देश के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी तेजी से मछली पालन किया जा रहा है. इसी बीच मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए बिहार के मुंगेर जिले में पहली बार केज कल्चर तकनीक का उपयोग कर मछली उत्पादन शुरू किया गया है.
केज कल्चर को नेट पेन कल्चर भी कहा जाता है. इसके लिए खड़गपुर झील का चयन किया गया है और पानी पर 17 यूनिट फ्लोटिंग केज लगाए गए हैं. यहां केज कल्चर तकनीक का उपयोग कर मछली पालन शुरू किया जा रहा है.
अब ऐसे में आपके मन में सवाल होगा कि आखिर ये केज कल्चर क्या है? दरअसल, केज कल्चर मछली पालन की एक ऐसी तकनीक है, जिसमें तलाब में एक निर्धारित स्थान पर फ्लोटिंग केज यूनिट बनाई जाती है.
ये सभी यूनिट एक दूसरे से जुड़ी होती हैं. एक यूनिट में चार बाड़े होते हैं. एक बाड़ा 6 मीटर लंबा, 4 मीटर चौड़ा और 4 मीटर गहरा होता है. बाड़े के चारों ओर प्लास्टिक का मजबूत जाल होता है. इसे कछुए या अन्य जलीय जीव काट नहीं सकते.
पानी में तैरते इसी जाल के बाड़े में मछली पालन किया जाता है. इन जालों में उंगली के आकार की मछलियों को पालन के लिए छोड़ दिया जाता है. मछलियों को रोजाना दाना डाला जाता है. ये मछलियां पांच माह में एक से सवा किलो की हो जाती हैं.
बात करें केज कल्चर के फायदे की तो तालाब या झीलों की तुलना में पिंजरों में मछलियां तेजी से बढ़ती हैं. इसमें मछलियां स्वस्थ और सुरक्षित रहती हैं. मछलियों को खिलाना भी आसान है. मछलियों के बीमार होने की संभावना कम होती है, क्योंकि बाहरी मछलियों के संपर्क में नहीं आना होता.
इसमें मछलियों में संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता. मछली पालक किसान अपनी जरूरत और मांग के अनुसार पिंजरे से मछलियां निकाल सकते हैं. जरूरत न होने पर मछलियों को पिंजरे में ही छोड़ा जा सकता है. इससे कोई नुकसान नहीं होता, बल्कि मछलियों को और बढ़ने का मौका मिलता है. (गोविंद कुमार की रिपोर्ट)
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