रबर की खेती करने वाले किसानों के लिए खुशखबरी, FREE मिलेंगी सात साल तक सभी सुविधाएं

रबर की खेती करने वाले किसानों के लिए खुशखबरी, FREE मिलेंगी सात साल तक सभी सुविधाएं

राज्य में रबर की खेती को बढ़ावा देने के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर और रबर रिसर्च इंस्टीट्यूट, कोट्टायम के बीच समझौता हुआ है. इस समझौते के मुताबिक अब छत्तीसगढ़ में रबर की खेती की जाएगी.

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रबर की खेती करने वाले किसानों के लिए खुशखबरी, FREE मिलेंगी सात साल तक सभी सुविधाएंसरकार रबड़ की खेती को बढ़ावा दे रही है

किसानों की आय बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं. केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी अपने-अपने स्तर पर किसानों के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही हैं, जिनका लाभ उठाकर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं. इन योजनाओं के माध्यम से किसानों को बीज, खाद, कीटनाशक और कृषि यंत्र खरीदने के लिए सब्सिडी दी जाती है. इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ सरकार राज्य में रबर की खेती की संभावनाएं तलाशने का प्रयास कर रही है ताकि राज्य के किसानों की आय में वृद्धि हो सके. इसके लिए सरकार किसानों को रबर की खेती के लिए रोपण सामग्री, खाद, और लेबर कॉस्ट भी उपलब्ध कराएगी. इस तरह किसानों को रबर की खेती के लिए 7 साल तक सहायता दी जा सकती है.

रबड़ की खेती (Rubber Farming) के लिए चलाई जा रही योजना

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में रबर की खेती को बढ़ावा देने के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर और रबर रिसर्च इंस्टीट्यूट, कोट्टायम के बीच समझौता हुआ है. इस समझौते के मुताबिक अब छत्तीसगढ़ में रबर की खेती की जाएगी. रबड़ अनुसंधान संस्थान, कोट्टायम बस्तर क्षेत्र में रबर की खेती की संभावनाओं का पता लगाने के लिए कृषि अनुसंधान केंद्र बस्तर में एक हेक्टेयर क्षेत्र में रबर की प्रायोगिक खेती की जाएगी. इस संबंध में तीन अप्रैल को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल की उपस्थिति में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर और रबर अनुसंधान संस्थान, कोट्टायम के बीच एक समझौता हुआ है. समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं.

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डॉ. विवेक कुमार त्रिपाठी, निदेशक अनुसंधान, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय और डॉ. एमडी जेसी, निदेशक अनुसंधान, रबर अनुसंधान संस्थान, कोट्टायम. इस समझौते के अनुसार रबड़ संस्थान कृषि अनुसंधान केन्द्र बस्तर में एक हेक्टेयर क्षेत्र में 7 वर्ष की अवधि के लिए पौध सामग्री, खाद-उर्वरक, कीटनाशक, दवाइयां और रबड़ की खेती के लिए श्रम, ये सभी इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में उपलब्ध होंगे. साथ ही विश्वविद्यालय को रबर की खेती और रबर निष्कर्षण तकनीक के लिए आवश्यक मार्गदर्शन भी प्रदान किया जाएगा. पौधों का प्रबंधन रबर संस्थान के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किया जाएगा.

रबर की खेती बस्तर में ही क्यों हो रही है?

हस्ताक्षर समारोह को संबोधित करते हुए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि रबर अनुसंधान संस्थान, कोट्टायम के वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ के बस्तर की मिट्टी, जलवायु, भौगोलिक परिस्थितियों आदि को रबर की खेती के लिए उपयुक्त पाया है. इसलिए प्रायोगिक आधार पर एक हेक्टेयर क्षेत्र में रबड़ के पौधे लगाए जा रहे हैं. उन्होंने आशा है कि यहां रबर की खेती निश्चित रूप से सफल होगी और किसान अधिक आय प्राप्त कर सकेंगे.

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