साल 2002 में उत्तर प्रदेश के 6 कृषि अनुसंधान केंद्रों में डीएसआर तकनीक की सफलता को देखते हुए उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद, (उपकार) लखनऊ ने खरीफ 2023 में इसका विस्तार करने और अन्य जिलों के अन्य कृषि विज्ञान केंद्रों पर प्रक्षेत्र प्रदर्शन करने की योजना बनाई है.इसके लिए उपकार, केवीके और निजी संस्थान मिलकर उत्तर प्रदेश में धान की डीएसआर तकनीक पर काम करेंगे. पिछले साल 6 कृषि विज्ञान केंद्र शामिल किए गए थे. इस बार कार्यक्रम का और विस्तार किया गया है.
उपकार के महानिदेशक डॉ संजय सिंह ने बताया कि राज्य के सभी हिस्सों में खरीफ धान की फसल होती है, खासकर पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में धान की खेती मुख्य रूप से खरीफ मौसम में की जाती है.इन क्षेत्रों में धान के खेती में पानी की अधिक मांग के कारण भुमि जलस्तर गिर रहा है.इसलिए बदलते परिवेश में धानकी खेती करना जरूरी है. ऐसी कृषि पद्धतियों को अपनाया जाना चाहिए जिसमें कम सिंचाई से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सके. धान की सीधी बुवाई यानि (Direct Seeding of Rice) डीएसआर विधि में कम सिंचाई की जरूरत होती है. उन्होंने कहा इस तकनीक में खरपतवार की समस्या थोडी उत्पन्न हो जाती है, लेकिन खरपतवार नियंत्रण के लिए कुछ खरपतवार नाशी रसायन है जिससे असानी से नियंत्रण किया जा सकता है.
डॉ संजय सिंह ने कहा कि इसके लिए उपकार, कृषि विज्ञान केन्द्र और निजी संस्थानों के साथ मिलकर काम करने की योजना बना रहा है, जिसके जिसके लिए 27 अप्रैल को एक बैठक आयोजन किया गया था. इस बैठक में 20 कृषि विज्ञान केन्द्र के हेड़ औऱ 4 निजी कंपनियों के प्रतिनिधि उपस्थित थे.उन्होंने कहा कि पिछले साल डीएसआर परीक्षण कार्यक्रम राज्य के 6 कृषि विज्ञान केन्द्र बस्ती, प्रयागराज, लखीमपुर खीरी-1,इसमें सीतापुर-2, गोरखपुर-2 और मऊ में किया गया था. इस साल डीएसआर परीक्षण कार्यक्रम इन कृषि विज्ञान केन्द्रो के आलावा विभिन्न कृषि विज्ञान केन्द्रो का चयन किया गया है. महानिदेशक ने कहा कि पिछले साल के परिणाम के संदर्भ में यह पाया गया कि डीएसआर तकनीक से धान की खेती करने पर उत्पादन में कोई खास बदलाव नहीं होता है लेकिन पहले साल के परिणाम आधार कह सकते है, उत्पादन लागत, कम पानी जरूरत और मजदूरी लागत कमी होने कारण किसानों का लाभ दायरा बढ़ सकता है.बदलते मौसम के अनुसार ये तकनीक लाभदायक है. वही पारंपरिक तकनीकों की तुलना में, डीएसआर से फसल लगभग 10 दिन पहले पक गई थी.
इसे तकनीकी और जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए परीक्षण पूर्ण करने का निर्णय लिया गया. डीएसआर तकनीक से धान की खेती कितनी व्यवहारिक है इसके लिए का परीक्षण करना है.
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