बढ़ती लागत और कम जमीन के कारण लोगों का खेती से मोहभंग हो गया है. लेकिन सोनीपत के रोहट गांव के किसान मशरूम की खेती से नई पहचान बना रहे हैं. आर्थिक रूप से परेशान किसानों के लिए मशरूम की खेती को आशा की एक नई किरण के रूप में देखा जा रहा है.
ऐसे ही एक प्रतिभाशाली किसान हैं सोनीपत के गांव रोहट के रणवीर सिंह. जिन्होंने 25 साल पहले मशरूम की खेती शुरू की थी. आज उन्होंने दूसरे किसानों के लिए भी स्वरोजगार के दरवाजे खोल दिये हैं.
रणवीर पहले प्राइवेट नौकरी करते थे जिसके कारण उनके परिवार का गुजारा करना बहुत मुश्किल था. आज उनके पास 6 से 7 मजदूर काम करते हैं. इसके साथ ही उन्होंने अपने अन्य दोस्तों को भी मशरूम की खेती करने के लिए प्रेरित किया है. उनके कई अन्य दोस्त भी गांव में ही मशरूम की खेती कर आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं.
कम जगह और कम समय के साथ इसकी खेती में लागत भी बहुत कम आती है, जबकि मुनाफा लागत से कई गुना ज्यादा होता है. किसान मशरूम की खेती के लिए किसी भी कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण ले सकते हैं.
हमारे देश में मशरूम का उपयोग भोजन और औषधि के रूप में किया जाता है. प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवण और विटामिन जैसे उच्च स्तर के खाद्य मूल्यों के कारण मशरूम दुनिया भर में विशेष महत्व रखता है. भारत में मशरूम को खुम्भ, खुम्भी, भमोड़ी और गुच्ची आदि नामों से जाना जाता है. देश में मशरूम का उपयोग एक उत्कृष्ट पौष्टिक भोजन के रूप में किया जाता है.
इसके अलावा मशरूम पापड़, जिम सप्लीमेंट पाउडर, अचार, बिस्कुट, टोस्ट, कुकीज, नूडल्स, जैम (अंजीर मशरूम), सॉस, सूप, खीर, ब्रेड, चिप्स, सेव, चकली आदि बनाये जाते हैं.
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