रेशम उत्पादन के मामले में झारखंड देश में एक खास स्थान रखता है. झारखंड के दुमका, सरायकेला खरसावां समेत अन्य जगहों पर इसकी खेती की जाती है. तसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए और किसानों को इसकी खेती की आधुनिक जानकारी देने के उद्देश्य से कई तरह की योजनाएं भी चलाई जा रही हैं. रांची स्थित केंद्रीय तसर अनुसंधान केंद्र से इस संबंध में जानकारी भी हासिल की जा सकती है. झारखंड सरकार भी इसके लिए किसानों को मदद कर रही है साथ ही किसानों को कई योजनाओं से जोड़ रही है. झारखंड सरकार यहां के रेशम उत्पादों को भी बेचने के लिए किसानों को मंच प्रदान करती .
बता दें की रेशम उत्पादन के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर आता है. चीन में 50 हजार मीट्रिक टन रेशम का उत्पादन किया जाता है. जबकि भारत में 38 हजार टन सिल्क का उत्पादन किया जाता है. भारत में रेशम की इतनी मांग है कि भारत को मांग पूरा करने के लिए चीन से सिल्क का आया करना पड़ता है. पर अब भारत के किसान भी रेशम के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रयास कर रहा है. इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं भी चलाई जा रही है. झारखंड में वन क्षेत्र में रहनेवाली महिलाओं के लिए रेशन की खेती रोजगार का एक बेहतर विकल्प है.
ये भी पढ़ेंः गेहूं खरीद की सुस्त रफ्तार ने ओपन मार्केट सेल स्कीम के लिए बढ़ाई टेंशन, कैसे कम होगी महंगाई?
रेशम की खती को बढ़ावा देने के लिए देश में सिल्क समग्र योजना चलाई जाती है. इसका लाभ लेकर किसान इसकी खेती से जुड़ सकते हैं और आजीविका के तौर पर इसे अपना सकते हैं. झारखंड में राज्य सरकार की तरफ से राज्य के रेशम उत्पादों की बिक्री के लिए झारक्राफ्ट का मंच प्रदान किया गया है. इसके जरिए रेशम के उत्पाद देशभर में बेचे जाते हैं. देश भर के अलग-अलग स्थानों पर आयोजित मेले में झारक्राफ्ट के जरिए झारखंड रेशम उत्पाद पहुंचाए जाते हैं. यहां का कुचाई सिल्क काफी मशहूर माना है.
ये भी पढ़ेंः Soybean Price: सोयाबीन के दाम में भारी गिरावट, सिर्फ 2250 रुपये प्रति क्विंटल रह गया दाम
रेशम की खेती शहतूत, अर्जुन के अलावा अन्य और पेड़ों में भी की जाती है. रेशम के कीट के लिए शहतूत का पेड़ सबसे बेहतर माना जाता है. एक एकड़ में किसान 2700-3600 शहतूत के पौधे लगा सकते हैं. इससे 6000-7000 किलोग्राम पत्तियों का उत्पादन होता है. रेशम की खेती में इस बात ध्यान रखना चाहिए की जिस जगह पर कीटों को रखा जा रहा है वह जगह पूरी तरह से साफ-सूथरी होनी चाहिए. इसके बाद उन्हें शहतूत के पेड़ पर रखना चाहिए जिनके पत्ते कोमल होते हैं. फिर धीरे धीरे ये बड़े हो जाते हैं. एक कीट एक दिन में 30-35 ग्राम तक पत्ती खा लेता है. एक किट 35 से 40 किलोग्राम रेशम (खोया) निर्माण करता है. इस तरह से प्रति एकड़ के हिसाब से एक एकड़ में 225 -240 किलोग्राम उत्पादन होता है. इसके बाद इसे बेचने में सरकार मदद करती है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today