‘मुर्गा पालन ही हमारे जीने का साधन है. लेकिन कुछ लोगों की मनमानी और सरकार की बेरुखी के चलते अब मुर्गे का कारोबार करना मुश्किल हो गया है. पहले हमारे खुद के पोल्ट्री फार्म बंद हो गए. हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि हम अपने ही पोल्ट्री फार्म पर ताला लगाने के लिए मजबूर हैं. जब हमने कांट्रेक्ट पर मुर्गे पालना शुरू किया तो वहां भी कंपनियां हमारा शोषण कर रही हैं. तय रेट से कम दिए जा रहे हैं. सरकारी नियम को लागू नहीं किया जा रहा है.
मनमाने ढंग से कटौती की जा रही है. अगर कोई आवाज उठाता है तो उसे पालन के लिए मुर्गा नहीं दिया जाता है.’ ये कहना है तेलंगाना के पोल्ट्री फार्मर पप्पू राजा रेड्डी का. लेकिन ये परेशानी सिर्फ तेलंगाना की ही नहीं है. उड़ीसा, गुजरात और पंजाब तक सभी राज्यों के पोल्ट्री फार्मर की यही परेशानी है.
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तेलंगाना के पोल्ट्री फार्मर पप्पू राजा रेड्डी ने किसान तक से बातचीत में बताया कि एक वक्त था जब करीब 50 हजार पोल्ट्री फार्मर अपने फार्म में खुद के मुर्गे पालता था. लेकिन कुछ ट्रेडर्स और बड़ी कंपनियों की सांठगांठ के चलते आज करीब 40 हजार पोल्ट्री फार्मर कांट्रेक्ट पर मुर्गे पालने के लिए मजबूर हैं. लेकिन इतने पर भी हमे तरह-तरह से परेशान किया जा रहा है. केन्द्र सरकार ने कांट्रेक्टू पोल्ट्री फार्मिंग से जुड़ी गाइड लाइन बनाई है. लेकिन देशभर में सात-आठ राज्यों को छोड़कर कहीं भी उसे लागू नहीं किया जा रहा है. हमारी केन्द्र और राज्ये सरकारों से मांग है कि गाइड लाइन को लागू कराकर उसका पालन कराया जाए.
पप्पू राजा रेड्डी ने किसान तक को बताया, ‘सही दाम न मिलना तो एक बड़ी परेशानी है ही, लेकिन कंपनियों ने कुछ ऐसी मनमानी शर्तें लगा रखी हैं जो हमारा खून चूसने का काम करती हैं. ब्रॉयलर मुर्गे के पालन पर जो लागत आती है उसके मुकाबले कंपनियां बहुत ही कम रेट देती हैं. कई ऐसे खर्च हैं जिन्हें कंपनियां लागत में नहीं जोड़ती हैं. इससे भी बड़ी बात ये है कि अगर प्राकृतिक आपदा के चलते चूजों या मुर्गों की मौत होती है तो उसकी भरपाई कंपनियां फार्मर से करती हैं.
चूजे देते वक्त उनकी क्वालिटी नहीं बताई जाती हैं, जैसे उनका वजन और उन्हें लगी वैक्सीन के बारे में. फीड देते वक्त उसकी क्वालिटी के बारे में नहीं बताया जाता है. दाने में क्या-क्या मिलाया गया है बोरी पर इसकी कोई जानकारी नहीं होती है. मुर्गा तैयार होने पर कंपनियां वक्त से माल नहीं उठाती हैं. इससे लागत बढ़ जाती है.
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एक वक्त ऐसा आता है जब मुर्गा दाना ज्यादा खाता है और वजन कम बढ़ता है. इससे लागत बढ़ जाती है. इस बढ़ी हुई लागत की कटौती भी फार्मर से की जाती है. पालने के लिए लगातार चूजे नहीं दिए जाते हैं. एक से लेकर तीन महीने तक का गैप कर दिया जाता है. जबकि पोल्ट्री फार्म पर लेबर का खर्च और बिजली का फिक्स चार्ज तो जाना ही जाना है’.
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