मछलियों को जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है. इसके अलावा, उन्हें कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालना पड़ता है. मछलियां पानी में रहती हैं और पानी में घुली ऑक्सीजन को सांस के ज़रिए अंदर लेती हैं. ऐसे में अगर जलकुंभी या अन्य खरपतवार पानी को ढक लें तो यह मछलियों के लिए जानलेवा हो सकता है.
इससे पानी में ऑक्सीजन की कमी और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है. जिससे मछलियां पानी के अंदर ही मर जाती हैं. पहाड़ी इलाकों की बात करें तो मछलियों में यह समस्या सर्दियों के दौरान भी होती है जब पानी की ऊपरी सतह बर्फ में बदल जाती है.
जलकुंभी की समस्या सबसे ज्यादा ग्रामीण इलाकों में देखने को मिलती है. जिससे मछलियों के साथ-साथ मछुआरों को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में इस समस्या को जैविक तरीके से भी खत्म किया जा सकता है, आइए जानते हैं कैसे.
दरअसल, बहुत से किसान तालाब, नदी या पोखर में मछली पालन करते हैं. ऐसे में जलकुंभी इन किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या है. यह एक जलीय खरपतवार है जो बहुत जल्दी पानी की ऊपरी सतह को ढक लेती है, जिसे हटाने के लिए किसानों को हजारों रुपए खर्च करने पड़ते हैं. इसे हटाने के लिए किसान अक्सर हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल करते हैं जो पानी को दूषित करने के साथ मछलियों को भी परेशान करते हैं.
इतना ही नहीं, अगर इसे समय रहते नहीं हटाया गया तो यह जलीय जीवों के लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है. जैविक तरीके से जलकुंभी और अन्य खरपतवारों को नष्ट करने के लिए कीट, खरपतवार, कवक, मछली, घोंघे, मकड़ी आदि जीवों का उपयोग किया जाता है. यह बहुत सस्ती और प्रभावी विधि है. यह एक स्वचालित प्रक्रिया है और एक बार करने के बाद इसे बार-बार दोहराना नहीं पड़ता.
इस विधि का पर्यावरण और अन्य जीवों और पौधों पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है. साथ ही यह पानी को भी प्रदूषित नहीं करता है. जलकुंभी के कारण पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे मछलियों के विकास में बाधा उत्पन्न होने के अलावा अन्य जलीय पौधों और जानवरों का दम घुटता है. यह पानी के प्रवाह को 20 से 40% तक कम कर देता है.
इतना ही नहीं, जलकुंभी बड़े बांधों में बिजली के उत्पादन को भी प्रभावित करती है. जलकुंभी की उपस्थिति के कारण पानी के "वाष्पीकरण" की गति 3 से 8 प्रतिशत तक बढ़ जाती है. जिसके कारण जल स्तर तेजी से घटने लगता है. जलकुंभी से प्रभावित जल क्षेत्र मच्छरों के लिए स्वर्ग हैं. जिसके कारण डेंगू जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ती हैं.
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