गिलोय एक जबरदस्त औषधि है. आयुर्वेद में इसका उपयोग तो लंबे समय से चला आ रहा है. लेकिन कोरोना काल के बाद यह चर्चा में आया है. गिलोय की गिनती उन गिने चुने औषधीय पौधों में होती है जिन्हें त्रिदोशनाशक भी कहा जाता है. गिलोय के सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. यह दिल के रोगों में फायदेमंद होता है. साथ ही मधुमेह, रक्तदोष, कामला, खांसी, खूनी बावासीर, गठिया और नेत्ररोग जैसे कई रोगों में फायदा पहुंचाता है. यही कारण है कि इसके उपयोग और मांग में हर दिन बढ़ोतरी हो रही है. मांग में बढ़ोतरी के साथ-साथ अब इसकी खेती फायदेमंद होती जा रही है. गिलोय एक बहुवर्षीय लता है जिसके जड़, तना, पत्ते और फल सभी का उपयोग होता है.
अगर गिलोय की विधिवत तरीके से खेती की जाए और अच्छी फसल हासिल हो तो प्रति हेक्टेयर 8-10 क्विंटल सूखे तने प्राप्त होते हैं. बाजार में यह गिलोय 25 से 30 रुपये किलो के भाव से बिकता है. इस तरह से एक किसान लगभग 25000 रुपये की कमाई कर सकता है. किसान इसे स्थानीय आयुर्वेदिक दवा निर्माताओं के पास बेच सकते हैं. इसके अलावा दिल्ली कोलकाता और मुंबई की थोक मंडियों में इसे बेचा जा सकता है. इन शहरों में इसकी खूब मांग होती है और बिक्री भी होती है. गिलोय एक ऐसा पौधा है जिसे एक बार लगाने के बाद कई वर्षों तक इससे कमाई कर सकते हैं.
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गिलोय की खेती करने के लिए अप्रैल महीने में ही गड्ढे तैयार कर लेने चाहिए. इसकी रोपाई के लिए 30X30X30 सेमी के गड्ढे खोदने चाहिए. गर्मी के दिनों में ये गड्ढे इसलिए खोदे जाते हैं ताकि गर्मी और धूप के कारण मिट्टी में रहने वाले हानिकारक कीटाणु मर जाएं. इसके बाद प्रत्येक गड्ढे में दो से तीन किलोग्राम सड़ी हुई गोबर या कंपोस्ट खाद के अलावा 500 ग्राम नीम की खली डालें. फिर जब जुलाई महीने में बारिश हो जाए और उन गड्ढों में पर्याप्त नमी हो जाए. तब नर्सरी में तैयार किए गए गिलोय के पौधों को इन गड्डों में लगा दें. किसान इस बात का ध्यान रखें कि बारिश के मौसम में इन गड्ढों में अधिक पानी का जमाव नहीं हो.
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गिलोय एक अत्यंत कठोर प्रवृति की लता होती है जिसे लगभग सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है. इसकी खेती के लिए जमीन में जीवांश की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए. इसके साथ ही भूमि में जल निकासी की उचित व्यवस्था भी होनी चाहिए. गिलोय की बिजाई इसके बीजों और कलम के द्वारा की जाती है. कमर्शियल तौर पर इसकी खेती करने के लिए कलम ही सबसे उपयुक्त माना जाता है क्योंकि इसमें पौधा तेजी से बढ़ता है और उत्पादन भी अधिक होता है. बिजाई के लिए कलम की लंबाई 20 से 30 सेमी की होनी चाहिए और इसकी मोटाई बीच की उंगलियों के जितनी होनी चाहिए. यह एक लता वाला पौधा है, इसलिए इसके आरोहन के लिए विशेष इंतजाम करना चाहिए.
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