पपीते में फरवरी में प्रति पौधा 25 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फॉस्फोरस, और 100 ग्राम पोटाश का प्रयोग करें. बागों की निराई-गुड़ाई और सफाई सुनिश्चित करें. प्रवर्धन के लिए फरवरी से मार्च तक बीजों की बुआई की जा सकती है. बुआई से पहले बीजों का शोधन जरूर करें.
सिंचाई की सुविधा होने पर फरवरी माह में पौधों की रोपाई की जा सकती है, इसे शाम के समय करना बेहतर होता है. रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें और पौधे जमीन में जब तक ठीक से न लग जाएं तब तक प्रतिदिन सिंचाई जारी रखें.
पपीते पर मिट्टी चढ़ाना जरूरी है. प्रत्येक गड्ढे में एक पौधा लगाकर जड़ों के आसपास 30 सें.मी. की गोलाई में मिट्टी ऊंची करें, ताकि सिंचाई का पानी जड़ों के पास जमा न हो और पौधा सीधा खड़ा रह सके. खेत को खरपतवार से मुक्त रखें और जनवरी-फरवरी में हाथों से गुड़ाई करें.
जनवरी में लीची के पौधों को पाले से बचाने के लिए उचित प्रबंध अवश्य करें. फरवरी में लीची के फूल आने के समय सिंचाई न करें, क्योंकि इससे फूलों के गिरने की आशंका होती है. हालांकि, फूल आने से पहले और बाद में सिंचाई की समुचित व्यवस्था करें.
लीची में चूर्णिल आसिता रोग के प्रकोप से बचाव के लिए संस्तुत रसायनों का प्रयोग करें. फुदका कीट से बचाव के लिए 0.7-1.0 मिली प्रति लीटर पानी में इमिडाक्लोप्रिड या 2-3 ग्राम प्रति 5 लीटर पानी में थायोमेथोक्साम का छिड़काव करें.
लीची को रोगों से बचाव के लिए कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट की आधी मात्रा यानी 1.5 किलोग्राम प्रति पौधा, फरवरी में प्रयोग करें.
नए लगाए गए बागों की सिंचाई करें और बागों की निराई-गुड़ाई और सफाई का काम सुनिश्चित करें. इससे पौधे की वृद्धि होगी और फूल खूब आएंगे.
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