अगर दृढ़ निश्चय हो तो इंसान के लिए कोई भी काम मुश्किल नहीं होता. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है मंडी जिले की सुंदरनगर तहसील के डोढवां गांव की 45 वर्षीय महिला किसान कल्पना शर्मा ने. इनका संघर्षपूर्ण जीवन तब शुरू हुआ जब वर्ष 2002 में एक गंभीर दुर्घटना में इनके पति दुर्घटनाग्रस्त हो गए. घर में तीन बच्चों के पालन-पोषण और पति के इलाज का खर्च उठाना इनके लिए बहुत मुश्किल हो गया था. कल्पना ग्रेजुएट हैं, लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिली रही थी. ऐसे में उन्होंने एक हेक्टेयर जमीन पर उन्होंने खेती शुरू करने का फैसला किया. यह फैसला सही साबित हुआ.
कल्पना ने धान, गेहूं, मक्का आदि जैसी पारंपरिक फसलें उगाना शुरू कर दिया, लेकिन यह उनके परिवार के खर्चों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं था. फिर वह केवीके, मंडी के संपर्क में आईं और विशेषज्ञों ने उन्हें सब्जियां उगाने के लिए पॉलीहाउस बनाने के लिए प्रेरित किया. वर्तमान में उन्होंने तीन पॉलीहाउस का निर्माण किया है और अब उन्हें खेती से अच्छा रिटर्न मिल रहा है. आज वह संरक्षित खेती में एक सफल महिला उद्यमी के रूप में पहचान बना चुकी हैं.
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कृषि वैज्ञानिक शकुन्तला राही, पंकज सूद और रंजना ठाकुर बताते हैं कि वातावरण में अनेक प्रकार के जैविक और अजैविक कारकों द्वारा सब्जी फसलों को भारी नुकसान पहुंचता है. इसके कारण उनकी उत्पादकता एवं गुणवत्ता प्रभावित होती है. इन जैविक कारकों में विभिन्न प्रकार के विषाणु रोग, कीट व भूजनित, वायुजनित कवक, भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवाणु आदि शामिल हैं. ये जीवित कारक अधिकतर वर्षाकालीन मौसम में उगाई जाने वाली सब्जी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. अजैविक कारकों में तापमान आर्द्रता एवं प्रकाश आदि प्रमुख हैं. इनकी अधिकता और कमी दोनों ही सब्जी फसलों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता को सीधे तौर पर प्रभावित करती है.
संरक्षित खेती का मुख्य उद्देश्य सब्जी फसलों को मुख्य जैविक तथा अजैविक कारकों से बचाकर स्वच्छ एवं स्वस्थ उत्पादन करना है. भौगोलिक दृष्टि से हिमाचल प्रदेश एक पहाड़ी राज्य है. यहा की जमीन ऊंची-नीची और जोतों के आकार के छोटा होने के साथ-साथ औसत वार्षिक वर्षा कम होती है. खेती के पिछड़ेपन और कम उत्पादकता का यह प्रमुख कारण है. इस प्रकार की परिस्थितियों में संरक्षित खेती को अपनाकर इन समस्याओं का निराकरण कर किसान उत्पादकता एवं गुणवत्ता को बढ़ा सकते हैं.
कल्पना शर्मा वर्ष 2014 में कृषि विज्ञान केंद्र के सम्पर्क में आईं. इससे पहले वह मक्का, धान व गेहूं की ही खेती करती थीं. केवीके, मंडी ने उन्हें संरक्षित खेती अपनाने की सलाह दी और प्रेरित किया व विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से कौशल भी प्रदान किया. फरवरी वर्ष 2015 के दौरान, महिला किसान ने हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर व कृषि विज्ञान केन्द्र में बेमौसमी सब्जी उत्पादन व संरक्षित खेती पर प्रशिक्षण लिया. फिर कृषि विभाग की आर्थिक सहायता से 250 वर्ग मीटर का पॉलीहाउस बनाया. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
कल्पना शर्मा के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में सब्जियों की संरक्षित खेती से सकारात्मक वृद्धि देखी गई है. वर्ष 2020-21 के दौरान 750 वर्गमीटर क्षेत्रफल (तीन पॉलीहीउस 250 वर्गमीटर प्रत्येक) का उपयोग करके कुल 1,23,756 रुपये की आमदनी प्राप्त की थी, जो बढ़कर वर्ष 2022-23 में 2,01,875 रुपये हो गई.
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