खाद्य तेल उद्योग की प्रमुख संस्था इंडियन वेजिटेबल ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (IVPA) ने सरकार से निवेदन किया है कि क्रूड और रिफाइंड खाद्य तेलों के बीच ड्यूटी अंतर को अभी के लिए 8.25% से बढ़ाकर 20% किया जाए. उनका कहना है कि रिफाइंड पाम ऑयल के आयात में अचानक वृद्धि ने घरेलू रिफाइनिंग उद्योग को संकट में डाल दिया है, जिससे न केवल उद्योग की क्षमता उपयोग में कमी आई है, बल्कि किसानों को भी नुकसान हो रहा है.
आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर 2024 से फरवरी 2025 के बीच भारत ने 8.24 लाख मीट्रिक टन रिफाइंड पाम ऑयल (RBD Palmolein) आयात किया, जो जून–सितंबर 2024 के 4.58 लाख मीट्रिक टन से 80% अधिक है. इस अवधि में रिफाइंड पाम ऑयल का आयात कुल पाम ऑयल आयात का लगभग 30% था, जबकि जून–सितंबर 2024 में यह 14% था. यह बढ़त मुख्य रूप से निर्यातक देशों द्वारा क्रूड पाम ऑयल पर उच्च निर्यात शुल्क और रिफाइंड पाम ऑयल पर कम या शून्य शुल्क लगाने के कारण हुई है.
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रिफाइंड पाम ऑयल के आयात में वृद्धि से भारत के घरेलू रिफाइनिंग उद्योग की क्षमता उपयोग में कमी आई है. रिफाइनिंग उद्योग में निवेश करने वाले कई रिफाइनर्स अब केवल पैकिंग का काम कर रहे हैं, जिससे रोजगार पर भी असर पड़ा है. IVPA का कहना है कि यदि यह स्थिति जारी रहती है, तो उद्योग में और अधिक संकट आ सकता है.
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रिफाइंड पाम ऑयल के आयात से किसानों को भी नुकसान हो रहा है, क्योंकि इससे तेलसीड्स की कीमतों में गिरावट आई है. इससे किसानों की आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. उपभोक्ताओं को भी इसका कोई विशेष लाभ नहीं हुआ है, क्योंकि रिफाइंड पाम ऑयल के आयात से कीमतों में स्थिरता आई है, लेकिन वास्तविक लाभ सीमित है.
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