दुनियाभर में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं. पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों की संख्या कम करने के लिए सड़कों पर इलेक्ट्रिक वाहन और इथेनॉल से चलने वाले वाहन चलाए जा रहे हैं. ताकि प्रदूषण के स्तर को कम किया जा सके. ऐसे में भारत में भी इन सभी पहलुओं पर ध्यान दिया जा रहा है. भारत में पेट्रोल के साथ 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 1,200 करोड़ लीटर की आवश्यकता है. ऐसे में चीनी मिलों को अपनी क्षमता मौजूदा 700 करोड़ लीटर से बढ़ाकर कम से कम 1,100 करोड़ लीटर करने की ज़रूरत है.
चालू इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (दिसंबर-अक्टूबर) के लिए 31 अगस्त तक ईबीपी (Ethanol Blending process) 11.76 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जबकि पूरे वर्ष के लिए लक्ष्य 12 प्रतिशत है. हालांकि यह उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द हम इसे हांसील कर सकते हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) के अध्यक्ष आदित्य झुनझुनवाला ने कहा कि चीनी मिलों ने कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. 31 अक्टूबर को समाप्त होने वाले मौजूदा इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (ईएसवाई) में लगभग 450 करोड़ लीटर इथेनॉल की आपूर्ति कर दी जाएगी. वहीं अगर निर्यात (6.1 मिलियन टन) नहीं होता, तो 500 करोड़ लीटर अधिक इथेनॉल हो सकता था. ऐसे में चीनी मिलों को अपनी क्षमता को तत्काल बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण (ईबीपी) लक्ष्य को पूरा करने के लिए केवल दो साल बचे हैं. ऐसे में यह भी कयास लगाया जा रहा है कि शायद हम इसमें पिछड़ सकते हैं. हालांकि, सरकार लगातार लोगों को भरोसा दिला रही है कि हम समय से पहले भी इस लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं.
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चीनी उद्योग ने सरकार से इथेनॉल की कीमत मौजूदा 65.61 रुपये प्रति लीटर से बढ़ाकर 69.85 रुपये प्रति लीटर करने का अनुरोध किया है. बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, एक इंडस्ट्री बॉडी ने कहा कि ये बढ़ोतरी इंडस्ट्री के लिए जरूरी है. उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए 17,500 करोड़ रुपये के अतिरिक्त निवेश की जरूरत है. दरअसल, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग को लिखे पत्र में इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) ने कहा है कि 2025 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत मिश्रण लक्ष्य को हासिल करने के लिए लगभग 1,200 करोड़ लीटर इथेनॉल की आवश्यकता है. कि चीनी उद्योग ने इथेनॉल आपूर्ति वर्ष 2022-23 (दिसंबर-अक्टूबर) में 400 करोड़ लीटर की आपूर्ति के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं. उद्योग निकाय ने एक बयान में कहा, "अतिरिक्त 800 करोड़ लीटर के लिए, आईएसएमए का अनुमान है कि बड़े पैमाने पर क्षमता वृद्धि के लिए निवेश पर उचित रिटर्न के साथ 17,500 करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता होगी."
इथेनॉल का उत्पादन विभिन्न फसलों से किया जा सकता है. इसके लिए जरूरी नहीं कि हमारी निर्भरता सिर्फ और सिर्फ गन्ने पर बनी रहे. नितिन गडकरी ने भी इस बात को कई बार दोहराया है. इथेनॉल उत्पादन के लिए आमतौर पर उपयोग की जाने वाली कुछ फसलें यहां दी गई हैं.
गन्ना इथेनॉल उत्पादन के लिए सबसे आम और भारी मात्रा में उपयोग किए जाने वाले फीडस्टॉक्स में से एक है. खासकर ब्राजील और भारत जैसे देशों में इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. इथेनॉल आमतौर पर गन्ने के रस या गुड़ से उत्पादित होता है, जो चीनी उत्पादन का एक अन्य प्रॉडक्ट है.
संयुक्त राज्य अमेरिका और कई अन्य देशों में मक्का इथेनॉल का एक प्रमुख स्रोत है. इथेनॉल आमतौर पर किण्वन प्रक्रिया के माध्यम से मकई के दानों में स्टार्च से उत्पन्न होता है.
गेहूं का उपयोग इथेनॉल उत्पादन के लिए भी किया जा सकता है. मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में जहां गेहूं एक प्रमुख फसल है. गेहूं से इथेनॉल उत्पादन में गेहूं के दानों में मौजूद स्टार्च से बनाया जाता है.
जौ एक अन्य अनाज है जिसका उपयोग इथेनॉल उत्पादन के लिए किया जा सकता है. गेहूं की तरह, जौ में मौजूद स्टार्च को इथेनॉल में बदला जा सकता है.
ज्वार सूखा प्रतिरोधी है और इसका उपयोग शुष्क क्षेत्रों में इथेनॉल उत्पादन के लिए फीडस्टॉक के रूप में किया जा सकता है. यह अफ़्रीका के कुछ हिस्सों में इथेनॉल उत्पादन के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है.
मिसेंथस एक अन्य बारहमासी घास है जिसका उपयोग इथेनॉल उत्पादन के लिए किया जाता है. इसकी बायोमास पैदावार अधिक है और इसे सीमांत भूमि पर उगाया जा सकता है.
पराली, गेहूं के भूसे और चावल के भूसे जैसे कृषि अवशेषों का उपयोग इथेनॉल उत्पादन के लिए किया जा सकता है.
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि फसल का चुनाव स्थानीय कृषि पद्धतियों, जलवायु और सुविधाओं की उपलब्धता पर भी निर्भर हो सकता है. इसके अतिरिक्त, इथेनॉल उत्पादन की दक्षता और स्थिरता में सुधार के लिए नए फीडस्टॉक और तकनीकों का पता लगाने के लिए रिसर्च जारी हैं.
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