महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों के किसान एक बड़ी परेशानी से परेशान हैं. ये किसान अपने लिए बहू की तलाश कर रहे हैं, लेकिन खेती-किसानी के काम की वजह से कोई पिता उन्हें अपनी बेटी नहीं दे रहा है. ये ऐसे किसान हैं जिनके पास जमीन-जायदाद की कमी नहीं है. इसके बावजूद शादी नहीं हो पा रही है, क्योंकि वे किसानी का काम करते हैं. किसानों के समूह ने चेतावनी जारी की है कि अगर यही हालत रही तो आगे चलकर इसका दुष्प्रभाव होगा और लिंग अनुपात पर असर पड़ेगा. अब किसानों को अपने लोकसभा उम्मीदवारों पर आस है कि वे ही इस मुद्दे को सुलझाएंगे.
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस इलाके के कई राजनेता इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि वे इस समस्या का समाधान कैसे करें. माधा लोकसभा क्षेत्र से वंचित बहुजन अघाड़ी के उम्मीदवार रमेश बारस्कर ने किसानों से वादा किया है कि अगर वे चुनाव जीत कर दिल्ली पहुंच जाते हैं, तो वे इस ग्रामीण इलाकों में अविवाहित युवाओं की शादी की व्यवस्था करने के लिए एक अभियान शुरू करेंगे. वहीं, रमेश बारस्कर के वादे के बाद किसानों ने राहत की सांस ली है. उन्हें उम्मीद है कि वे अपने वादे को चुनाव जीतने के बाद पूरा करेंगे.
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रमेश बारस्कर का कहना है कि इस क्षेत्र में युवा लोगों के लिए रोजगार के अवसरों की कमी है. लोग खेती-किसानी से अपना जीवन यापन करते हैं. वहीं, क्षेत्र में पानी का भी गंभीर संकट है. यहां तक कि महिलाओं को भी रोजगार की कमी का सामना करना पड़ रहा है. इलाके में 40 साल की उम्र पार कर चुके ऐसे बहुत लोग आपको मिल जाएंगे, जो अभी तक अविवाहित हैं. उन्हें शादी के लिए कोई अपनी बेटी नहीं दे रहा है. बारस्कर ने कहा कि खास बात यह है कि यह मुद्दा केवल माढ़ा निर्वाचन क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे राज्य के लिए समस्या बन गया है. लेकिन मैं इस समस्या के समाधान के लिए प्रतिबद्ध हूं.
2022 में, दुल्हन की तलाश कर रहे भावी दूल्हों ने सरकारी हस्तक्षेप की मांग करते हुए सोलापुर जिला कलेक्टर के कार्यालय तक मार्च किया है. इस मार्च में बारास्कर ने भाग लिया और युवाओं का समर्थन किया. हालांकि, अप्रत्याशित मांग से जिला कलेक्टर और सरकारी प्रशासन सकते में आ गए हैं और अब, गांव के युवा वोट मांगने के लिए गांवों का दौरा करने वाले राजनेताओं के साथ इस मुद्दे को उठा रहे हैं. ऐसे सैकड़ों युवा लड़के देखेंगे, जिन्हें केवल इसलिए शादी का कोई प्रस्ताव नहीं मिल रहा है, क्योंकि वे ग्रामीण इलाकों में रहते हैं और किसान हैं.
धाराशिव के ओंकार पाटिल कहते हैं कि मैंने अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली है और अपने क्षेत्र में काम कर रहा हूं. हालांकि, कोई भी लड़की मुझसे शादी करने को तैयार नहीं है. मेरे दोस्तों की भी शादी नहीं हो रही है. इसलिए हमने शादी के प्रस्ताव मिलने की उम्मीद में खेती छोड़कर नौकरी की तलाश में पुणे जाने का फैसला किया है. राज्य में महिला कार्यकर्ताओं का कहना है कि कृषि में अनिश्चितता बहुत अधिक है और खेती में कुल आय का स्तर कम है. राजश्री माने कहती हैं कि इसके अलावा, लड़कियां शिक्षित हो रही हैं और उनकी आकांक्षाएं हैं जिन्हें पारंपरिक लिंग मानदंडों और प्रतिबंधों को देखते हुए गांवों में पूरा नहीं किया जा सकता है.
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महिला कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस प्रथा पर अंकुश लगाने के सरकार के प्रयासों के बावजूद महाराष्ट्र में कन्या भ्रूण हत्या जारी है. इसमें आश्चर्य की बात नहीं है कि महाराष्ट्र में लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 929 महिलाएं हैं, जो नवीनतम जनगणना के अनुसार राष्ट्रीय औसत 940 से कम है.
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