हिमाचल प्रदेश: नूरपुर के सदवां, दानी और पंडरेर ग्राम पंचायतों के किसानों और पशुपालकों ने आरोप लगाया है कि उनके पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान के लिए अच्छी गुणवत्ता वाला वीर्य नहीं मुहैया कराया जा रहा है. उन्होंने हाल ही में इस संबंध में मुख्यमंत्री (सीएम) हेल्पलाइन पर शिकायत दर्ज कराई थी. ट्रिब्यून इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पशुपालन विभाग के फील्ड स्टाफ पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा पशुपालकों के घर पर उपलब्ध कराते हैं. हालांकि, पिछले कई महीनों से कृत्रिम गर्भाधान के बाद भी दुधारू मवेशियों के लगातार गर्भ धारण करने में असफल होने की खबरें आ रही हैं. यह पशुपालकों के लिए चिंता का विषय बन गया है.
सदवां के शेखर पठानिया, दानी के संदीप, पंडरेर ग्राम पंचायत के हंस राज और कुलजीत राणा ने कहा कि इलाके के कुछ पशु मालिकों ने सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत दर्ज कराई थी.
कृत्रिम विधि से नर पशु से वीर्य एकत्रित करके मादा पशु की प्रजनन नली में रखने की प्रक्रिया को कृत्रिम गर्भाधान कहते हैं. देश में साल 1937 में पैलेस डेयरी फार्म मैसूर में कृत्रिम गर्भाधान का सबसे पहले प्रयोग किया गया था. मौजूदा वक्त में देश-विदेश में पालतू पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान की विधि अपनायी जा रही है.
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किसानों के शिकायत करने पर, पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने कहा कि वे उन जानवरों की जांच करेंगे जिन्हें कृत्रिम रूप से गर्भाधान कराया गया था. लेकिन पशुपालक ने कहा कि विभाग को स्पर्म की गुणवत्ता की जांच करनी चाहिए.
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पशुपालन विभाग, कांगड़ा के उप निदेशक डॉ संजीव धीमान ने पुष्टि की कि उन्हें नूरपुर क्षेत्र में शिकायतें मिली हैं. उन्होंने कहा कि पशुपालकों की शिकायतों की जांच के लिए एक पशु चिकित्सा अधिकारी की प्रतिनियुक्ति की गई है. उन्होंने आगे कहा कि विभाग किसानों और पशुपालकों को कृत्रिम गर्भाधान के बारे में जागरूक करने के लिए नूरपुर के दानी और सदवां ग्राम पंचायतों में अवेयरनेस कम-फर्टिलिटी कैंप आयोजित करेगा.
• पशुओं में उच्च शुक्राणु क्षमता का सीमेन प्रयोग कराना चाहिए.
• पशु के हीट होने के 24 घंटा बाद सीमेन चढ़ाया जाना चाहिए.
• सीमेन चढ़ाने के दो से तीन घंटा तक पशु को बैठने नहीं देना चाहिए.
• इस दौरान उनके आहार को लेकर भी व्यापक सावधानी बरतना चाहिए.
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