scorecardresearch
पूसा- 44 किस्म की बिक्री को रोकने के लिए सरकार का फरमान, अब अधिकारी दुकानों में करेंगे छापेमारी

पूसा- 44 किस्म की बिक्री को रोकने के लिए सरकार का फरमान, अब अधिकारी दुकानों में करेंगे छापेमारी

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के कुलपति डॉ. एसएस गोसल ने कहा कि उन्होंने कभी भी पूसा 44 किस्म की सिफारिश नहीं की, क्योंकि इसे परिपक्व होने में 160 दिन लगते हैं. जबकि पीएयू-अनुशंसित किस्मों जैसे पीआर-126 और पीआर- 131 को 135 दिनों से कम समय लगता है.

advertisement
पूसा-144 की बिक्री पर होगी कार्रवाई. (सांकेतिक फोटो) पूसा-144 की बिक्री पर होगी कार्रवाई. (सांकेतिक फोटो)

धान की अधिक पानी लेने वाली और लंबी अवधि वाली किस्म पूसा- 44 की बिक्री को रोकने के लिए, पंजाब कृषि विभाग ने राज्य भर के मुख्य कृषि अधिकारियों (सीएओ) को ब्लॉक स्तर पर टीमें बनाने का निर्देश दिया है. ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसकी कोई बिक्री न हो. इसी क्रम में कृषि विभाग के अधिकारियों ने गुरुवार को पटियाला के एक निजी बीज केंद्र पर निरीक्षण किया. खास बात यह है कि निजी बीज केंद्रों पर भी अधिकारी निरीक्षण कर रहे हैं.

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पूसा-44 तीन दशक पहले भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) द्वारा तैयार किया गया है. इसकी बुआई से कटाई तक 155-160 दिनों का विकास चक्र है. देर से पकने के कारण, यह किस्म अगली फसल के लिए खेत की तैयारी के लिए बहुत कम समय छोड़ती है. अपनी लंबी अवधि और देर से कटाई के बावजूद, पूरा-44 अपनी उच्च उपज, औसतन लगभग 35-40 क्विंटल प्रति एकड़ के कारण पंजाब के किसानों के बीच लोकप्रिय है.

ये भी पढ़ें-  केंद्र ने चना खरीद पर आयात शुल्क हटाया, पीली मटर के लिए समयसीमा अक्तूबर तक बढ़ी, कीमतें नीचे लाने की कोशिश  

होगी कठोर कार्रवाई

पंजाब कृषि विभाग के निदेशक जसवंत सिंह ने कहा कि अगर कोई धान की प्रतिबंधित पूसा 44 किस्म बेचते हुए पाया गया, तो उस पर बीज अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा कि कृषि विभाग के अधिकारी किसानों को इस किस्म का उपयोग न करने के लिए जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं. विभाग के निदेशक ने कहा कि कुछ किसानों ने पिछले साल की उपज के बीज जमा कर रखे हैं. हम उनसे बार-बार इसका उपयोग न करने के लिए कह रहे हैं.

50 बिक्री केंद्रों पर बेचे जा रहे बीज

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के कुलपति डॉ. एसएस गोसल ने कहा कि उन्होंने कभी भी पूसा 44 किस्म की सिफारिश नहीं की, क्योंकि इसे परिपक्व होने में 160 दिन लगते हैं. जबकि पीएयू-अनुशंसित किस्मों जैसे पीआर-126 और पीआर- 131 को 135 दिनों से कम समय लगता है. गोसल ने कहा कि पूसा 44 किस्म को अन्य किस्मों की तुलना में अधिक पराली पैदा करने के अलावा, अधिक पानी और बिजली की भी आवश्यकता होती है. अनुशंसित किस्मों की उपलब्धता के बारे में पूछे जाने पर, गोसल ने कहा कि पीआर 126 किस्म राज्य भर में 50 बिक्री केंद्रों पर बेची जा रही है, जिसमें कृषि विज्ञान केंद्रों के साथ-साथ पीएयू परिसर भी शामिल है.

ये भी पढ़ें-  तापमान बढ़ने से तालाबा का पानी हो गया है गर्म तो तुरंत करें ये उपाय, मछलियों को नहीं पहुंचेगा नुकसान

भारी मुनाफा कमा सकते हैं

संगरूर के एक किसान कुलविंदर सिंह ने कहा कि चावल विक्रेता किसानों को पूसा-44 किस्म का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें चावल का उत्पादन अनुपात अधिक है. इसके अलावा, कमीशन एजेंट, जो पहले से ही बीज व्यवसाय में प्रवेश कर चुके हैं, चाहते हैं कि किसान पूसा 44 बीज खरीदें, क्योंकि यह सरकारी एजेंसियों द्वारा नहीं बेचा जाता है और इसलिए, वे बिक्री पर एकाधिकार करके भारी मुनाफा कमा सकते हैं.