पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित और ऑर्गेनिक खेती के लिए मशहूर किसान कमला पुजारी का शनिवार को किडनी संबंधी बीमारियों से पीड़ित होने के बाद निधन हो गया. वह 74 साल की थीं और उनके परिवार में दो बेटे और दो बेटियां हैं. दो दिन पहले किडनी संबंधी बीमारियों के कारण कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती पुजारी ने शनिवार सुबह अंतिम सांस ली. सीएमओ सूत्रों की मानें तो उनका इलाज चार सदस्यीय मेडिकल टीम कर रही थी. इससे पहले, उनकी हालत बिगड़ने के बाद उन्हें जयपुर जिला मुख्यालय अस्पताल से कटक लाया गया था.
कोरापुट जिले के बैपारीगुडा ब्लॉक के पात्रपुट गांव में जन्मी पुजारी जैविक खेती को बढ़ावा देने वाली थीं और उन्होंने चावल की 100 किस्मों की खेती की थी. मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया और घोषणा की कि उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा. माझी ने पुजारी के बेटे टंकधर पुजारी से भी फोन पर बात की. ओडिशा विधानसभा में विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने एक बयान में कहा, 'कृषि के क्षेत्र में पुजारी के योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा.'
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एक गरीब आदिवासी परिवार में जन्मी पुजारी को पारंपरिक धान की किस्मों से बहुत लगाव था. वह साल 1994 में कोरापुट में एम.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन द्वारा शुरू किए गए एक रिसर्च प्रोग्राम की लीडर भी रहीं. इसके कारण बहुत ज्यादा फसल देने वाली और हाई क्वालिटी वाली चावल की किस्म ‘कालाजीरा’ का प्रजनन हुआ. उन्होंने ‘तिली’, ‘मचाकांता’, ‘फुला’ और ‘घनतिया’ जैसी धान की दुर्लभ किस्मों को भी संरक्षित किया.
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पुजारी ने अपने इलाके की सैकड़ों आदिवासी महिलाओं को खेती में रासायनिक खादों का इस्तेमाल न करने के लिए प्रेरित किया. उनके प्रयासों के कारण, संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने 2012 में कोरापुट को वैश्विक रूप से महत्वपूर्ण कृषि विरासत स्थल (जीआईएएचएस) घोषित किया. उन्हें 2019 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री से सम्मानित किया था. वह साल 2018 में राज्य योजना बोर्ड की सदस्य थीं और उन्हें साल 2004 में ओडिशा सरकार द्वारा सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उन्होंने साल 2002 में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में 'इक्वेटर इनिशिएटिव अवार्ड' भी जीता था.
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