फूलगोभी की खेती से किसानों के लिए फायदेमंद होती है. इसकी खेती में लागत के मुकाबले कमाई अधिक होती है. बशर्ते फूलो की गुणवत्ता और आकार सही होना चाहिए. इसकी खेती के लिए उन्नत किस्म का इस्तेमाल करने से किसान अधिक उत्पादन हासिल कर सकते हैं इससे कमाई अधिक होती है. फूलृगोभी की अच्छी कीमत पाने के लिए इसकी अगेती खेती करना चाहिए. फूलगोभी का सेवन करना भी काफी फायेदमंद होता है. इसमें कई सारे पोषक तत्व पाए जाते हैं. खुले में फूल गोभी की खेती के लिए ठंड का मौसम उपयुक्त माना जाता है. पर पॉलीहाउस में किसान पूरे साल में कभी भी फूलगोभी की खेती कर सकते हैं.
बाजार में पूरे साल इसकी मांग अच्छी बनी रहती है. इसलिए किसानों को इसकी खेती में अच्छा मुनाफा होता है. ऐसे में किसानों को यह जानना जरूरी है कि फूल गोभी की ऐसी कौन सी उन्नत किस्मे हैं जिसकी खेती वो कर सकते हैं. इस खबर में हम आपको फूलगोभी की टॉप थ्री किस्मों के बारे में बताएंगे.
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पूसा दीपालीः यह फूलगोभी की उन्नत किस्म है इसे आईएआरआई ने विकसित किया है. इस किस्म की खासियत यह है कि यह रोपाई के बाद कटाई के लिए जल्दी तैयार हो जाती है. उत्तर भारत के राज्यों में खेती करने के लिए यह किस्म उपयुक्त मानी जाती है. इसके फूल का रंग सफेद होता है और इस किस्म की खेती में प्रति एकड़ किसान को 48 क्विंटल तक की उपज प्राप्त होती है.
पूसा कार्तिकीः फूलगोभी की इस किस्म का रंग सफेद होता और आकार में छोटा होता है. इसके साथ ही यह खाने में स्वादिष्ट होती है. खेत में लगाने के 75 से 80 दिन बाद गोभी की यह किस्म कटाई के लिए तैयार हो जाती है. फूल गोभी की इस किस्म की खेती करके किसान एक एकड़ में 75-80 क्विंटल तक पैदावार हासिल की जा सकती है.
अर्ली कुंवारीः फूल गोभी की यह किस्म भी दूसरी किस्मों की तरह रोपाई के बाद कटाई के लिए जल्दी तैयार हो जाती है. फूलगोभी के इस उन्नत किस्म की खेती मुख्य तौर पर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में अधिक की जाती है. इस किस्म की खेती में दूसरी अन्य किस्मों को मामले में पैदावार कम होती है.
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फूलगोभी की की खेती में अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए बुलई या दोमट मिट्टी में इसकी खेती करनी चाहिए. इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से लेकर 6.5 के बीच का होना चाहिए. एक हेक्टेयर की खेती में खेती करने के लिए 450-500 ग्राम बीज की की आवश्यकता होती है. इसकी खेती पंक्ति में की जाती है. लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए जबकि पोधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए.
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