टमाटर के बिना किसी भी सब्जी का स्वाद अधूरा माना जाता है. साल में हर समय मिलने वाली इस सब्जी की खेती में किसानों को अक्सर काफी परेशानियां होती हैं. इसमें सबसे ज्यादा टमाटर सड़ने और मंडी में सही भाव नहीं मिलने की समस्या आती हैं. चूंकि टमाटर एक कोमल और मुलायम सब्जी है इसीलिए इसमें रोग भी जल्दी लगते हैं. साथ ही कई बार ज्यादा नमी और ज्यादा उर्वरकों का उपयोग भी फसल के लिए नुकसानदायक बन जाता है. इस तरह के नुकसानों से कुल उत्पादन में 20-30 फीसदी तक कमी हो जाती है. इसीलिए टमाटर की खेती को रोगों से बचाना बेहद जरूरी हो जाता है.
खेतों में खड़ी फसल में किसी भी तरह की समस्या के लिए किसान किसी भी नजदीकी कृषि वैज्ञानिक केन्द्र या कृषि पर्यवेक्षक से संपर्क कर सकते हैं.
सबसे पहले गलन रोग के बारे में जानते हैं. यह रोग टमाटर में फफूंद और फाइफ्थोरा के संक्रमण से होता है. इससे टमाटर के पौधे का तना गलने लगता है. यह बीमारी इतनी खतरनाक है कि 3-4 दिन में ही पूरे खेत में फैल सकती है. इससे बचने के लिए टमाटर के एक किलो बीजों में तीन ग्राम थायरम या केप्टॉन मिलाकर बीजों को बोना चाहिए. साथ ही बीमार पौधे को निकालकर फेंक देना चाहिए.
इसके अलावा टमाटर में अगेती झुलसारोग, पछेती झुलसा रोग भी होता है. अगेती फसल में रोग लगने के बाद मैंकोजेब 75 डब्ल्यू पी का प्रति हेक्टेयर ढाई किलो के हिसाब से झिड़काव करना चाहिए. वहीं, पछेती के लिए मेटालेक्सिल 4 प्रतिशत और मैंकाजेव 64 प्रतिशत डब्ल्यू पी 25 ग्राम प्रति लीटर मिलाकर फसल पर छिडक़ाव करना चाहिए.
टमाटर में उकटा रोग, पर्ण कुंचन रोग, मूल ग्रंथि रोग भी होते हैं. इनसे बचाव के लिए किसान गोबर की खाद का उपयोग कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के आधार पर कर सकते हैं. मूल ग्रंथि रोग से बचाव के लिए टमाटर की फसल को मई से जून में खेत की गहरी जुताई करें और उसे पारदर्शी पॉलीथिन से ढंक देना चाहिए.
टमाटर की फसल में छेदक कीट रोग भी लगता है. इसमें कीट टमाटर के अंदर छेद कर उसे खाती हैं. इससे उत्पादन में कमी आती है. इसे नियंत्रित करने के लिए मैलाथियान 50 ईसी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से फसल पर छिडक़ाव करना चाहिए.
इन बीमारियों के अलावा भी टमाटर के साथ रोगरोधी पौधे लगाने चाहिए. इनमें किस्मों में रोग प्रतिरोधी क्षमता होती है. जैसे बैक्टीरियल सूखे रोग के लिए आर्का आभा, अर्को आलोक रोग प्रतिरोधी किस्में हैं.
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