
दोपहर के करीब 12 बज रहे होंगे. काली थैली में चना का सत्तू लिए तेजी से घर की ओर जा रहे. 80 वर्षीय बहादुर दास मोतिहारी चीनी मिल के पास रुकते है. बिरान पड़ी सुगर मिल को देखते हुए कहते हैं कि यह चीनी मिल अब चालू होने वाली नहीं है. इस मिल को लेकर बात करना भी मूर्खता है. जब देश के प्रधानमंत्री मोदी जी इस चीनी मिल के चीनी से चाय पीने का वादा कर के अभी तक चाय पीने नहीं आए. तो अब किसी दूसरे की औकात नहीं है कि वह इस चीनी मिल के चीनी का चाय पीने का वादा करे. हालांकि, पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) के सांसद राधा मोहन सिंह का कहना है कि पीएम ने कभी मोतिहारी चीनी मिल चालू करने की बात नहीं कही है.
राधा मोहन सिंह के इस बयान को लेकर बहादुर दास कहते हैं कि सांसद महोदय झूठ बोल रहे हैं. जिन्होंने ने आज तक छोटा बड़ियारपुर जहां चीनी मिल है. वहां के लोगों को शुद्ध पानी नहीं उपलब्ध करा सके. उन्हें चीनी मिल पर बोलने का अधिकार नहीं है. बहादुर दास जैसे करीब 300 से अधिक कर्मचारी जिनका सैलरी और रिटायर होने के बाद का पैसा नहीं मिला हैं.
वहीं, कई किसानों के गन्ना का पैसा आज भी बाकी है. दास को सन् 1967 से चीनी मिल में सुपरवाइजर के पद पर नौकरी मिली. जीवन का एक लंबा समय यहां गुजारने के बाद जब रिटायर हुए तो पैसे की जगह सांत्वना मिली. उनका कहना है कि अभी तक एक रुपया नहीं मिला है. लेकिन इस मिल के चक्कर में तीन महिना जेल में गुजार आया हूं. पैसे के इंतजार में जीवन भी खत्म हो जाएगा.
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मोतिहारी के रहने वाले समाजसेवी विश्वजीत मुखर्जी कहते हैं कि जब सुबह चीनी मिल का हूटर बचता था. तो मोतिहारी सहित आसपास के लोगों के लिए सुबह का अलार्म सुख समृद्धि का अलार्म हुआ करता था. साल 1995-96 से पहले तक मिल के बाहर चाय और नसता के दुकान चलाने वाले भी दो से तीन हजार रोज कमा लेता था. सन् 1998 के बाद से चीनी मिल पर ग्रहण लगना शुरू हुआ और 2012-13 के आसपास आते-आते पूरी तरह से पूर्ण ग्रहण लग गया.
हाल के समय में चीनी मिल का मामला न्यायालय में चल रहा है. अंग्रेजों के समय मोतीहारी शहर को दो भाग में बांटने वाली मोती झील के दूसरे किनारे पर 1933 के आसपास छोटा बड़ियारपुर इलाके में चीनी मिल शुरू किया गया था. उसके बाद से जब तक चीनी मिल चला मोतिहारी के लोगों की आर्थिक स्थिति बहुत सही थी. लेकिन चीनी मिल बंद होने के साथ किसानों से लेकर मोतीहारी शहर की जीडीपी बिगड़ती चली गई.
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विश्वजीत मुखर्जी कहते हैं कि कभी शानो-शौकत से चलने वाले चीनी मिल के मजदूर आज दो-दो रुपये के मोहताज है. इस मिल की चीनी विदेश तक जाती थी. कभी पूर्वी चंपारण के किसानों के लिए गन्ना कैश क्रॉप हुआ करता था. लेकिन आज गन्ना की खेती ही इस इलाके के लिए एक इतिहास बन चुकी है.
बिगड़े हुए हालात के बीच साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान पीएम ने मोतीहारी के गांधी मैदान से इसी चीनी मिल के चीनी से चाय पीने की बात कहें तो उस दौरान किसानों से लेकर यहां काम करने वाले मजदूरों में एक उम्मीद की किरण जगी. यहां के लोगों की मानें तो समय के साथ पीएम मोदी चाय की चुस्की पर मौन हो गए. उसके बाद कई बार मोतीहारी आना हुआ. चीनी मिल का मुद्दा इतिहास के काले पन्नों में सिमट कर रह गया.
इसी चीनी मिल में 2015 तक काम करने वाले कमता सिंह कहते हैं कि 1998 में मेरी यहां नौकरी स्थाई हुई. उस दौरान आठ से नौ हजार रुपये के बीच महीने का सैलरी था. वहीं आज भी चीनी मिल रहता तो 40 हजार रुपये सैलरी होती. चीनी मिल बंद होने से मेरे जैसे 400 से अधिक मजदूर उम्र के उस पड़ाव में बेरोजगार हो गए, जिस उम्र में कोई दूसरी नौकरी नहीं मिलने वाली है.
कभी इस मिल में काम करने वाला कर्मचारी हो या किसान उन्हें एक दो लाख रुपये की जरूरत हो या किसी दुकान से सोना चांदी लेना हो. तो एक पर्ची देकर पैसा और समान मिल जाया करता था. अब यह बातें पुरानी हो चुकी हैं. इस चीनी मिल से करीब दस कोस एरिया के लोगों के घर का चूल्हा जलता था. आज तो चूल्हा जलाने के लिए राशन भी बड़ी कठिनाई से मिलती है.
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