होलिका दहन हर साल होली से एक दिन पहले देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन इस पर्व से जुड़ी कुछ परंपराएं और मान्यताएं खासतौर पर मालवा क्षेत्र में प्रचलित हैं, जो इसे और भी खास बनाती हैं. इन परंपराओं में से एक खास परंपरा है, होलिका दहन के बाद घर में आग लाने की.
यह परंपरा न केवल धार्मिक तरीके से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह क्षेत्रीय संस्कृति और प्रकृति संरक्षण से भी जुड़ी हुई है. मालवा क्षेत्र में होलिका दहन के बाद लोग धधकते हुए अंगारे और होलिका की भस्म घर लेकर आते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस आग से घर का चूल्हा जलता है और यह वर्ष की नई अग्नि होती है.
यह परंपरा आज भी ग्रामीण इलाकों में जीवित है. लोग यह विश्वास करते हैं कि होलिका की आग घर में सुख-समृद्धि और आरोग्यता लेकर आती है. इस आग को घर में साल भर रखा जाता है और अगली होली तक यह आग बुझाई नहीं जाती. हर दिन उसी आग से चूल्हा जलाया जाता है, जिससे घर में समृद्धि बनी रहती है.
होलिका दहन के समय जलने वाली आग और उसकी भस्म को लेकर कई मान्यताएं हैं. मालवा क्षेत्र के लोग इन अंगारों और भस्मों को अपने घरों में ले जाकर चूल्हा जलाते हैं, जो पूरे साल जलता रहता है. इसे एक प्रकार की पुनः ऊर्जा के रूप में देखा जाता है, जो परिवार के स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक होती है.
होलिका दहन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह प्रकृति और पर्यावरण को बचाने के नजरिए से भी महत्वपूर्ण है. शास्त्रों के अनुसार, होलिका दहन से न केवल बुराइयां नष्ट होती हैं, बल्कि यह सुख और स्वास्थ्य भी लाती है.
बाबा बैजनाथ महादेव मंदिर के मुख्य पुरोहित, सुरेंद्र शास्त्री के अनुसार, होलिका दहन का इतिहास राक्षसी ढुंढा के संहार से जुड़ा हुआ है, जो खेतों में कीड़े और बीमारी फैलाती थी. जब लोगों ने इस राक्षसी के खिलाफ विशाल अग्नि प्रज्वलित की, तो वह क्षेत्र सुरक्षित हो गया. यह घटना उस समय से लेकर आज तक होलिका दहन के रूप में चली आ रही है.
मालवा क्षेत्र में होलिका दहन के दिन लोग अपने खेतों से गेहूं की फसल की उम्बिया लेकर आते हैं और इन्हें होलिका की आग में सेंकते हैं. यह परंपरा मान्यता के अनुसार फसलों को रोगों से बचाने का काम करती है और आगामी फसल के लिए सुरक्षा और संपन्नता का प्रतीक बनती है. ऐसा विश्वास है कि इस परंपरा से न केवल फसलें स्वस्थ रहती हैं, बल्कि यह आने वाली फसल को भी उत्तम बनाती है.
आज के बदलते समय में भले ही घरों में गैस चूल्हे का इस्तेमाल अधिक होता हो, लेकिन इस परंपरा का प्रभाव अब भी जीवित है. लोग आज भी होलिका की भस्म और अंगारे अपने घरों में लाते हैं, ताकि घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे और परिवार का कल्याण हो. यह परंपरा न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और पारंपरिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, जो हर वर्ष लोगों को जोड़ने और एकजुट करने का काम करती है. (प्रमोद कारपेंटर का इनपुट)
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