महाराष्ट्र के अकोला जिले के अकोट तालुका में संतरा उत्पादक किसानों के लिए यह साल काफी मुश्किल भरा साबित हो रहा है. यहां देथसुकी नामक बीमारी के कारण संतरे की फसल को भारी नुकसान हो रहा है. किसान लगातार कीटनाशक और दवाइयों का छिड़काव कर रहे हैं, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं दिख रहा है. किसानों के भारी भरकम खर्च के बावजूद 65 फीसदी तक फल गिर रहे हैं, जिससे संतरे की पैदावार और किसानों की आय बुरी तरह प्रभावित हुई है.
पिछले साल प्रति हेक्टेयर 15 लाख रुपए कमाने वाले किसान इस बार सिर्फ 61 हजार रुपए की फसल बचा पाए हैं. लगातार बढ़ते खर्च और घटते मुनाफे के कारण संतरा किसानों की आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही है. किसानों का कहना है कि अगर यही हाल रहा तो वे संतरे की खेती छोड़कर किसी दूसरी फसल की ओर रुख कर लेंगे.
जिन किसानों के संतरे के बगीचे प्रभावित हुए हैं, उनका कहना है कि जिन खेतों तक गाड़ियां पहुंच सकती हैं, वहां तो कृषि अधिकारी निरीक्षण कर रहे हैं, लेकिन जिन खेतों तक सड़क नहीं है, वहां किसानों की कोई नहीं सुन रहा है. किसानों ने कीटनाशकों का छिड़काव किया और अन्य प्रयास किए, फिर भी केवल 35 प्रतिशत उत्पादन ही बचा.
किसानों की शिकायत है कि बाजार में संतरे का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है, जिससे किसानों की आर्थिक मुश्किलें और बढ़ गई हैं. सरकार को कम से कम एक लाख रुपये प्रति हेक्टेयर मुआवजा घोषित करना चाहिए. कृषि अधिकारियों को हर प्रभावित किसान तक पहुंचने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए.
किसानों ने अपनी मांग उठाते हुए कहा कि बाजार में संतरे का सही मूल्य दिलाने के लिए सरकारी हस्तक्षेप जरूरी है. किसानों का कहना है कि अगर जल्द ही इसका समाधान नहीं निकाला गया तो अगला सीजन और भी बुरा हो सकता है. सरकार और कृषि विभाग को इस गंभीर स्थिति पर तुरंत ध्यान देना चाहिए.
अमरावती के अकोला, मोर्शी, नागपुर जिले के वरुड और रामटेक इलाके नागपुरी संतरे के उत्पादन के लिए मशहूर हैं. इन इलाकों से सबसे ज़्यादा निर्यात बांग्लादेश को होता था, लेकिन हाल ही में वहां आयात शुल्क बढ़ने से निर्यात में भारी गिरावट आई है. इस वजह से स्थानीय बाज़ार में संतरे की आपूर्ति तो बढ़ गई है, लेकिन मांग कम होने की वजह से किसानों को उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं.
संतरा उत्पादक किसान पहले से ही सरकारी योजनाओं और कृषि विभाग की अनदेखी का सामना कर रहे थे, लेकिन अब मौसम की मार से स्थिति और खराब हो गई है. लगातार बदलते मौसम और नई बीमारियों से फसल प्रभावित हो रही है. किसानों ने सरकार से अपील की है कि इस समस्या पर ध्यान दिया जाए और किसानों की समस्या का समाधान किया जाए.
संतरे में लगे रोग की वजह से जिन किसानों के बगीचे प्रभावित हुए हैं, उनका कहना है कि जिन खेतों तक गाड़ियां पहुंच सकती हैं, वहां तो कृषि अधिकारी निरीक्षण कर रहे हैं, लेकिन जिन खेतों तक सड़क नहीं है, वहां किसानों की कोई नहीं सुन रहा है. किसानों ने कीटनाशकों का छिड़काव किया और अन्य प्रयास किए, फिर भी केवल 35 प्रतिशत उत्पादन ही बचा.
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