राजस्थान के बीकानेर में पारा 45 डिग्री पार कर गया है. इस बीच लोकसभा चुनाव अपने पीक पर है. बीते रोज ही तीसरे चरण का मतदान पूरा हो चुका है. इस बार का चुनाव राजनीतिक दलों के लिए जटिल हो या नहीं हो, लेकिन इस चुनाव ने मतदाताओं के पसीने छुड़ा दिए हैं. इसका मुख्य कारण प्रचंड गर्मी है.
असल में इस बार अप्रैल से ही गर्मी ने अपना प्रचंंड रूप दिखना शुरू कर दिया है. हालांकि प्रत्येक लोकसभा चुनाव गर्मी में ही होते हैं, लेकिन इस लोकसभा चुनाव में अप्रैल-मई के महीने चल रही लू ने मतदाताओं को आफत में डाल दिया है, जिसका असर मतदान प्रतिशत पर भी दिख रहा है.
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मसलन, मतदान प्रतिशत में गिरावट देखी जा रही है. अब, जब जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां गंभीर होती दिख रही है तो ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि क्या आने वाले लोकसभा चुनाव भी गर्मियों में कराए जाएंगे. क्या गर्मी में चुनाव कराना मजबूरी है. आइए इसी कड़ी में इस साल पड़ रही प्रचंड गर्मी, लू की कहानी समझते हैं. साथ ही जानेंगे कि क्या लोकसभा चुनाव गर्मी में कराने की मजबूरी है या संविधान में इसका विकल्प दिया हुआ है.
चुनावी समर में भारतीय शहर लू का सामना कर रहे हैं. इसकी जानकारी अमेरिकी अनुसंधान संगठन, क्लाइमेट सेंट्रल ने दी है. क्लाइमेट सेंट्रल के अनुसार, मतदान शुरू होने के बाद से भारत के 51 प्रमुख शहरों में से 36 में तीन या अधिक दिन तापमान 37 डिग्री से ऊपर दर्ज किया गया है, जबकि अप्रैल के महीने में भारत के 18 शहरों में तापमान तीन दिनों से अधिक 40 डिग्री को पार कर गया है. 3 दिन से अधिक 40 डिग्री से पार की स्थिति को गंंभीर माना जाता है.
देश में इस बार लोकसभा चुनाव के लिए 7 चरणों में मतदान प्रस्तावित हैं, यानी 19 अप्रैल से शुरू हुआ चुनाव 1 जून को 7वें चरण के मतदान के साथ समाप्त होगा, लेकिन अप्रैल और मई के शुरुआती सप्ताह में पड़ रही गर्मी ने ही देश के 90 करोड़ से अधिक मतदाताओं को मुश्किल में डाला दिया है. मसलन, अभी तक 3 चरणों के लिए हुए मतदान में मतदाता गर्मी की वजह से बाहर निकल कर वोट डालने से परहेज करते हुए दिख रहे हैं.
आलम ये है कि देश के कई राज्यों में तापमान 40 डिग्री पार कर चुका है, जिसमें बंगाल, ओडिशा भी शामिल हैं. इस कारण लू की स्थितियां बनी हुई हैं. गर्मी पड़ने के कारणाें की पहचान की जाए तो इसमें प्री मॉनसून बारिश में कमी मुख्य वजह है. असल में जून-जुलाई से शुरू होने वाले मॉनसून सीजन से पहले देश में प्री मॉनसून बारिश होती है. इस सीजन में प्री मॉनसून बारिश में 20 फीसदी की कमी दर्ज की गई है, इस वजह से तापमान में बढ़ोतरी हुई है.
वहीं IMD का कहना है कि ओमान और आसपास के क्षेत्रों में एंंटीसाइक्लोन बनने की वजह से मौसम प्रणाली के निर्माण पर असर पड़ा है. इस वजह से ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे पूर्वी राज्यों में समुद्री हवाएं कट गई हैं. इस कारण से तापमान में बढ़ोतरी हो रही है.
देश में लोकसभा चुनाव हमेशा से गर्मी में ही कराए जाते रहे हैं, लेकिन इस साल गर्मी की वजह से ही चुनाव में मतदाताओं की चुनौती बड़ी हुई हैं. अब, जब जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां भविष्य में जटिल होने की आशंकाएं तो गर्मी के मौसम में लोकसभा चुनाव का आयोजन भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है. ऐसे में भविष्य के लोकसभा चुनाव काे लेकर अभी से चर्चाएं शुरू होने लगी हैं, जिसके तहत क्या गर्मी में लोकसभा चुनाव कराना मजबूरी है, जैसे सवाल पूछे जाने लगे हैं.
इस सवाल के जवाब में भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा कहते हैं कि चुनाव में परेशानियों को देखते हुए हमेशा से मौसम की स्थिति को ध्यान में रखा जाता है. इस बात को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग पहले से ही मतदान के दिन मतदाताओं को ठंडी जगहों पर कतार में खड़ा करने की व्यवस्था, पीने के पानी की उपलब्धता जैसे इंतजाम करता है.
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लवासा कहते हैं कि 180 दिनों में कभी भी चुनाव कराए जाने का प्रावधान है, लेकिन चुनाव आयोग को ये सुनिश्चित करना होगा कि सरकार के कार्यकाल का एक दिन भी कम ना हो. वहीं इसमें एक समस्या ये भी है कि फरवरी-मार्च में स्कूल और कॉलेजों में परीक्षा होती है. ऐसे में शैक्षणिक चक्र भी नहीं बदला जा सकता है. हालांकि अगर तापमान में बढ़ाेतरी जारी रहती हैं तो कम समय में पूरे देश में चुनाव कराए जाने की योजना पर विचार किया जा सकता है.
वहीं इस विषय को लेकर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत कहते हैं कि संसदीय चुनाव कराने के लिए छह महीने का समय है. इस नियम के अनुसार नई सरकार के लिए चुनाव 17 दिसंबर 2023 और 16 जून 2024 के बीच प्रस्तावित होते हैं, लेकिन कई राज्यों में विधानसभा चुनाव नवंबर और दिसंबर में निर्धारित थे. इन हालातों में संसदीय चुनाव आमतौर पर कम से कम 2-3 महीने के अंतराल के बाद आयोजित किए जाते हैं. इस वजह से मार्च में लोकसभा चुनाव 2024 की घोषणा की गई.
अप्रैल- मई से पहले क्या लाेकसभा चुनाव कराए जा सकते हैं. इस सवाल के जवाब में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत कहते हैं कि चुनाव आयोग को इस मामले में एक सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए. जहां राज्यों के विधानसभा चुनावों में दो महीने की देरी और लोक सभा चुनाव जल्दी कराने पर सार्वजनिक सहमति की तरफ बढ़ सके. अब 2029 में अगले आम चुनाव के लिए समय 1 जनवरी से 30 जून के बीच है. फरवरी और मार्च चुनाव कराने का सबसे अच्छा समय है. या फिर, कानून में एक संशोधन करने की जरूरत है, जो चुनाव आयोग को राज्य विधानसभा चुनाव थोड़ा पहले कराने का अधिकार दे.
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