खेती वाली ज़मीन जिसे मृदा कहते हैं, उसकी उर्वरता में कमी आने से किसानों के लिए उत्पादन बनाए रखना एक चुनौती बन गई है. अधिक फसल उपजाने के लिए अब पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा रासायनिक उर्वरकों की जरूरत होती है, जिससे लागत बढ़ती है और खेती से मिलने वाला लाभ कम हो रहा है. इसके अलावा, अधिक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मृदा की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है, जिससे खेत ऊसर बनते जा रहे हैं. इसलिए मृदा-स्वास्थ्य को बनाए रखना आधुनिक कृषि की सबसे बड़ी और कठिन चुनौतियों में से एक है. फसल में पौधों को बड़ा होने के लिए कई प्रकार के पोषक तत्वों की जरूरत होती है, सघन कृषि और फसलों में केवल एकल पोषक तत्व इस्तेमाल करने से मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी आई है. इससे फसलों के उत्पादन में गिरावट आई है. धान-गेहूं फसल चक्र में सूक्ष्म पोषक तत्वों का अधिक दोहन हुआ है, जिसकी आपूर्ति करना जरूरी है. नहीं तो, इनकी कमी से फसल की बढ़वार से लेकर उपज तक पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है.
आईसीएआर-आरसीईआर, पटना में भूमि एवं जल प्रबंधन विभाग के हेड डॉ. आशुतोष उपाध्याय कहते हैं कि अगर पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, तो पौधों में कई तरह के रोग लग जाते हैं, जिससे फसल खराब हो जाती है. मुख्य पोषक तत्वों के अलावा कैल्शियम, जिंक, सल्फर, बोरान आदि सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी जरूरत होती है. इनके अभाव में फसलों में कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं. इसलिए इनकी पूर्ति बेहद ज़रूरी है.
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देश में 2.52 लाख मृदा नमूनों के अध्ययन से सिद्ध हुआ है कि भारत में सबसे ज्यादा जस्ते की कमी है. इन नमूनों में से क्रमशः 49 प्रतिशत में जिंक, 12 प्रतिशत में आयरन, 4 प्रतिशत में मैगनीज, 3 प्रतिशत में कॉपर, 33 प्रतिशत में बोरान और 41 प्रतिशत नमूनों में सल्फर की कमी पाई गई थी. पूरे भारत में धान-गेहूं फसल पद्धति क्षेत्रों में सबसे ज्यादा जिंक की कमी पाई गई है. डॉ. उपाध्याय ने जानकारी दी कि सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से पौधों पर कई तरह के लक्षण दिखाई देते हैं, जिन्हें देखकर पहचाना जा सकता है कि किस सूक्ष्म पोषक तत्व की कमी है.
फसलों के लिए जिंक यानी जस्ता एक अहम सूक्ष्म पोषक तत्व है. भारत के 49 फीसदी से अधिक मिट्टी में जिंक की कमी है. जिंक पौधे में कैरोटीन और प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होता है इसके अलावा हार्मोन्स के जैविक संश्लेषण में सहायक एन्जाइम क्रियाशीलता बढ़ाने में सहायक होता है. अगर जिंक की कमी हो जाती है तो पत्तियों का आकार छोटा, पत्तियां पीले धब्बे वाली बन जाती हैं. जिंक की कमी से धान और गेहूं में पत्तियों का पीला पड़ना, मक्का और ज्वार में ऊपरी पत्तियां सफेद होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.
तिलहनी फसलों के साथ अन्य फसलों के लिए सल्फर यानी गंधक बहुत जरूरी पोषक तत्व है. सल्फर तिलहनी फसलों में अमीनो अम्ल, प्रोटीन, वसा, तेल और विटामिन्स के निर्माण में सहायक होता है. यह तिलहनी फसलों में तेल की प्रतिशत मात्रा बढ़ाता है. प्याज और लहसुन की फसलों में इसकी कमी से पैदावार प्रभावित होती है. सल्फर के प्रयोग से तंबाकू की पैदावार में 15 से लेकर 30 फीसदी तक बढ़ोत्तरी होती है. अगर सल्फर की कमी होती है, तो फसलों में नई पत्तियों का पीला पड़ना और सफेद हो जाना, मक्का, कपास, तोरिया और टमाटर फसल के तनों का लाल होना, सरसों के पत्तियां प्यालेनुमा हो जाती हैं.
बोरान पौधों में शर्करा बढ़ाने में सहायक होता है. फसल और फल वाले पौधों में परागण और प्रजनन क्रियाओं में सहायक होता है क्योंकि बोरान परागण और परागकोष के लिए एक जरूरी तत्व है, जिससे ज्यादा फल लगते हैं. दलहनी फसलों की जड़ ग्रंथियों के विकास में यह सहायक होता है. अगर बोरान की कमी हो जाती है, तो पौधे की जड़ों की वृद्धि विकृत हो जाती है और पौधा झाड़ीनुमा और बौनापन बन जाता है. पत्तियों का आकार विकृत हो जाता है, कलियां कम हो जाती हैं, फूल और बीज कम हो जाते हैं. फूलों में निषेचन में बाधा आती है. अधपके फल और फलियां गिरने लगती हैं. पौधे के तने और पत्तियों पर दरारें पड़ जाती हैं.
आयरन यानी लोहा से फसलों में साइटोक्रोम्स, फैरीडोक्सीन और हीमोग्लोबिन मुख्य अवयव हैं. पौधे के क्लोरोफिल और प्रोटीन के निर्माण में यह सहायक है. अगर आयरन की कमी हो जाए तो पत्तियों के किनारों और नसों का अधिक समय तक हरा बना रहता है. नई कलिकाओं की मृत्यु हो जाती है, तने छोटे रह जाते हैं. धान में आयरन की कमी से क्लोरोफिल रहित पौधा होता है यानी पौधा सफेद हो जाता है.
फसलों के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों में कैल्शियम बेहद जरूरी तत्व है क्योंकि यह दलहनी फसलों में प्रोटीन निर्माण के लिए जरूरी है. तम्बाकू, आलू, और मूंगफली के लिए यह बेहद लाभकारी तत्व है और पौधों में कार्बोहाइड्रेट संचालन में सहायक होता है. अगर पौधों में कैल्शियम की कमी हो जाती है, तो नई पत्तियों के किनारों का मुड़ना और सिकुड़ना, अग्रिम कलिका का सूख जाना, जड़ों का विकास कम होना, फल और कलियों का अपरिपक्व अवस्था में मुरझाना जैसी समस्याएं और लक्षण दिखते हैं.
पौधों के लिए मैग्नीशियम एक जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्व है. पौधों के लिए भोजन के क्लोरोफिल बनाने में यह एक अनिवार्य अंग है. यह पौधों के अंदर कार्बोहाइड्रेट संचालन में सहायक होता है और पौधों में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट और वसा के निर्माण में सहायक होता है. पौधों में मैग्नीशियम की कमी होने पर पौधे की पत्तियां आकार में छोटी और ऊपर की ओर मुड़ी होती हैं. दलहनी फसलों में पत्तियों की मुख्य नसों के बीच पीला पड़ जाता है.
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कॉपर.यानी तांबा पौधे के इंडोल एसीटिक अम्ल (वृद्धिकारक हार्मोन) के संश्लेषण में सहायक होता है. यह फसलों में फंगस से फैलने वाले रोगों को रोकने में सहायक होता है. लेकिन अगर कॉपर की कमी हो जाती है, तो फलों के अंदर रस का निर्माण कम होता है. नींबू जाति के फलों में लाल-भूरे धब्बे और अनियमित आकार बनने लगते हैं.
इसके अलावा, सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे मैंगनीज प्रकाश संश्लेषण में सहायक होता है. मोलिब्डेनम से दलहनी फसलों में नत्रजन स्थिरीकरण होता है. क्लोरीन पौधों में पानी रोकने की क्षमता बढ़ाता है. इसके अलावा, निकल, सोडियम, कोबाल्ट, सिलिकॉन, सेलेनियम इत्यादि सूक्ष्म पोषक तत्व फसलों के लिए जरूरी हैं क्योंकि इनकी कमी से फसलों की बढ़वार और उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.
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