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महंगे और नकली उर्वरक से अभी पाएं छुटकारा, अब घर पर लगा सकते हैं ये खाद बनाने वाली मशीन

महंगे और नकली उर्वरक से अभी पाएं छुटकारा, अब घर पर लगा सकते हैं ये खाद बनाने वाली मशीन

इस मशीन को काऊ मशीन का नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इसकी संचरना गाय के पेट की तरह होती है. जिस तरह गाय के पेट में कई हिस्से होते हैं उसी तरह इस मशीन के अंदर भी कई हिस्से होते हैं. इतना ही नहीं, जिस तरह से गाय के पेट में सूक्ष्मजीवी होते हैं उसी तरह कचरे को खाद में बदलने के लिए इस मशीन में पहले सूक्ष्मजीवी विकसित करने पड़ते हैं.

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काऊ कपोस्ट मशीन                (सांकेतिक तस्वीर) काऊ कपोस्ट मशीन (सांकेतिक तस्वीर)

देश के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक ऐसी मशीन तैयार की है जो मात्र सात दिनों में जैविक खाद बनाएगी. जैविक खेती करने वाले किसानों को इसका लाभ मिलेगा और समय पर उन्हें खेती करने के लिए जैविक खाद भी मिल जाएगी. इम मशीन को तैयार करने में भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान (IVRI) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (रुड़की) के वैज्ञानिकों ने अपनी भूमिका निभाई है. जैविक खाद बनाने वाली इस मशीन का नाम काऊ मशीन रखा गया है.  यह एक ऐसी मशीन है जो सात दिनों में कंपोस्ट खाद तैयार करती है. इस मशीन के बन जाने के बाद सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि अब बेहद कम समय में जैविक खाद तैयार हो जाती है. 

इस मशीन को काऊ मशीन का नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इसकी संचरना गाय के पेट की तरह होती है. जिस तरह गाय के पेट में कई हिस्से होते हैं उसी तरह इस मशीन के अंदर भी कई हिस्से होते हैं. इतना ही नहीं, जिस तरह से गाय के पेट में सूक्ष्मजीवी होते हैं उसी तरह कचरे को खाद में बदलने के लिए इस मशीन में पहले सूक्ष्मजीवी विकसित करने पड़ते हैं. IVRI के के पशु अनुवांशिकी विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ रणवीर सिंह बताते हैं कि इस मशीन का निर्माण 2014 में किया गया था. तब से लेकर आज तक इसे और बेहतर बनाने पर काम किया जा रहा है. 

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हर सप्ताह 100 किलो खाद का उत्पादन

काऊ कंपोस्टिंग मशीन बनाने से पहले जैविक खाद बनाने के लिए आईवीआरआई द्वारा जयगोपाल वर्मीकल्टर तकनीक को विकसित किया गया था. इस तकनीक में जैविक खाद तैयार होने में 40 दिनों का समय लगता था. लेकिन समय बचाने के साथ बेहतर क्वालिटी की खाद बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने मिलकर काऊ कंपोस्टिंग मशीन को तैयार किया. इस मशीन में अगर रोज 100 किलो खरपतवार डाली जाए तो अगले एक सप्ताह के बाद से रोजाना 100 किलोग्राम खाद मिलनी शुरू हो जाएगी. वैज्ञानिक डॉ रणवीर सिंह बताते  हैं कि इस मशीन में डालने के लिए सूक्ष्मजीवी तैयार करने पड़ते हैं, जिन्हें विकसित करने में 40-50 दिनों का समय लगता है, उसके बाद इसे मशीन में डाला जाता है. 

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समूह में खाद बना सकते हैं किसान

खाद तैयार करने के लिए इस मशीन में लगे ड्रम को दिन में दो बार घुमाया जाता है. इसके अलावा इस मशीन में ऑक्सीजन भी डाला जाता है. वैज्ञानिक बताते हैं कि जिस तरह से गाय खाने को चबाती है उसी तरह से खरपतवार को मशीन में डालने से पहले इसके छोटे-छोटे टुकड़े किए जाते हैं. यह मशीन एक कोण पर झुकी रहती है. इसमें आगे से खरपतवार डाला जाता है और पीछे से जैविक खाद निकलती है.

इस मशीन को बेहद छोटे जगह में रख सकते हैं और इससे बदबू भी नहीं आती है. इस मशीन को समूह बनाकर बड़े कॉलोनियों में लगाया जा सकता है जहां से किसानों को आसानी से खाद मिल सकती है. इसके अलावा इस मशीन के छोटे रूप से किसान कम समय में अधिक खाद प्राप्त कर सकते हैं.