पटवारी का सीधा संबंध किसान और गांव से है. ग्रामीण व्यवस्था में अहम किरदार निभाने वाले पटवारी की भर्ती में भारी पैमाने पर हुई गड़बड़ी की संजीदा पड़ताल 'किसान तक' ने भी की. इन गड़बड़ियों की तह में जाने पर शासन तंत्र की लापरवाही सतह पर ही उजागर हो जाती हैं. किसान तक ने इस तस्वीर को उजागर करने के साथ ही उन मेधावी छात्रों की पीड़ा को भी फलक पर लाने का प्रयास किया, जो अपनी मेहनत से परीक्षा में पास हुए लेकिन अब उनकी कामयाबी पर संशय के बादल गहरा गए हैं. पिछले एक सप्ताह की तफ्तीश में एक बात तो साफ हुई कि एमपी पटवारी परीक्षा, भ्रष्टाचार का एक मामला मात्र नहीं है, बल्कि इस मामले की परतें उधेड़ने पर साफ पता चलता है कि एमपी का एग्जाम सिस्टम ''बिन पैसा सब सून'' हो चुका है. वर्तमान की इस तस्वीर से भविष्य के अक्स का अंदाजा लगाना उतना ही आसान है, जितना पटवारी भर्ती में पैसे के खुले खेल का अंदाजा लगाना सुगम है.
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पटवारी भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी की आंच के दायरे में सबसे पहले सूबे का चंबल संभाग आया. इस परीक्षा का आयोजन राज्य कर्मचारी चयन मंडल (एसईबी) द्वारा किया गया था. 15 मार्च से 26 अप्रैल तक विभिन्न चरणों में हुई पटवारी परीक्षा का रिजल्ट 30 जून को जारी होने के कुछ दिन बाद ही ग्वालियर में इस परीक्षा के एक ही सेंटर से 114 छात्रों का चयन होने की बात सामने आई.
यह सेंटर ग्वालियर का एनआरआई इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग था. इस सेंटर पर परीक्षा दे रहे 7 छात्र, परीक्षा परिणाम की टॉप 10 सूची में भी शामिल हुए. इससे यह संस्थान अचानक सुर्खियों में आ गया. दरअसल एमपी में सत्तारूढ़ भाजपा के भिंड से विधायक संजीव सिंह कुशवाह एनआरआई इंस्टीट्यूट के मालिक हैं.
ग्वालियर में इस संस्थान को खोजते हुए पहुंची किसान तक की टीम को खंडहरनुमा दरवाजे पर बताया गया कि इमारत में किसी को अंदर जाने की इजाजत नहीं है. इस विधायक कुशवाह से जब फोन पर बात की गई तो उन्होंने भी मिलने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह शहर से बाहर हैं. कुशवाह ने अपनी सफाई में यह जरूर बताया कि उनके संस्थान की इमारत को अन्य परीक्षाओं की तरह पटवारी परीक्षा के केंद्र के रूप में इस्तेमाल हेतु सरकार को एक दिन के लिए दिया गया था. इस इमारत में परीक्षा से जुड़े सभी काम सरकारी तंत्र की निगरानी में एसईबी द्वारा कराए गए. उन्होंने कहा कि परीक्षा में संस्थान की कोई भूमिका नहीं है. वैसे भी सरकार ने इस मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं, जिससे पता चल जाएगा कि गड़बड़ी के लिए दोषी कौन है.
इस बार एमपी में पटवारी भर्ती को लेकर छात्रों में इस कदर मारामारी थी, कि इसके लिए साम, दाम, दंड, भेद सब कुछ अपनाया गया. पड़ताल में इसकी मूलत: दो वजह सामने आईं. पहली वजह रही, 5 साल बाद आई वैकेंसी में महज 6755 पद ही सृजित हो सके. इसमें भी महज 2113 पद आरक्षण से मुक्त थे. जबकि 5 साल पहले राज्य में पटवारी के 7000 पदों पर भर्ती की गई थी. छात्रों को भरोसा था कि इस बार ज्यादा वैकेंसी आएगी, लेकिन ऐसा नहीं होने से कंपटीशन बढ़ गया.
इस बार पटवारी के लिए आरक्षित पदों में 868 पद एससी, 1738 एसटी, 1518 ओबीसी और 569 ईडब्ल्यूएस कोटे में शामिल थे. भर्ती परीक्षा में उम्मीद से ज्यादा आवेदन किया जाना, गला काट कंपटीशन की दूसरी वजह बनी. एसईबी के मुताबिक पटवारी के कुल 6755 पदों के लिए 12.79 लाख आवेदन प्राप्त हुए. स्पष्ट है कि 1 पद के लिए 190 दावेदारों ने इस परीक्षा में कांटे का कंपटीशन कर दिया. आलम यह रहा कि पटवारी बनने की कतार में लगे 1000 से ज्यादा आवेदक पीएचडी, 85 हजार से ज्यादा इंजीनियर और 1 लाख से ज्यादा एमबीए डिग्री धारकों ने कंपटीशन को बहुत बढ़ा दिया.
इस मामले के उलझते सूत्रों की गुत्थी को एक ही गांव के एक जाति के दिव्यांग छात्रों के चयन ने और ज्यादा उलझा दिया. इस मामले की गड़बड़ियों के तार अब ग्वालियर से निकल कर पड़ोसी जिले मुरैना तक पहुंच गए. सरकार को मिली एक शिकायत में बताया गया कि पटवारी परीक्षा में मुरैना जिले की जौरा तहसील से 16 दिव्यांग छात्रों का चयन हुआ है. मजे की बात यह है कि सभी छात्र एक ही जाति के हैं और इनमें भी 12 छात्र कान की दिव्यांगता के प्रमाण पत्र धारक हैं. यह शिकायत उन मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित थी, जिसमें कहा गया है कि पटवारी परीक्षा में कुछ छात्र ऐसे भी पाए गए हैं, जो पुलिस एवं वन रक्षक परीक्षा में फिट थे, लेकिन पटवारी परीक्षा में वे दिव्यांग कोटे से शामिल हुए.
इन दिव्यांग छात्रों की सूची में एक नाम रमाकांत त्यागी पुत्र परिमल त्यागी भी शामिल था. किसान तक की टीम जौरा तहसील से चयनित हुए दिव्यांग छात्रों की खोज में जौरा गांव पहुंची. जहां रमाकांत त्यागी से हुई मुलाकात में पता चला कि वह खुद जन्मजात पोलियो ग्रस्त हैं और राज्य सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा में सफल होकर अब इंटरव्यू देने की तैयारी कर रहे हैं.
उन्होंने अपने सभी जरूरी दस्तावेजी सबूतों के साथ बताया कि वह अपनी मेहनत से इस परीक्षा में सफल हुए हैं. तथ्यों की पड़ताल किए बिना हड़बड़ी में उनका नाम शक की सूची में शामिल किए जाने की अपनी पीड़ा साझा करते हुए त्यागी ने बताया कि जौरा तहसील में 45 गांव त्यागी जाति की बहुलता वाले हैं. उन्होंने बताया कि फर्जीवाड़े की शक की सूची में शामिल 16 छात्रों में कुछ जौरा गांव के हैं और कुछ अन्य चयनित छात्र इसी तहसील के दूसरे गांवों के निवासी हैं.
इस मामले को एमपी हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच के समक्ष दायर जनहित याचिका में भी उठाया गया. जौरा तहसील में दिव्यांग कोटे से भर्ती होने वाले जिन 16 छात्रों के नाम सामने आए हैं, उनमें योगेश पुत्र कमलेश त्यागी, कीर्तिनंदन त्यागी पुत्र बृजेश त्यागी, धीरेन्द्र त्यागी पुत्र विनोद त्यागी, प्रवीण त्यागी एवं मनोज त्यागी पुुत्र लज्जाराम त्यागी, विजय त्यागी पुत्र राजेश त्यागी, कृष्णकांत त्यागी पुत्र सियाराम त्यागी, आकाश त्यागी पुत्र रामेश्वर त्यागी, चंद्रकांत त्यागी पुत्र गिरिराज त्यागी, योगेन्द्र पुत्र मनोज त्यागी, जयंत त्यागी पुत्र धर्मेंद्र त्यागी, आशीष त्यागी पुत्र रामप्रकाश त्यागी, अभिषेक त्यागी पुत्र रामभजन त्यागी, राहुल त्यागी पुत्र दिनेश त्यागी और आकाश पुत्र रामभजन त्यागी शामिल हैं.
मुरैना और जौरा में इन छात्रों से किसान तक की टीम ने मिलने की कोशिश की, लेकिन अधिकांश छात्र शहर से बाहर होने का हवाला देकर नहीं मिल सके. जिन छात्रों के पते मालूम हो सके उनमें चंद्रकांत त्यागी मुरैना में मुख्तयारपुर मुहल्ले के 40 नंबर मकान के निवासी हैं, मनोज त्यागी पुुत्र लज्जाराम त्यागी मुरैना में जावरा स्थित वार्ड नं 2 के निवासी हैं. वहीं, योगेन्द्र पुत्र मनोज त्यागी, मुरैना के भगेल इलाके में मकान नंबर 46 में रहते हैं. आशीष त्यागी पुत्र रामप्रकाश त्यागी मुरैना जिले की कैलारस तहसील के शेखपुर गांव के, अभिषेक त्यागी पुत्र रामभजन त्यागी मुरैना में निधान गांव के, विजय त्यागी पुत्र राजेश त्यागी और जयंत त्यागी पुत्र धर्मेंद्र त्यागी मुरैना में स्वायता गांव के, योगेश कुमार पुत्र कमलेश त्यागी मुरैना में सांकरा गांव के, धीरेन्द्र त्यागी पुत्र विनोद त्यागी मुरैना के बुढ़ेरा गांव में मकान नं. 63/3 के निवासी हैं और राहुल त्यागी पुत्र दिनेश त्यागी मुरैना में अम्भा के वार्ड नं. 14 स्थित मकान नं. 259/1 में रहते हैं. इसके अलावा कीर्तिनंदन त्यागी पुत्र बृजेश त्यागी भी मुरैना के शेखपुर गांव में मकान नं. 87/2 के निवासी है तथा आकाश त्यागी पुत्र रामेश्वर त्यागी मुरैना में डिपेरा इलाके के मकान नंबर 43/1 ए के निवासी हैं. इनमें से कुछ से संपर्क साधने की भी कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया.
गौरतलब है कि बीते कुछ सालों में चंबल संभाग के ग्वालियर, मुरैना और भिंड जिले, पुलिस से लेकर पटवारी तक, तमाम भर्ती परीक्षाओं में पैसे के बल पर नौकरी दिलाने का गढ़ बन चुके हैं. इन जिलों के देहात इलाकों में लोग यह कहते सुने जा सकते हैं कि वे दिन लद गए जब खूंखार डकैतों के लिए कुख्यात रहे चंबल संभाग में खुली जीप पर हथियारबंद लुटेरे बीहड़ में मिलते थे, अब एसी दफ्तरों में मिलते हैं.
किसान तक की टीम ने ग्वालियर में इस परीक्षा के सफल छात्रों की खोजबीन शुरू की. तब तक इस परीक्षा में शामिल हुए छात्रों ने इंदौर और भोपाल सहित तमाम जिलों में धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया था. राज्य के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भी इन छात्रों का अपने तईं सियासी इस्तेमाल कर रही है. ऐसे में मेधावी छात्र और भ्रष्टाचार का सहारा लेने वाले चयनित अभ्यर्थियों में भेद कर पाना कठिन हो गया.
इस बीच ग्वालियर की एक कोचिंग के माध्यम से कुछ चयनित अभ्यर्थियों के संपर्क सूत्र मिले. ये छात्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलकर वापस लौटे थे. उनमें से विकास यादव, राज्य सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा का सफल छात्र था और दूसरा केपी सिंह, लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी फौज से लड़ चुका पूर्व सैनिक था. दोनों ने किसान तक के साथ बेबाकी से बात करते हुए अपनी पीड़ा साझा की. विकास ने कहा कि उन्होंने अपनी मेहनत से परीक्षा पास की है, लेकिन इस भ्रष्ट तंत्र के कारण उन्हें भी पैसे के बल पर भर्ती होने वाले दोषी छात्रों के समान ही शक की नजर से देखा जा रहा है.
केपी सिंह ने बताया कि वह फौज में भी अपनी मेहनत से भर्ती हुआ था, उसे उम्मीद थी कि सरहद पर देश की सेवा करके अब वह पटवारी बन कर गांव की सेवा करेगा, मगर यहां तो दोषी और निर्दोष, एक ही तराजू में तौले जा रहे हैं.
एमपी पटवारी भर्ती मामला पेचीदा है नहीं, बल्कि बना दिया गया है, इसकी बानगी भी ग्वालियर में ही देखने को मिल गयी. इस मामले में कोचिंग सेंटरों की भूमिका को तलाशते हुए किसान तक की टीम ग्वालियर के कोचिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष एमपी सिंह से मिली. सिंह पेशे से वकील हैं और मेडिकल एवं इंजीनियरिंग की कोचिंग के संचालक भी हैं.
उन्होंने एक चौंकाने वाली जानकारी देते हुए बताया कि 10 अप्रैल को पटवारी परीक्षा होने से 5 दिन पहले यानी 5 अप्रैल को एमपी पुलिस की क्राइम ब्रांच को खुफिया जानकारी मिली कि ग्वालियर के थाटीपुर इलाके में दो युवक पटवारी परीक्षा में गड़बड़ी करने के लिए फर्जी दस्तावेज बना रहे हैं. क्राइम ब्रांच ने तत्काल उस जगह पर छापेमारी कर निशानदेही वाली जगह से दोनों युवकों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. ये दोनों युवक पटवारी परीक्षा के अभ्यर्थी भी थे.
उन्होंने इस मामले में क्राइम ब्रांच द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के हवाले से बताया कि पुलिस ने गिरफ्तार युवकों की निशानदेही पर तीन अन्य को भी पकड़ लिया. एडवोकेट सिंह ने कहा कि इस गिरफ्तारी की शुरुआती जांच के आधार पर परीक्षा में बड़े पैमाने गड़बड़ी होने की पुख्ता जानकारी सरकार के पास थी. फिर भी 10 अप्रैल को परीक्षा हुई. इतना ही नहीं, 10 जून को दोनों गिरफ्तार युवकों को एमपी हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच से जमानत भी मिल गई. इस आधार पर तीन अन्य संदिग्धों को भी उसी दिन जमानत मिल गई. सिंह ने कहा कि यह घटनाक्रम अपनी कमियों पर पर्दा डालने वाले सरकारी तंत्र के लचर रवैये का सबसे बड़ा सबूत है.
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शिवराज सरकार हालांकि इस मामले की जांच के आदेश दे चुकी है, लेकिन एमपी के बहुचर्चित व्यापम भर्ती घोटाले की जांच के हश्र से वाकिफ एडवोकेट उमेश बोहरे ने इस मामले को जनहित याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट की दहलीज तक पहुंचा दिया है. बोहरे ने याचिका में कहा कि भर्ती परीक्षाओं में गड़बड़ी के लिए कुख्यात चंबल संभाग ही नहीं, बल्कि प्रदेश के सभी जिलों में पटवारी परीक्षा के दौरान भारी धांधली हुई है.
उन्होंने ग्वालियर, मुरैना और भिंड जिलों में फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने के पुख्ता सबूत होने का दावा करते हुए अदालत से गुहार लगाई कि पिछले 20 सालों से ऐसी धांधली चल रही है, लिहाजा 2003 से 2023 के दौरान पूरे प्रदेश में दिव्यांग प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी पाने वालों का भौतिक सत्यापन कराया जाए. अदालत ने इस याचिका को गंभीरता से लेते हुए सरकार को बोहरे की मौजूदगी वाली एक समिति बनाकर जांच कराने एवं इसकी रिपोर्ट अदालत में पेश करने का आदेश दिया है. हालांकि सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि इस मामले में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज, जस्टिस राजेंद्र कुमार वर्मा पटवारी भर्ती परीक्षा की जांच करेंगे. यह जांच रिपोर्ट 31 अगस्त तक सरकार को मिल जाएगी.
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