इटावा जनपद यमुना नदी और चंबल नदी के किनारे बसा हुआ है. नदियों के किनारे पर जंगल की बंजर जमीन का क्षेत्रफल बहुत अधिक है. इस जमीन में जंगली बबूल और कटीले पौधे खूब उगते हैं. लेकिन इस बंजर जंगली कंक्रीट जमीन पर एक किसान राम सिंह राठौर ने लोगों को प्रेरणात्मक संदेश दिया है. राम सिंह राठौर की उम्र 70 वर्ष है, लेकिन इनका जज्बा और इनकी लगन मेहनत से जंगल में मंगल कायम कर दिया है. राम सिंह इस बंजर जमीन में भी थाई अमरूद उगा रहे हैं.
राम सिंह राठौर ने पूर्व में शहर में दुकान चलाई और व्यापार किया. किसी के कहने पर इन्होंने कामेट गांव के जंगल की भूमि खरीद ली. उसकी देखरेख न हो पाने के कारण भू-माफिया सक्रिय हो गए और जंगली भूमि पर कब्जा करने लगे. तभी राम सिंह राठौर शहर छोड़कर अपनी जमीन की रक्षा के लिए जंगल में कमरा बनाकर रहने लगे. चारों तरफ तार खींचकर खेती की ठानी. किसानों की तरह उन्होंने अपनी कुछ भूमि पर सरसों की फसल पैदा की. लेकिन उनके मन में फलों के पौधे उगाने का दृढ़ संकल्प था.
इसके लिए राम सिंह ने कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क किया. जिला उद्यान विभाग में पहुंचे, उनको किसी ने अमरूद, नींबू और अनार की फसल लगाने का सुझाव दिया. उन्होंने भी अपनी मेहनत से थाई अमरूद, जिसको ताइवानी अमरूद भी कहा जाता है, उसके 200 पौधे, अनार के लगभग 190 और नींबू के 100 पौधे खरीद कर लगभग डेढ़ एकड़ जमीन में लगा दिया.
सबसे बड़ी चुनौती सिंचाई की थी. इस बागान की जमीन ऊंची नीची होने और पानी की कमी से पौधों पर असर पड़ने लगा. ऐसी स्थिति में उन्होंने प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के अंतर्गत उद्यान विभाग की तरफ से ड्रॉप विधि की सिंचाई की ट्रेनिंग ली. फिर अपने खेतों में उन्होंने इस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए बूंद-बूंद पानी से पौधों का विकास किया. एक वर्ष तक लगातार देखरेख की तो लगभग दो फुट ऊंचाई के पौधों से ही थाई अमरूद की पैदावार होने लगी.
थाई अमरूद बहुत पौष्टिक होता है जिसकी पहली पैदावार उन्होंने गरीबों और बीमार मरीजों को बांटने का सोचा. ऐसा किया भी और अब भी करते हैं. थाई अमरूद पौष्टिक होने की वजह से कई बीमारियों में लाभकारी होता है. राम सिंह अपने पूरे क्षेत्र में लोगों को यह अमरूद मुफ्त बांटते हैं. इससे भी उनकी चर्चा दूर-दूर तक होती है. जिस जंगल में केवल कांटेदार पेड़-पौधे उगते हैं, वहां राम सिंह आज थाई अमरूद सहित कई फलों की खेती कर रहे हैं.
राम सिंह राठौर बताते हैं कि उनका अमरूद गुलाबी रंग का है जिसको ताइवानी अमरूद कहा जाता है. सामान्य अमरूद से यह अधिक पौष्टिक होता है. पानी की सिंचाई के लिए उद्यान विभाग ने सहयोग दिया और ड्रॉप विधि सिस्टम अपने बागान में लगवाया. थाई अमरूद के पौधों में बहुत अच्छे फल आ रहे हैं. सभी मिलाकर लगभग 500 पौधे बागान में लगे हुए हैं. पहली फसल गरीबों, मरीजों, मित्रों और जरूरतमंदों को निशुल्क बांटने की ठानी, इसलिए सभी को निशुल्क बांट रहे हैं.
राम सिंह कहते हैं, अगली बार से डेढ़ एकड़ से लगभग तीन लाख रुपये के फल प्रति वर्ष बिक्री कर सकेंगे. ड्रॉप विधि में पानी की बहुत बड़ी बचत है और इससे कम पानी में अच्छी सिंचाई हो जाती है. राम सिंह को पहले यहां के किसान मूर्ख समझते थे, लेकिन बाद में उन्हें समझ आ गया कि फलदार पौधों का वृक्षारोपण होना चाहिए. राम सिंह को बागान में मजबूरी में रहना पड़ा क्योंकि उनकी फसल पर भू-माफिया कब्जा कर रहे थे.
जिला उद्यान अधिकारी सुनील कुमार का कहना है कि कामेट गांव में राम सिंह राठौर ने अपने यहां जंगली भूमि पर थाई अमरूद लगा रखा है. शुरू में सिंचाई की समस्या हुई. लेकिन प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत ड्रिप विधि ट्रेनिंग लेने से पानी की कमी दूर हो गई. उद्यान अधिकारी ने कहा कि फलों के पौधे स्वस्थ स्थिति में हैं और फल दे रहे हैं.
थाई अमरूद एक वर्ष में ही फल देने लगता है. सामान्य फल से यह बड़ा होता है और क्वालिटी वाला होता है. इसकी बाजार में ज्यादा डिमांड होती है. इतनी कम जगह में राम सिंह को कुछ दिनों बाद लगभग ढाई लाख रुपये की आमदनी होगी, जो कि किसी फसल में संभव नहीं है. अच्छी बात यह है कि राम सिंह ने खराब जमीन को उपजाऊ बना लिया है. मेहनत रंग लाई है.(रिपोर्ट/अमित तिवारी)
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