पंजाब में किसानों ने धान की खेती छोड़कर अन्य खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने वाली राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना का स्वागत किया है. हालांकि किसानों का मानना है कि धान के बदले वो जो भी फसल लगाएंगे वो अधिक उत्पादन देनेवाली वेरायटी होनी चाहिए. साथ ही उन फसलों का अच्छा बाजार होना चाहिए और सरकार के पास उन फसलों की खरीद सुनिश्चित करने के लिए एक बेहतर बायबैक प्रणाली भी होनी चाहिए. बता दें पंजाब में घटते जलस्तर को देखते हुए राज्य के कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुदियां ने घोषणा की है कि राज्य उन किसानों को प्रति हेक्टेयर 17,500 रुपये की प्रोत्साहन राशि देगी जो अधिक पानी की खपत वाली फसलों को छोड़कर दूसरी वैकल्पिक खेती को अपनाएंगे. यह योजना इसी वित्त वर्ष से शुरू होगी.
सरकार ने इस नई नीति की घोषणा ऐसे समय में की है कि राज्य में धान की 96 प्रतिशत बुवाई पूरी हो चुकी है. यहां अब तक 28 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी है. द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब के कृषि निदेशक जसवंत सिंह ने सरकार के इस फैसले पर कहा कि देर आए पर दुरुस्त आए. क्योंकि पंजाब के सामने सबसे बड़ा खतरा अगले दो दशकों में इसके रेगिस्तान बनने का है. इसलिए यहां कि स्थिति को बदलने के लिए अभी से ही कदम उठाने होंगे. उन्होंने कहा कि विभाग ने उन क्षेत्रों के किसानों से संपर्क करना शुरू कर दिया है जिन क्षेत्रों में किसानों से धान की खेती अब तक नहीं की है, उन किसानों को धान को छोड़कर दूसरी खेती करने के लिए कहा गया है.
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बीकेयू-दकौंडा के जगमोहन सिंह पटियाला ने कहा कि सरकारी की इस घोषणा का लाभ इस वर्ष केवल आलू और सूरजमुखी उत्पादकों को लाभ होगा, क्योंकि धान की बुवाई लगभग पूरी हो चुकी है. वहीं अबोहर के विधायक संदीप सिंह जाखड़ ने किसानों को योजना के तहत दी जाने वाली राशि पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसके तहत किसानों को प्रति एकड़ 7085 रुपये दिए जाएंगे. जबकि गैर बासमती धान की खेती करने वाले किसानों की प्रति एकड़ औसत आय 74,200 रुपये हैं. अगर किसान प्रति एकड़ 32 क्विंटल की उपज हासिल करते हैं तो उन्हें यह कमाई होती है. उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि जब एमएसपी पर अन्य फसलों की खरीद सुनिश्चित नहीं है तो किसान फिर इस योजना का विकल्प क्यों चुनेंगे.
कीर्ति किसान यूनियन के उपाध्यक्ष राजिंदर सिंह दीपसिंहवाला ने कहा कि पर सरकार के इस कदम का स्वागत करते हैं पर उन्हें यह लगता है कि सरकार ने यह फैसला ठीक तरह से सोच समझ कर नहीं लिया है. उन्होंने कहा कि पिछले कई सालों से राज्य में अच्छी किस्स और अच्छी उपज देने वाले फलियों पर शोध कार्य नहीं किया गया है. बाजार में बाजरे की बीज आसानी से उपलब्ध नहीं है और कपास की फसल बार-बार कीटों के हमले का शिकार हो रही है इससे किसानों को नुकसान हो रहा है. किसान धान की खेती से मुश्किल से अपना गुजारा कर पाता है. लेकिन अगर वो दूसरी फसलों की खेती करता है तो उसकी उपज कम होगी, साथ ही उसे यह भी पता नहीं होगा कि उसकी फसल एमएसपी पर खरीदी जाएगी या नहीं तो फिर किसान क्या करेगा.
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पटियाला के निकट फतेहपुर गांव के धान उत्पादक शिंगारा सिंह ने राजिंदर सिंह दीपसिंहवाला की बातों पर सहमति जताते हुए कहा कि किसानों को दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि आगर अधिक होती तो कई किसान आलू और मक्का की खेती करने के लिए तैयार हो जाते, पर राशि भी कम है. इधर मानसा के किशनगढ़ के एक अन्य किसान कुलवंत सिंह ने कहा कि पंजाब के किसानों, खासकर दक्षिण मालवा क्षेत्र के किसानों को धान की खेती के लिए अपने रेतीले खेतों को तैयार करने में लगभग 20 साल लग गए. अब अगर सरकार किसानों को धान की खेती छोड़ने के लिए कह रही है तो पहले सरकार को वैकल्पिक फसलों के लिए एक तैयार बाजार उपलब्ध कराना होगा, इसके बाद ही किसान इस योजना का लाभ से सकते हैं.
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