हजारों किसानों के मुंबई कूच करने के एक महीने बाद, अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) ने 26-28 अप्रैल तक महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के अकोले से लोनी तक एक और किसान मार्च की योजना बनाई है. एआईकेएस के अनुसार, प्राकृतिक आपदाओं, भ्रष्टाचार और अनैतिक राजनीति के संयोजन के कारण कृषि संकट बढ़ गया है. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, एक एआईकेएस नेता ने कहा “राजनीतिक अस्थिरता के कारण लोगों की समस्याएं और विकास के मुद्दे पूरी तरह से किनारे हो गए हैं.” गौरतलब है कि AIKS को CITU, AIAWU, AIDWA, DYFI, SFI और अन्य समान विचारधारा वाले जन संगठनों का समर्थन प्राप्त है.
वहीं, मार्च राजस्व एवं डेयरी विकास मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटिल के लोनी कार्यालय तक निकाला जाएगा. आयोजकों ने कहा, अगर मांगें नहीं मानी गईं तो लोनी में अनिश्चितकालीन महापड़ाव आयोजित किया जाएगा.
उन्होंने कहा “पिछले दो वर्षों में, अत्यधिक और बेमौसम बारिश ने राज्य के बड़े हिस्से में फसलों को नष्ट किया है. वहीं, राज्य सरकार ने जोर-शोर से ऐलान किया कि किसानों को मुआवजा दिया जाएगा, लेकिन कहीं नहीं दिया गया.”
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उन्होंने आगे कहा, “वन भूमि, मंदिर भूमि, इनाम भूमि, वक्फ भूमि, चरागाह भूमि, किसानों और कृषि श्रमिकों को आवास के लिए भूमि देने का आश्वासन बार-बार दिया गया, जिनमें से कई वास्तव में कई पीढ़ियों से उस भूमि को जोत रहे हैं. लेकिन जमीनों को अपने नाम करने की बजाय पुलिस और वन विभाग का दुरुपयोग करके गरीब किसानों को पीटा गया और उन्हें उनकी कम जमीन और घरों से बेदखल कर दिया गया. राजमार्गों, गलियारों, बंदरगाहों और हवाई अड्डों के लिए बहुत कम मुआवजे के साथ जबरन भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है."
वहीं एक एआईकेएस नेता ने प्रस्तावित मार्च को सही ठहराते हुए कहा, “कोविड-19 महामारी के दौरान, डेयरी किसानों को सिर्फ 17 रुपये प्रति लीटर दूध बेचने के लिए मजबूर किया गया था. अब, जब वे फिर से अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रहे हैं, भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र ने दूध और डेयरी उत्पादों का आयात शुरू कर दिया है, जिससे उनका भविष्य एक बार फिर खराब हो गया है. कपास, सोयाबीन, अरहर, चना और अन्य फसलों की कीमतें गिर गई हैं.”
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