. इसमें कॉलोनी बढ़ने के साथ आर्थिक रूप से भी फायदा है. फारूक साल भर मधुमक्खी पालन का काम हैं, सर्दियों के महीनों में वे मधुमक्खी कॉलोनियों को राजस्थान और गुजरात में ले जाते हैं. जहां का गर्म मौसम शहद निकालने और पोलीनेशन बेदतर रहता है.
लोग लेने आते हैं बी कीपिंग की सलाह
अब फारुक का सफर केवल बी कीपिंग तक ही सीमित नहीं है, वे मधुमक्खी पालन के लिए एक सलाहकार बन गए हैं. वे शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (SKUAST) सहित कई प्रोग्राम में अपना एक्सपीरियंस शेयर करने जाते हैं. इसके साथ ही फारुक की छोटी बेटी मधुमक्खी पालन में फारुक की मदद करती हैं.
जिले के 400 से अधिक लोगों को मिल रहा मधुमक्खी पालन से रोजगार
बारामुल्ला जिला अब शहद उत्पादन के तौर पर जाना जाता है. यहां 2024 की शुरुआत में उत्पादन बढ़कर 812 क्विंटल हो गया है, जो कि पिछले साल के 794.64 क्विंटल से अधिक है. इतना ही नहीं मधुमक्खी पालन के चलते बारामुल्ला जिले में कई लोगों के लिए राजगार और आय का जरिया बन गया है. मधुमक्खी पालन से बारामुल्ला जिले के लगभग 400 लोगों को रोजगार मिल रहा है.
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