Sea Fishing: गहरे समुद्र में मछली पकड़ना और होगा आसान, सरकार ऐसे कर रही मदद

Sea Fishing: गहरे समुद्र में मछली पकड़ना और होगा आसान, सरकार ऐसे कर रही मदद

मंत्री डॉ. एल मुरुगन का कहना है कि मछली पकड़ने वाली बोट को आधुनिक बनाने के लिए केन्द्र सरकार तो मदद कर ही रही है, साथ ही मछुआरों को और मदद देने के लिए लोन सुविधा भी जारी की है. 

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Sea Fishing: गहरे समुद्र में मछली पकड़ना और होगा आसान, सरकार ऐसे कर रही मददAn object believed to belong to the US military aircraft V-22 Osprey that crashed into the sea floats next to a fishing boat at the sea off Yakushima Island, Kagoshima prefecture, western Japan. (Photo: Reuters)

‘आज भी पुराने ढर्रे पर बनी नावों से मछुआरे गहरे समुद्र में जा रहे हैं. इसमे जोखिम भी होता है तो बाजार की डिमांड के हिसाब से मछलियां भी पकड़ में नहीं आती हैं. जबकि बाजार की डिमांड को पूरा करने और मछुआरों की झोली भरने वाली मछलियों की बहुत सारी प्रजाति गहरे समुद्र में ही पाई जाती हैं. ये बहुत महंगी भी होती हैं. लेकिन अब केन्द्र सरकार नई और आधुनिक तकनीक से तैयार बोट के लिए मछुआरों को स्कीम का लाभ दे रही है. अगर कोई मछुआरा पुरानी बोट को नई बोट से बदलता है तो सरकार उसे कुल कीमत का 60 फीसद हिस्सा दे रही है.’ 

ये कहना है मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री डॉ. एल मुरुगन का उनका कहना है कि गहरे समुद्र में मछली पकड़ने वाली बोट को हाईटेक बनाने के लिए रिसर्च और नए डिजाइन वाली बोट की जरूरत है. गौरतलब रहे केन्द्र सरकार नीली क्रांति और पीएम मत्स्य सम्पदा योजना के माध्यम से मछुआरों को कई योजनाओं का लाभ दे रही है.

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प्रोसेसिंग यूनिट से लैस हाईटेक बोट की है जरूरत 

डॉ. एल मुरुगन का कहना है कि कि अगर गहरे समुद्र में मिलने वाली मछलियों की बात करें तो टूना की बाजार में बहुत डिमांड है. इसके रेट भी अचछे मिल जाते हैं. लेकिन टूना को पकड़ने और अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता के मानकों को बनाए रखने हाईटेक बोट की जरूरत होती है. इतना ही नहीं अब बाजार की डिमांड के हिसाब से ऐसी बोट की जरूरत पड़ रही है जिसमे प्रोसेसिंग यूनिट भी हो. आज डिमांड के हिसाब से मछुआरों के पास बोट नहीं है.

लेकिन इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार लगातार योजनाएं ला रही है. साथ ही उनका ये भी कहना है कि मत्स्य पालन विज्ञान और प्रबंधन, फिश प्रोसेसिंग और बुनियादी ढांचे के साथ मजबूत संस्थागत आधार का उपयोग गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की विकास योजनाओं के लिए भी फायदेमंद होगा. 

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फिश वैल्यू एडेड प्रोडक्ट पर भी हो रहा काम

भारत से फिश एक्सपोर्ट लगातार बढ़ रहा है. कई देश भारतीय सीफूड के दीवाने हैं. भारतीय झींगा भी खूब पसंद किया जा रहा है. लेकिन अब मछली से बने आइटम (वैल्यू एडेड प्रोडक्ट) पर सरकार की नजर है. विश्व में मछली से बने आइटम का 189 बिलियन डॉलर का कारोबार है. इसमे भारत की हिस्सेदारी आठ बिलियन डॉलर की है.

लेकिन साल 2030 तक इसे दोगुना करने पर काम चल रहा है. इंडस्ट्री  का निशाना 20 फीसद की हिस्सेदारी हासिल करने पर है. भारतीय समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमपीडा) ने इसके लिए प्लान तैयार कर उस पर काम भी शुरू कर दिया है. हालांकि इस बाजार में चीन, वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों की चुनौती है. 

 

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