रागी कई पोषक तत्वों से भरपूर होता है. खरीफ सीजन की शुरुआत में किसान इसकी खेती करते हैं. इसके फायदों के कारण लोग इसका सेवन करना पसंद करते हैं. इसमें कैल्शियम की मात्रा काफी अधिक पाई जाती है. इससे हड्डियां मजबूत होती हैं. सर्दियों में इसका सेवन करने से शरीर में गर्मी आती है और आपका शरीर सर्दी जुकाम से दूर रहता है. रागी खाने के पाचन तंत्र सही रहता है और वजन भी कंट्रोल रहता है. इसके अलावा कई बीमारियों में इसका सेवन लाभदायक माना गया है. इसकी गिनती मोटे अनाज में होती है. इसके फायदे को देखते हुए यह जानना जरूरी है कि इसकी खेती कैसे की जाती है. ताकि अच्छा उत्पादन हासिल कर सकें.
रागी की खेती के लिए जून-जुलाई के महीने में तैयारी शुरू हो जाती है. इसकी खेती के फसल की कटाई के बाद गर्मी के मौसम में ही खेती की एक या दो बार गहरी जुताई कर देनी चाहिए. इसके बाद खेत में मौजूद खर-पतवार को एक जगह जमा करके नष्ट कर देना चाहिए. फिर मॉनसून की शुरुआत होते की जुताई किए गए खेत को एक दो बार पाटा चलाकर प्लेन कर देना चाहिए. इसकी खेती दो तरीके से की जाती है. पहले तरीके में इसके बीज की सीधी बुवाई की जाती है. जबकि दूसरी विधि में रागी की नर्सरी तैयार की जाती है और फिर इसकी रोपाई की जाती है. रोपाई करने से अच्छा उत्पादन हासिल होता है.
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रागी की खेती करने के लिए बीज का चयन मिट्टी की प्रकार के हिसाब के करना चाहिए. जहां तक संभव हो सके किसानों को प्रमाणित बीज का ही इस्तेमाल करना चाहिए. अगर किसान अपना ही पुराना बीज का इस्तेमाल कर रहा है तो बीज की बुवाई से पहले किसी फफूंदनाशक दवा कार्बेन्डाजिम या अन्य से बीज को उपचारित करें. रागी की अगर सीधी बुवाई कर रहे हैं जो इसकी बुवाई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई मध्य तक की जाती है. इसके अलावा अगर रोपाई विधि से रोपाई करना चाहते हैं तो फिर जुन के अंत में जुलाई के पहले सप्ताह तक इसकी नर्सरी डाल देनी चाहिए. रोपाई विधि से खेती करने पर एक हेक्टेयर खेत में रोपाई करने के लिए चार से पांच किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. जबकि 20-25 दिन में पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं.
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रागी की कतार विधि से बुवाई करने पर प्रति हेक्टेयर आठ-10 किलो बीज की आवश्यकता होती है जबकि छिंटवा विधि से बुवाई करने पर 12-15 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है. रागी की खेती में उर्वरकों का प्रयोग करने से पहले मिट्टी की जांच करना जरूरी होता है. जिस खेत में सिंचाई की व्यवस्था नहीं है उस खेत में रागी लगाने के लिए 40 किलो ग्राम नाइट्रोजन और 40 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से डाले.
बुवाई से पहले नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फॉस्फोरस की पूरी मात्रा खेत में डाल दें. फिर पौधों के अंकुरण के तीन सप्ताह बाद पहली निराई करने करे बाद 20 किलो नाइट्रोजन खेत में डालें. इसके अलावा खेत में 100 क्विंटल गोबर प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालना चाहिए. रागी की बुवाई अथवा रोपाई के बाद इसके खेत पर खास ध्यान देना पड़ता है. खेत में पहले 45 दिनों तक खर-पतवार से मुक्त रखना चाहिए. क्योंकि खरपतवार का प्रकोप होने पर उपज में गिरावट आ सकती है.
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